बिहार, कुत्तों को ह्यूमन फ्रेंडली कहा जाता है। पागल होने के बाद ही यह इंसानों को खतरा पहुंचाते हैं। बेगूसराय में स्ट्रीट डॉग के आदमखोर बनने की कहानी जानने के लिए इसमें डॉक्टर और एनिमल रिसर्चरों के साथ कुत्तों पर काम करने वाले वालंटियरों को शामिल किया गया। एक्सपर्ट ने इसके लिए बेगूसराय के उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के साथ वहां एनिमल और ह्यूमन बॉडी के डिस्पोजल में लापरवाही को जिम्मेदार बताया।
सबसे पहले पागल और आदमखोर डॉग में फर्क समझिए
एक्सपर्ट बताते हैं, पागल कुत्ते कभी मांस खाने के लिए नहीं काटते हैं। पागल होने के बाद उन्हें भय सताने लगता है। वह इंसानों और जानवरों से खुद को बड़ा खतरा महसूस करने लगते हैं। इस कारण कोई भी सामने पड़ जाता है, वह उसे नोंच लेते हैं। ऐसे कुत्तों के मुंह से हमेशा लार टपकता है, आंखें लाल हो जाती हैं। वह हमेशा मूवमेंट करते हैं, स्थिर नहीं रह पाते हैं। जब कुत्ते जानवरों और इंसानों के मांस या खून खा लेते हैं, तब वह मांस खाने के लिए ही लोगों को काटते हैं। वह पागल कुत्तों की तरह एक बार काटकर छोड़ते नहीं, बल्कि अधिक से अधिक मांस खाने के उद्देश्य से काटते हैं। पागल कुत्ते झुंड बनाकर नहीं रहते, खूंखार और आदमखोर हमेशा झुंड में ही हमला करते हैं। वह इंसानों को मारकर एक साथ झुंड में मांस खाते हैं।
अब शूटर की जुबानी आदमखसोर कुत्तों की कहानी..
शक्ति सिंह वन एवं पर्यावरण विभाग के 13 शूटरों के पैनल में शामिल हैं। शक्ति सिंह को बेगूसराय के बछवाड़ा में आदमखोर कुत्तों को शूट करने की जिम्मेदारी दी गई थी। दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान शक्ति सिंह एक थ्योरी बताते हैं, 2019 में सरकार ने उस एरिया में नील गायों (ब्लू बुल) का किलिंग हुआ था। जानवरों के शवों का डिस्पोजल सही ढंग से नहीं किया गया। इस कारण से रॉ फ्लैश इटिंग हो गया।