भदोही की कालीन पर अमेरिका का इन्वेस्टमेंट, 5 हजार रुपए का AC, 8 हजार रुपए की फ्रिज, 1 रुपए के पैकेट से आइडिया लेकर 2 करोड़ की कंपनी खड़ी कर देना
ये सब सुनने में नामुमकिन लगता है न! लेकिन सबकुछ हकीकत है। इंपोसिबल को पॉसिबल बनाने वाली ये कहानियां यूपी इन्वेस्टर्स समिट में आए उन नौजवानों की है जिन्होंने अपना करियर दांव पर लगाकर नई कंपनी खोली और आज यूपी के चमकते सितारे बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
न्यूज़ वाणी की टीम ने समिट में शामिल हुए अलग-अलग फील्ड के पांच लोगों से बात की। उनकी कहानियां जानी। स्टार्टअप के आइडियाज जानें। आइए कामयाबी की इन पांच कहानियों से गुजरते हैं
22 साल के वैभव मिश्रा अंडर-16 क्रिकेट खेलते थे। एक दिन कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में प्रैक्टिस के वक्त उनके अंगूठे में चोट लग गई। अस्पताल गए तो डॉक्टर ने क्रिकेट खेलने से मन कर दिया। बोले कि अगर क्रिकेट खेला तो अंगूठा काटना पड़ सकता है। वैभव का क्रिकेटर बनने का सपना खत्म हो चुका था।
वैभव काम की तलाश में मुंबई पहुंचे। वहां उन्हें कई ऐसे लड़के-लड़कियां मिलते जो छोटे शहरों से अपना एक्टर बनने का सपना साकर करने मुंबई आए हैं। लेकिन इंडस्ट्री में पहचान न होने की वजह से उनको काम नहीं मिलता। वैभव का खुद का सपना तो अधूरा रह गया लेकिन इन एक्टर्स को एक प्लेटफार्म देने के लिए उन्होंने एक कास्टिंग कंपनी खोली। पिछले दिनों उन्होंने ससुराल सिमर का टीवी सीरियल के लिए कुछ कलाकारों को चुना। आगे तारक मेहता में भी कास्टिंग के लिए बात चल रही है।
वैभव नोएडा में बन रही फिल्म सिटी को लेकर बहुत उत्साहित हैं। उनका मानना है कि इसकी शुरुआत होने से यहां के कलाकारों को मुंबई में स्ट्रगल नहीं करना पड़ेगा। नए कलाकारों को मौका मिलेगा। सलाना टर्न ओवर पूछने पर वह बताते हैं अभी शुरुआती दौर है। सालाना करीब 20 से 22 लाख रुपए का हो जाता है। इसे आगे और बड़े लेवल पर पहुंचाना है।
इन्वेस्टमेंट समिट में कानपुर से बीटेक फाइनल ईयर के स्टूडेंट समरजीत अपनी बहन शीतल और दोस्त मंजीत सिंह के साथ आए हैं। समरजीत ने 6 महीने पहले ही सोलर बेस गैजेक्ट्स का स्टार्टअप शुरू किया है। वह इस वक्त सोलर पावर बैंक, सोलर रेफ्रीजरेटर, सोलर एयर कंडिशनर और सोलर प्लांट केयर जैसी चीजें बनाकर लोगों को बेच रहे हैं।
ये आइडिया कहां से आया पूछने पर वह बताते हैं, “कोरोना संकट के बीच मैंने बीटेक में एडमिशन लिया। उस वक्त कॉलेज की एक प्रोफेसर ने सोलर से जुड़े कुछ प्रोजेक्ट दिए। उसे पूरा करने के बाद इंट्रेस्ट बढ़ा तो सोलर ऑटो सेनिटाइजर मशीन बना दी। इसके बाद अपनी ही पॉकेट मनी से बचाए हुए 20 हजार रुपए से मैं लगातार एक्सपेरिमेंट करता रहा और कई ऐसी चीजें बना दी जो आज लोगों को फायदा कर रही है। खासतौर पर किसान और स्टूडेंट्स के लिए हमने ये काम शुरू किया है।”
अपने आइटम्स को लेकर समरजीत कहते हैं, “मेरा ग्राहक गांव से है इसलिए हम सारी चीजें उनके ही बजट में तैयार करते हैं। हम सोलर रेफ्रीजरेटर 8 हजार में देते हैं। सोलर पॉवर बैंक की कीमत 1500 रुपए रखी है। सोलर एयर कंडिशनर की कीमत 5-6 हजार रखी है। घरों में लगने वाले सोलर प्लांट केयर को लेकर रिसर्च कर रहे हैं जल्द ही उसे भी मार्केट में लाएंगे।”
समरजीत एक बार कॉलेज के कैंपस सेलेक्शन में बैठे। उन्हें 30 हजार महीने का पैकेज मिला लेकिन उन्होंने मना कर दिया। समरजीत की बहन शीतल कहती हैं कि भाई बहुत मेहनत करते हैं और जो वह कर रहे हैं उसमें बहुत आगे तक जाएंगे।
अमेरिका की कैथरीन दूसरी बार भारत आई हैं। वो बताती हैं कि जब वो पिछले साल यहां आईं थी तो देश में घूमकर कई गांव में लोगों से मुलाकात की। उन्होंने देखा कि किस तरह वहां के लोग अपने हाथों से प्रोडक्ट्स बनाते हैं फिर उन्हें बेचने के लिए मेहनत करते हैं।
कैथरीन को इनके हाथ के बने प्रोडक्ट्स इतने पसंद आए कि उन्होंने इसे देश विदेश तक पहुंचाने का सोचा। उनके पति आकाश भारतीय हैं। वो अमेरिका में नौकरी करते थे। कैथरीन ने उन्हें अपना ये आइडिया बताया जिसके बाद आकाश अपनी नौकरी छोड़कर अपनी पत्नी के सपने को सच करने भारत आ गए।
उन्होंने ‘गाया मोरे’ नाम से एक कंपनी शुरू की। इस कंपनी में भदोही के बने कार्पेट, जयपुर और आंध्र प्रदेश की हैंड मेड ज्वेलरी, दिल्ली के हाथ से बने जूते और महाराष्ट्र से वर्ली पेंटिंग्स को गांव के लोगों से डायरेक्ट लेकर उसे विदेशों तक पहुंचाया जाता है। वो बताते हैं कि हमारी कंपनी में सिर्फ प्रोडक्ट ही नहीं बल्कि उस प्रोडक्ट की पूरी हिस्ट्री और उसको बनाने वाले आर्टिस्ट के बारे में भी बताया जाता है।
आकाश कहते हैं कि वो जितना अमेरिका में कमा लेते थे फिलहाल उसका 20% भी भारत में कमाई नहीं हो रही। लेकिन ये काम उनकी पत्नी का सपना है इसीलिए वो इस काम को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं। कैथरीन कहती हैं, “मैं इंडिया से नहीं लेकिन मेरा दिल इंडियन है। मुझे इस देश पर बहुत गर्व होता है। इसलिए मैं अब भारत के हर प्रदेश में घूमकर वहां की लोकल हैंडमेड चीजों को अपने प्लेटफार्म पर लाना चाहती हूं।”
लखनऊ के ऐशबाग से आए राहुल वार्ष्णेय ने 2009 में सत्यम फूड्स नाम से कंपनी शुरू की। जब उन्होंने बिजनेस की शुरुआत की तब उनके पास कोई नौकरी भी नहीं थी। लेकिन 1 रुपए वाले नटखट (वीट पफ) के पैकेट ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।
राहुल कहते हैं, “ग्रेजुएशन के बाद जॉब के लिए कई बार ट्राई किया लेकिन मनचाही नौकरी नहीं मिली। घर पर खाली बैठने से अच्छा था कोई बिजनेस शुरू किया जाए। हमारे टाइम पर बच्चों के बीच ‘नटखट’ बेहद पॉपुलर था। उससे आइडिया लेकर मैंने फूड बिजनेस में जाने के बारे में सोचा। दोस्त की मदद से सत्यम फूड नाम की फर्म रजिस्टर करवाई। इसके बाद 3 लोगों ने मिलकर लखनऊ में छोटा सा कारखाना लगाया।”
“सबसे पहले गांवों और छोटे जिलों को टारगेट किया। नमकीन का नाम ‘धमाल’ रखा। घर-घर जाकर वीट पफ्स के पैकेट्स सेल करवाएं। पहले महीने 10 हजार की ब्रिक्री हुई तो हिम्मत बढ़ती गई। 14 साल बीत गए हैं, 3 लोगों से शुरू हुआ स्टार्टअप 35 लोगों का हो गया है। यूपी में हमारा नेटवर्क बाराबंकी, रायबरेली, मुरादाबाद और गोंडा में हैं। कंपनी का सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए है।”
राहुल के मुताबिक, यूपी इन्वेस्टर्स समिट जैसे प्लेटफॉर्म उसके जैसे छोटे उद्योगों के लिए बहुत फायदेमंद हैं। यहां आकर उन्होंने अपने प्रॉडट्स को बड़े इन्वेस्टर्स के सामने प्रेजेंट किया है। रिस्पॉन्स अच्छा मिला है। राहुल कहते हैं, “आने वाले 5 साल में मैं ‘धमाल नमकीन को यूपी के 50% गांवों तक ले जाना चाहता हूं। इस बीच हम पारले, नेस्ले और ब्रिटानिया जैसी फूड कंपनियों से संपर्क कर रहे हैं। ताकी सत्यम फूड्स को नेशनल ब्रांड बन सके।”
कानपुर के रविंद्र प्रताप सिंह एमबीए करने के बाद एक मल्टी नेशनल कंपनी में जॉब करने लगे। 6 साल नौकरी की। 60 हजार रुपए महीने की सैलरी थी। तभी दिमाग में आया कि अपना धंधा शुरू करते हैं। लॉजिस्टिक के फील्ड में निवेश किया। मां वैष्णो ऑयल टैंकर नाम से बिजनेस शुरू किया। रविंद्र कहते हैं, इस धंधे में रिस्क बहुत है लेकिन खुद पर भरोसा था इसलिए करता चला गया। आज 4 करोड़ की कंपनी बन गई है।
रविंद्र ने एक रोचक कहानी बताई। उन्होंने कहा, जब मेरी सगाई हुई उसके 4 दिन बाद मैंने नौकरी छोड़ दी। अपने ससुर से कहा, अगर नौकरी देखकर शादी कर रहे हैं तो सोच लीजिएगा। तब उन्होंने कहा था कि मुझे तुम्हारे ऊपर भरोसा है। आज मुझे खुशी है कि मैं उनके भरोसे पर खरा उतर पाया। रविंद्र के बगल बैठी उनकी पत्नी कहती हैं कि अपने पापा की तरह मैंने भी इनपर भरोसा कर लिया। अब बिजनेस में साथी हूं। आगे हम लोग साथ मिलकर अपनी कंपनी को 10 करोड़ के टर्नओवर तक ले जाना चाहते हैं।
हमने जिन लोगों से बात की वह सभी इंवेस्टर्स मीट को लेकर बेहद पॉजिटिव नजर आए। उनका मानना है कि ऐसे प्रोग्राम बिजनेस में नया और बेहतर करने के लिए मोटिवेट करते हैं। लोगों के कहा कि उनके लिए इन्वेस्टर्स समिट अपने आइडिया पिच करने का प्लैटफॉर्म तो है ही साथ ही उन्हें दूसरे इन्वेस्टर्स की कहानियों से भी बहुत सीखने मिलता है।