कीड़ों को भी दर्द होता है, मिल गए सबूत, तितली, टिड्डे, कॉकरोच मारने से पहले सोचिए, अब इनके लिए भी बन सकता है कानून

 

 

दुनिया में अब तक ये माना जाता रहा है कि कीड़ों को दर्द नहीं होता, क्योंकि उनके शरीर में दर्द महसूस करने के लिए जरूरी स्ट्रक्चर नहीं होता। इसीलिए फसल बचाने के लिए पेस्टिसाइड छिड़क कर कीड़े मार दिए, मच्छर दिखे तो उन्हें मार दिया, कॉकरोच दिखे तो उनकी भी खैर नहीं। नई स्टडी ने इस धारणा को तोड़ दिया है। 300 से ज्यादा साइंटिफिक रिसर्च की स्टडी के बाद पता चला है कि कम से कम कुछ कीड़े दर्द महसूस करते हैं।

कीड़ों को भी इंसानों की तरह दर्द

अभी तक एक्सपर्ट्स का मानना था कि कीड़ों को दर्द महसूस नहीं होता। क्वींस मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के तीन रिसर्चर ने करीब 300 साइंटिफिक स्टडी का सर्वे किया। उन्होंने पाया कि कम से कम कुछ कीड़े दर्द महसूस करते हैं। इन रिसचर्स ने भंवरे पर खुद भी स्टडी की। जब भंवरे को चोट पहुंचाने की कोशिश की गई तो उसका रिस्पॉन्स वैसा ही था, जैसा इंसानों का होता है।

कीड़ों पर पेस्टिसाइड डालने से उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है, पैरालिसिस अटैक आते हैं और इंटरनल ऑर्गन के डैमेज होने से उनकी मौत हो जाती है। पेस्टिसाइड से कीड़ों के नर्वस सिस्टम में सोडियम चैनल खुल जाता है। इससे उन्हें तेज दर्द होता है और उनकी मौत हो जाती है।

दरअसल, इंसान को दर्द इसलिए महसूस होता है क्योंकि इंसान के शरीर का नर्वस सिस्टम काफी विकसित है। इंसान की नर्व सेल्स में दर्द महसूस करने वाले रिसेप्टर्स होते हैं। ये दर्द का सिग्नल दिमाग तक ले जाते हैं। वैज्ञानिकों का मानना था की कीड़ों का नर्वस सिस्टम इतना विकसित नहीं है कि उन्हें दर्द महसूस हो सके।

इस स्टडी के मुताबिक बाकी जानवरों की तरह किसी खतरे के अंदाज होने पर कीड़ों के दिमाग में एक रिफ्लेक्स एक्शन होता है। इसे नोसिसेप्शन कहते हैं। इसका मतलब है की कीड़े का दिमाग उसे दर्द से अलर्ट करने के लिए रिफ्लेक्स सिग्नल देता है। हालांकि, कीड़ों के मामले में ये जरूरी नहीं है की दर्द और दर्द का रिफ्लेक्स यानी नोसिसेप्शन साथ-साथ हो।

कभी-कभी अलर्ट सिग्नल के तौर पर भी कीड़े के दिमाग में नोसिसेप्शन की प्रक्रिया होती है। ये जरूर है की कीड़े दर्द के सिग्नल को पहचानते हैं और दर्द से बचने के लिए रिफ्लेक्स एक्शन भी करते हैं। कीड़ों के दर्द के प्रति रिस्पॉन्स को समझने के लिए नर्वस सिस्टम के विकास और रिफ्लेक्स के आधार पर 8 पॉइंट्स को स्टडी किया गया।

कीड़ों की कैटेगरी में आने वाले केकड़े, लॉबस्टर, झींगा मछली (प्रॉन) और ऑक्टोपस का पेन इंडिकेटर यानी दर्द महसूस करने वाले पॉइंट्स सबसे ज्यादा पाए गए। ऑक्टोपस ने सबसे ज्यादा 8 में से 7 रिफ्लेक्स पर रिफ्लेक्स एक्शन किया। इस वजह से यूनाइटेड किंगडम के एनिमल वेलफेयर एक्ट (2022) और एनिमल्स एक्ट 1986 में शामिल किया है। इन एक्ट्स में कीड़ों के शामिल होने से साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट, इन्सेक्ट फार्मिंग और पेस्टिसाइड के इस्तेमाल से कीड़ों को होने वाला दर्द कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

जानवरों के मांस से ज्यादा खाए जातें हैं कीड़े

दुनिया के कई हिस्सों में कीड़ों को भोजन के रूप में खाया जाता है। इंसानों के अलावा जानवर भी इन कीड़ों को खाते हैं। कई देशों में लोग कीड़ों को स्ट्रीट स्नैक्स के तौर पर खाते हैं और कुछ देशों में कीड़ों से बनी डिशेज रेस्टोरेंट में सर्व की जाती है।

मीट के लिए खाए जाने वाले जानवरों और पक्षियों की तुलना में कीड़ों की संख्या कहीं ज्यादा है। फूड पर्पज के लिए हर साल दुनिया में एक लाख करोड़ कीड़े मारे जाते हैं जबकि 7,900 करोड़ स्तनधारी और पशु-पक्षी इंसानों की भूख मिटाने के लिए हर साल मारे जाते हैं।

कीड़े हैं प्रोटीन का इंस्टेंट सोर्स

इंसान की प्लेट में कीड़ों का शामिल होना कोई नई बात नहीं है। लंबे समय से इंसान कीड़ों का भोजन करते आ रहे हैं। साल 2013 में यूनाइटेड नेशन्स ने लोगों से मीट की जगह इंसेक्ट्स यानी कीड़ों को फर्स्ट चॉइस फॉर फूड यानी खाने की पहली पसंद बनाने का आग्रह किया था। यूनाइटेड नेशन्स के फूड एंड एग्रीकल्चरल आर्गेनाईजेशन के मुताबिक कीड़ों के शरीर में बड़े जानवरों की तुलना में कहीं ज्यादा प्रोटीन और जरूरी न्यूट्रीशन्स मौजूद होते हैं।

ये इंस्टेंट सोर्स ऑफ प्रोटीन की तरह काम कर सकता है। इंसान का शरीर कीड़ों को आसानी से पचा भी सकता है। UN के मुताबिक ऐसे कीड़े जो घास-फूस खाते हैं, उनसे बने प्रोडक्ट्स खाना सीधे पौधों को खाने से कहीं बेहतर है।

1980 तक सर्जनों का मानना था कि बच्चे दर्द महसूस नहीं करते

1980 के दशक तक, कई सर्जनों का मानना था कि बच्चे दर्द महसूस नहीं कर सकते। इसलिए बच्चों पर शायद ही कभी एनेस्थीसिया का इस्तेमाल करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि बच्चों का चीखना और छटपटाना सिर्फ रिफ्लेक्स है। भले ही हमारे पास अभी भी सबूत नहीं है कि बच्चे दर्द महसूस करते हैं, लेकिन अब वो पुरानी धारणा बदली है।

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