साध्वी मृदुला ने ऋषिकूमरो को कराया ध्यान का अभ्यास – परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के मोहन सिंह ने रामायण पर दिया व्याख्यान
फतेहपुर। मनुष्य आता कहां से है और उसे जाना कहां है विषय पर व्याख्यान देते हुए साध्वी मृदुला दीदी ने बताया कि मनुष्य ईश्वर द्वारा धरती पर भेजा गया प्रतिनिधि है वह ईश्वर के कार्यों को पूरा करने में सहयोग देने के लिये धरती पर आता है। उसका कर्तव्य है कि ईश्वर द्वारा स्थापित लक्ष्यों को पूरा करने मे सहयोग करें। यह कार्य ध्यान के माध्यम से संभव है क्योंकि अचेतन मन की जागृति ध्यान के अभ्यास से ही संभव है।
इसके पूर्व प्रातःकाल साध्वी जी ने गुरुकुल के विद्यार्थियों को ध्यान का अभ्यास करवाया। मोहन सिंह ने रामचरित मानस पर चर्चा करते हुये बताया कि दुख तभी होता है जब हम दुख को स्वीकार करते हैं अन्यथा दुख भले हो पर दुखी नहीं कर सकता। रामचरित मानस की घटना का उदाहरण देते हुए बताया कि राम पेड़ के नीचे कुश के विस्तर पर लेटे थे तब उन्हें देखकर निषादराज गुह केकई को दोष देते हैं तो लक्ष्मण उनसे कहते है कि कोई किसी के दुख का कारण नही बनता। सब अपने कर्माे का फल है। निषाद राज कहते हैं कि क्या राम ने भी कुछ गलत कर्म किया होगा। तब लक्ष्मण जी समझाते हैं कि प्रभु को न तो महल के सुखों को छोड़ने का गम है न ही कुश मे लेटने का। दुख तो तब होता है जब हम दुख को अपनी स्वीकृति दे देते हैं। वे तो परमानंदी हैं। उन्हें सुख या दुख का कोई फर्क नही पड़ता। गौरवतलब हो कि साध्वी जी एवं मोहन सिंह बाली इंडोनेसिया, मारिसस, मलेसिया आदि देशों में धर्म व शिक्षा पर व्याख्यान व ध्यान का अभ्यास कराते हैं। स्वामी विज्ञानानंद महाराज के सानिध्य में रहकर मोहन सिंह गुरुकुल के विद्यार्थियों को विश्व स्तर पर धर्म के प्रसार हेतु भेजनें एवं ओमघाट को विश्व स्तर पर स्थापित करने के प्रयास में संलग्न है। विगत सात दिसंबर को उनके प्रयास से ओमघाट मे बाली के धर्मगुरु भी आये थे। स्वामी विज्ञानानंद जी महाराज ने सभी को धन्यवाद देते हुये आशीर्वाद प्रदान किया।