आगरा में चाय के शौकीन को “इको फ्रेंडली चाय वाला” कैफे की कुल्हड़ की चाय काफी पसंद आ रही है। यहां लोग चाय पीने के बाद कुल्हड़ खा जाते हैं। कुल्हड़ को चावल से बनाया गया है, जो पूरी तरह से खाने योग्य है। दो दोस्त आशीष पराशर और ओम झा ने स्टार्टअप शुरू किया है। अब वह हर दिन 6 हजार कमा रहे हैं।
आशीष ने बताया, “एक दिन फेसबुक पर रील देख रहा था। उसमें एक रील दिखाई दी। जिसमें चाय के बाद लोग कप को खा रहे थे। मुझे यह रील बहुत अच्छा लगा। इसके बाद दोस्त के साथ मिलकर खाने वाले कुल्हड़ की चाय कैफे खोलने का मन बनाया। खाने वाले कप में तीन तरह के फ्लेवर में हैं। इसके अलावा करीब 15 तरह की चाय मिलती है। हर चाय का रेट 15 रुपए से शुरू होता है। एक दिन में करीब 400 कप चाय बेच लेता हूं। कप को खाने पर इलायची और चॉकलेट का स्वाद आता है।”
ट्रांस यमुना कालोनी के रहने वाले आशीष पाराशर और फतेहाबाद के रहने वाले ओम झा दोस्त हैं। दोनों ने BSC की पढ़ाई एक साथ की है। इसके बाद आशीष ने MSC करने के बाद स्लीपवेल गद्दे की कंपनी में सालाना करीब तीन लाख पैकेज की नौकरी शुरू की। वहीं, ओम पॉलीकैप पाइप कंपनी साढे़ तीन लाख सालाना पैकेज से नौकरी शुरू की। मगर, कुछ साल बाद कोविड लॉकडाउन में दोनों की नौकरी चली गई। कोविड के दौरान हालात ठीक हुए तो दोस्तों ने नौकरी के बारे में सोचा। हालांकि कही नौकरी नहीं मिली।
तमिलनाडु से मंगाए कप
आशीष ने बताया,” एक दिन फेसबुक पर रील देख रहा था। इसी दौरान एक रील दिखाई दी। जिसमें लोग चाय के कप को खा रहे थे। मुझे चाय का कप कुछ अलग लगा। इसके बाद दोस्त के साथ मिलकर खाने वाले कुल्हड़ की चाय कैफे खोलने का मन बनाया। दोनों दोस्तों ने उस रील वाले व्यक्ति से संपर्क किया। वो तमिलनाडु के निकले। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु में चावल से चाय के खाने वाले कप बनाए जाते हैं। जिस तरह आइसक्रीम की सॉफ्टी बनती है, उसी तरह ये कप बनते हैं। उनको इस कप में लोगों को चाय सर्व करने का आइडिया अच्छा लगा।”
आशीष का दावा है कि उन्होंने सर्च किया तो पता चला कि आगरा और इसके आस-पास के शहरों में इस तरह के कप में कोई चाय नहीं दे रहा। ऐसे में दोनों दोस्तों ने अक्टूबर महीने से स्टार्ट अप शुरू कर दिया। स्टार्ट अप के लिए दोनों ने अपनी जमा पूंजी लगाई है। किसी से मदद नहीं ली। काम शुरू करने में करीब सवा लाख का खर्चा आया है।”
आशीष ने बताया,” उनके घर वाले नहीं चाहते थे वह चाय का काम करें। उन्होंने बीएड और एमएससी की है। घर वाले सरकारी नौकरी के पीछे पड़े थे। उनके पिता एक महीने तक उनके कैफे पर नहीं आए। मगर, अब जब उनको लगा कि बेटे ने कुछ अच्छा किया है तो वह भी सपोर्ट कर रहे हैं।”
ओम झा ने बताया कि पढ़ाई के दौरान वह अक्सर चाय पीते थे, तो प्लास्टिक के कप में चाय मिलती थी। जब उन्होंने प्लास्टिक कप में चाय पीने के हानि के बारे में पता चला तो उन्होंने प्लास्टिक कप में चाय पीना छोड़ दिया था। लोगों को पता नहीं कि प्लास्टिक कप में चाय या प्लास्टिक थैली में गर्म खाना पैक कराने से शरीर को बहुत नुकसान होता है। ऐसे में उन्होंने अपने स्टार्ट अप में प्लास्टिक और कागज के कप को इस्तेमाल न करने का मन बनाया। स्टार्ट अप का नाम भी “ईको फ्रेंडली चाय” वाला रखा।
15 मिनट तक नहीं गलता कप
आशीष ने बताया कि उनके यहां पर चावल के कप और मिट्टी से बने कुल्हड़ में चाय मिलती है। इसके अलावा उनके यहां पर जो भी ब्रेक फास्ट या खाना दिया जाता है, वो भी मिट्टी के बर्तन में दिया जाता है। ये खाने वाला कप 15 मिनट तक नहीं गलता है। इसमें आराम से चाय पी सकते हैं। इस कप का फायदा ये है कि चाय पीने के बाद इससे गंदगी भी नहीं होती है। लोगों को ये बहुत पसंद आ रहा है।