15 साल से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी पसंद से शादी कर सकती है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई

 

 

15 साल से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी पसंद से शादी कर सकती है या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। पंजाब और हरियाणा हाईकाेर्ट के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की याचिका काे सुप्रीम कोर्ट ने मंजूर कर लिया है।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की एकल पीठ ने जून 2022 में अहम फैसला दिया था। फैसले के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र है। अदालत ने इसके पीछे इस्लामिक कानून का हवाला दिया था।

हाईकोर्ट के फैसले पर SC की रोक
SC ने अगले आदेश तक हाई कोर्ट के फैसले को मिसाल के तौर पर नहीं लेने पर भी राेक लगा दी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सभी मामलों को टैग करेंगे और मामले को तीन हफ्ते के बाद सूचीबद्ध करेंगे। नवंबर 2022 में ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया था।

दलील- बाल विवाह कानून का उल्लंघन
बाल आयोग ने कहा है कि हाई कोर्ट का फैसला बाल विवाह की अनुमति देता है और यह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि अधिनियम के प्रावधान धर्मनिरपेक्ष हैं और सभी धर्मों पर लागू होते हैं। पॉक्सो कानून के तहत शारीरिक संबंध बनाने के लिए 18 साल की उम्र तय की गई है। ऐसे में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला पॉक्सो एक्ट के खि‍लाफ है।

आयोग की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि 18 से कम उम्र में लड़कियों की शादी की जा रही है। क्या पर्सनल बोर्ड की आड़ लेकर गैर कानूनी काम किया जा सकता है? पॉक्सो कानून को देखते हुए नाबालिग की शादी को कानूनन सही कैसे ठहराया जा सकता है?

हाईकोर्ट ने कहा था- हर नागरिक को जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा का अधिकार
एक प्रेमी जोड़े ने 8 जून 2022 को मुस्लिम रीति-रिवाजों के तहत निकाह कर लिया था। इसके बाद प्रेमी जोड़ा सुरक्षा मांगने हाईकोर्ट पहुंचा और अपने परिवार से खुद की जान का खतरा बताया। हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि मुस्लिमों का निकाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधीन होता है। इसके तहत कोई भी व्यक्ति जो यौन परिपक्वता प्राप्त कर लेता है वह शादी के योग्य माना जाता है। यदि कोई मुस्लिम लड़का या लड़की युवा हो जाता है तो वह अपनी मर्जी से किसी से भी विवाह करने के लिए स्वतंत्र होता है। ऐसे में अभिभावकों का कोई दखल नहीं रह जाता। साथ ही यह भी स्पष्टीकरण है कि यदि सुबूत मौजूद नहीं है तो 15 वर्ष की आ

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