प्रेम की नगरी मथुरा की शाही ईदगाह के सर्वे से घबराए मथुरावासी

हमारे बाप-दादाओं ने आजादी से पहले यहां घर बनाया था। इस दुकान पर तो 20 साल से मैं ही बैठ रहा हूं। मथुरा के हिंदू भाई तो अमन-चैन से रहना चाहते हैं, बाहरी लोग यहां आकर मंदिर-मस्जिद करते हैं।’

ये कहते हुए शाकिर के चेहरे पर डर और गुस्सा एक साथ नजर आता है। पड़ोस की दुकान में बैठे अबरार, नासिर और अजय वर्मा को भी मकान-दुकान जाने का डर सता रहा है।

दिसंबर 2022 में मथुरा के लोअर कोर्ट के आदेश के बाद से कृष्ण जन्मभूमि के आसपास रहने वाले हिंदू-मुस्लिम व्यापारियों की नींद उड़ी हुई है। कोर्ट ने ईदगाह के अमीनी सर्वे के आदेश दिए थे, जिसे मुस्लिम पक्ष की याचिका के बाद फिर होल्ड कर दिया था।

ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ सर्वे के आदेश के बाद ये चिंताएं शुरू हुई हैं। बीते कुछ वक्त में लगातार ऐसे फैसले हुए, जिससे अब मथुरा के मुसलमान आशंकाओं से घिरे हुए हैं।

कृष्ण जन्मस्थान के आस-पास हैं मुस्लिम दुकानें
दिल्ली से करीब 183 किमी दूर मथुरा में मेरा स्वागत सुरक्षाकर्मियों के बूटों की आवाज के साथ हुआ। स्थानीय लोग बताते हैं कि अब ये मथुरा का आम नजारा है। हालांकि, जन्मस्थान के दर्शन के लिए पहुंचे श्रद्धालु आराम से मंदिर में आ-जा रहे थे। मैं यहां से ईदगाह की तरफ बढ़ा तो वहां भी शांति ही दिखी। पुलिस यहां भी मुस्तैद थी और कुछ लोग नमाज के लिए अंदर जा रहे थे।

यहां से मैं दरेशी रोड पर पहुंचा। ये जन्मस्थान से करीब 200 मीटर की दूरी है। यहां ज्यादातर मुस्लिम व्यापारियों की दुकानें हैं। मेरी मुलाकात शाकिर हुसैन से हुई। शाकिर से सर्वे पर सवाल करता हूं तो वे बात करने से सीधे मना करते हैं। कहते हैं- ‘कुछ बोला तो नजर में आ जाऊंगा। काम-धंधा वैसे ही मंदा चल रहा है। परेशानियां अलग बढ़ जाएंगी।’ उनकी यहां टीवी-फ्रिज और इलेक्ट्रॉनिक सामान की दुकान है।

मैं जाने लगता हूं तो शाकिर अंदर आने के लिए कहते हैं। फिर बताना शुरू करते हैं- ‘हमारे पुरखे यहां ईदगाह के पास बने मकानों में आजादी के पहले से रह रहे हैं। इस दुकान को भी मेरे बुजुर्गों ने खोला था। दुकान पर बैठते हुए मुझे ही 20 साल हो गए हैं। 20 साल में मैं कभी इतना परेशान नहीं हुआ, जितना अभी हूं। BJP की सरकार आते ही यहां मंदिर-मस्जिद का मामला शुरू हो गया।’

शाकिर आगे कहते हैं- ‘मंदिर-मस्जिद का कभी तो फैसला आना ही था। अयोध्या में क्या हुआ देखिए, लोगों को हटाया गया। काशी में कॉरिडोर बना, वहां भी हजारों लोगों का व्यापार चौपट हो गया। वृंदावन में भी कॉरिडोर के नाम पर यही सब चल रहा है। यहां भी यही होगा।’

‘कृष्ण जन्मस्थान के आसपास करीब 80% मुस्लिम आबादी रहती है। पता नहीं, यहां विकास के नाम पर क्या करेंगे। घर-दुकान ले लेंगे तो बदले में कुछ देंगे, ये भी नहीं पता। एक घर, एक व्यापार खड़ा करने में जिंदगी निकल जाती है। पता नहीं, आगे जिंदगी में क्या होने वाला है।’

‘अब तो अदालतों से भी एकतरफा फैसले आ रहे, हम तो सड़क पर आ जाएंगे’
शाकिर की दुकान के नीचे ही अबरार की इलेक्ट्रॉनिक सामान की दुकान है। अबरार से सर्वे पर सवाल करता हूं, तो वे कहते हैं- ‘30 साल से दुकान चला रहा हूं। जैसे हालात हैं, अब लगता नहीं ज्यादा टाइम तक ये व्यापर चला पाऊंगा। दुकान नहीं होगी तो सड़क पर आ जाएंगे।’

‘यहां तो हिंदू-मुस्लिम सब शांति से रहते आए हैं। नेता लोग ही राजनीति के लिए लड़ाते हैं। मुस्लिमों को वैसे ही दोयम दर्जे का माना जा रहा है। कोई भी उल्टा-सीधा फैसला कर हम लोगों पर थोप दिया जाता है। अगर विरोध करो तो हम देशद्रोही हैं। गद्दार बन जाते हैं। हमारा घर भी जन्मभूमि के आसपास है, लेकिन कभी ऐसा डर नहीं लगा।’

अबरार की दुकान से आगे अजय वर्मा की साइकिल की दुकान है। अजय दरेशी रोड पर 7 साल से दुकान चला रहे हैं। कहते हैं, ‘मैंने किराए पर दुकान ले रखी है। यह दुकान भी मुस्लिम भाई की है। मुझे जब भी कोई परेशानी होती है, तो वो मेरे साथ खड़े रहते हैं। मुझे समझाते भी हैं।’

अजय वर्मा के बगल में ही साहिल की फर्नीचर की दुकान है। साहिल भी सर्वे से डरे हुए हैं, कहते हैं- ‘मंदिर-मस्जिद का ये मुद्दा बाहरियों ने उठाया है। यहां लोकल में कोई दिक्कत नहीं है। मथुरा तो प्रेम की नगरी है। सभी प्रेम से रहें। मंदिर-मस्जिद तो सालों से आमने-सामने हैं। यह तो मिसाल है। दोनों के आने-जाने के रास्ते भी अलग हैं। अगर सरकार कोई उल्टा-सीधा फैसला लेती है, तो नुकसान तो सभी का होगा। ईदगाह और मंदिर के आसपास सिर्फ मुस्लिमों का ही व्यापार नहीं है। यहां हिंदू भी व्यापार करते हैं। उन्हें भी नुकसान होगा।’

थोड़ा आगे बढ़ा तो सब्जी का व्यापार करने वाले मोहम्मद नासिर मिल गए। नासिर कहते हैं, ‘अगर व्यापार ही खत्म हो जाएगा तो लोग करेंगे क्या। हम अपना घर-बार कैसे चलाएंगे। बाहरी लोगों ने मथुरा के अमन-चैन में जहर घोल दिया है।’

पास ही खड़े आबिद कहते हैं- ‘व्यापार उजड़ेगा तो सभी इसकी जद में आएंगे। यहां दरेश रोड पर पर सबसे बड़ा काम अग्रवाल लोग करते हैं, शादियों का पूरा काम उनका है। उन्हें भी उजाड़ा जाएगा।’

नॉनवेज के व्यापार से जुड़े 10 हजार लोग बेरोजगार हुए
दरेश रोड पर ही मेरी मुलाकात उन लोगों से भी हुई, जो पहले मथुरा के अलग-अलग इलाकों में नॉनवेज होटल चलाते थे। 2 साल पहले मथुरा और वृंदावन और आसपास के 10 किलोमीटर के इलाके में नॉनवेज और शराब बेचने पर रोक लगा दी गई। व्यापारियों का दावा है कि फैसले के बाद इस रोजगार से जुड़े 10 हजार लोग बेरोजगार हो गए थे। कई नॉनवेज होटल अब शाकाहारी होटल में तब्दील हो गए हैं।

होटल व्यापारियों से सर्वे पर सवाल किया तो वे कैमरे पर आने से इनकार करते रहे। कहने लगे- ‘पहले ही धंधा चौपट हो रहा है, कमाई नहीं है। कुछ बोल देंगे तो पहचान में आ जाएंगे।’

ऑफ कैमरा एक व्यापारी ने बताया- ‘2 साल पहले अचानक से मीट की दुकानों और होटलों को बंद करने का आदेश दे दिया गया। हम लोगों को तो सोचने का मौका ही नहीं मिला। अब हम वेज रोल बेचकर अपनी जिंदगी चला रहे हैं।’

मटन कोरमा की जगह पनीर कोरमा बनाने लगे
यहीं मेरी मुलाकात मोहम्मद सोहेल से हुई। सोहेल मजीद होटल के मालिक हैं। ये होटल कृष्ण जन्मस्थान से करीब 800 मीटर दूर है। मैं वहां पहुंचा तो शीरमाल, रूमाली रोटी और तंदूरी रोटियां बन रही थीं। पूरा होटल खाली था।

सोहेल बताते हैं, ‘पहले हमारा नॉनवेज का होटल था। यहां 12 बजे दोपहर से ग्राहकों की भीड़ लगती थी। बाहरी यात्री तो आते ही थे, शाम को मथुरा के लोग भी आते थे। हमारे होटल पर ही क्या, लगभग आसपास के सभी नॉनवेज होटलों पर हिंदू-मुस्लिम सब खाना खाते थे।’

‘सरकार ने जब आदेश दिया तो पहले कई दिनों तक हमारे होटल बंद रहे। हमें कारीगरों को निकालना पड़ा। कई होटलों में तो हिंदू कारीगर लगाए गए। हमने भी मटन कोरमा की जगह पनीर कोरमा और दूसरी वेजिटेरियन डिश बनानी शुरू कर दीं।’

‘कई होटलों ने नाम भी बदल दिए हैं। हम तो रोटियां बनाकर अपना पेट भर रहे हैं। ये भी डर है कि कहीं ग्राहकों के चक्कर में हिंदू नाम रख लिया, तो लोग इसी बात पर निशाना न बनाने लगें। हमारे पास प्रॉपर्टी के नाम पर यही होटल है, इसे छोड़कर कहां जाएं।’

कहां से आया डर
हाल ही में सरकार ने तय किया है कि काशी की तर्ज पर वृंदावन में भी बांके बिहारी मंदिर के आसपास 5 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर कॉरिडोर बनाया जाए। इसकी जद में आने वाले करीब 300 घरों-दुकानों को तोड़ा जाएगा। इसके बाद से ही वृंदावन के व्यापारी और निवासियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। लोकल हिंदू भी कहते हैं कि वृंदावन की जान यही कुंज गलियां हैं। ये नहीं रहेंगी तो बांके बिहारी मंदिर का क्या होगा।

इस प्रोटेस्ट में बांके बिहारी के सेवायत यानी मंदिरों में सेवा करने वाले भी शामिल होते हैं। नाम न बताते हुए एक सेवायत कहते हैं- ‘मैं 1978 से बांके बिहारी से जुड़ा हूं। कॉरिडोर बनने से जब सेवायत उजड़ जाएंगे, तो सेवा कौन करेगा। सरकार को यमुना किनारे बांके बिहारी का एक भव्य मंदिर बनाना चाहिए। वहां पर्यटक भी आएंगे। यमुना विहार भी होगा और कुंज की ऐतिहासिक गलियां भी बच जाएंगी।’

मुस्लिम पक्ष के वकील बोले- किसी को डरने की जरूरत नहीं
शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के सेक्रेटरी और कोर्ट में मुस्लिम पक्ष के वकील तनवीर अहमद से मिलने पहुंचा तो वे व्यापारियों और सेवायतों की तरह परेशान नहीं दिखे। कहते हैं, ‘किसी को डरने की जरूरत नहीं। वादी पक्ष का मुकदमा कोर्ट में टिकने लायक नहीं। उनके मुकदमों में कई खामियां हैं, जिस 13.37 एकड़ जमीन की वे बात करते हैं, वो जमीन है कौन सी, इसकी पहचान भी कोर्ट में नहीं कर पाए।’

तनवीर आगे कहते हैं- ‘वादी पक्ष कहता है कि 1598 में हमने जमीन खरीदी थी, लेकिन इसका जिक्र कहीं नहीं है। वे खुद अपने दावे में लिखते हैं कि 1669 में ईदगाह वहां बनी है। इसका कोई सबूत नहीं कि जमीन बेचे जाने के साथ ही ईदगाह भी बेची गई थी। दोनों की जमीनें ही अलग हैं।’

तनवीर भी मथुरा के स्थानीय लोगों की बात दोहराते हैं- ‘बाहरी लोगों ने ये मुकदमे किए हैं। स्थानीय लोगों ने न पहले उनका समर्थन किया और न ही अब कर रहे हैं। इसीलिए मैं कह रहा हूं कि डरने की जरूरत नहीं है। हमें तो कृष्ण जन्मस्थान भी अच्छा लगता है और ईदगाह भी पसंद है। उनके 5 मुकदमे खारिज हुए हैं। आगे भी सारे मुकदमे खारिज होंगे।’

‘शाही ईदगाह में मिलेंगे हिंदू कला के सबूत‘
उधर, वादी पक्ष के वकील महेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं- ‘शाही ईदगाह का सर्वे होना जरूरी है। यहां ज्ञानवापी की तरह हिंदू स्थापत्य कला के सबूत मिलेंगे। खुदाई के दौरान बहुत सबूत सामने आएंगे। महेंद्र प्रताप सिंह का दावा है कि ये भूमि उनके आराध्य भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थल का गर्भ गृह है। सबूत सामने न आएं, इसके लिए मुस्लिम पक्ष केस को लटका रहा है।’

 

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