स्मार्टफोन से एक पल की भी दूरी बर्दाश्त नहीं होती? सोते समय स्मार्टफोन को सिरहाने रखने की आदत है? अगर हां तो संभल जाइए। ब्रिटेन की एक्जिटर सहित कई यूनिवर्सिटी के अध्ययन में मोबाइल से निकलने वाली विकिरणों को कैंसर से लेकर नपुंसकता तक के खतरे से जोड़ा गया है।
कैंसर का डर
अंतरराष्ट्रीय कैंसर रिसर्च एजेंसी ने मोबाइल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरणों को संभावित कार्सिनोजन (कैंसरकारी तत्वों) की श्रेणी में रखा है। उसने चेताया है कि स्मार्टफोन का अत्यधिक इस्तेमाल मस्तिष्क और कान में ट्यूमर पनपने की वजह बन सकता है, जिसके आगे चलकर कैंसर का भी रूप अख्तियार करने की आशंका रहती है।
संतान सुख पर संकट
2014 में प्रकाशित ब्रिटेन के एक्जिटर विश्वविद्यालय के अध्ययन में मोबाइल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरणों का नपुंसकता से सीधे संबंध पाया गया था। शोधकर्ताओं ने आगार किया था कि पैंट की जेब में स्मार्टफोन रखने से पुरुषों में न सिर्फ शुक्राणुओं का उत्पादन घटता है, बल्कि अंडाणुओं को निषेचित करने की उसकी गति भी धीमी पड़ जाती है।
जलने-फटने का जोखिम
’ जुलाई 2014 : डालास में तकिये के नीचे स्मार्टफोन रख सो रही 13 वर्षीय किशोरी के फोन में लगी आग
’ मई 2015 : कनेक्टिकट में बिस्तर पर फोन रखकर चार्ज कर रहे किशोर का फोन और गद्दा, दोनों ही जल गया
’ जून 2018 : कुआलालंपुर में गहरी नींद में सो रहा युवक स्मार्टफोन फंटने से जला, इलाज के दौरान तोड़ा दम
नींद में खलल डालती है नीली रोशनी
2017 में इजरायल की हाइफा यूनिवर्सिटी की ओर से किए गए एक अध्ययन में सोने से आधे घंटे पहले से ही स्क्रीन का इस्तेमाल बंद कर देने की सलाह दी गई थी। शोधकर्ताओं का कहना था कि स्मार्टफोन, कंप्यूटर और टीवी की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी ‘स्लीप हार्मोन’ मेलाटोनिन का उत्पादन बाधित करती है। इससे व्यक्ति को न सिर्फ सोने में दिक्कत पेश आती है, बल्कि सुबह उठने पर थकान, कमजोरी और भारीपन की शिकायत भी सताती है।