जीने मरने की इजाजत कागज
बनाए और करे तबाह कागज
छीने खेत, घर, जमीन कागज
पोंछे आंखों की भी नमी कागज
हर जगह यूं है लाजिमी कागज
कुछ नहीं है मगर है सबकुछ भी
क्या गजब चीज है ये कागज भी’
अभिनेता पंकज त्रिपाठी की दो साल पहले आई फिल्म ‘कागज’ इन्हीं पंक्तियों के साथ शुरू होती है। इसमें भरतलाल यानी पंकज त्रिपाठी को वसीयत के कारण घर के ही लोग सरकारी दस्तावेजों में मरा हुआ घोषित कर देते हैं। फिर अपने आपको जिंदा साबित करने के लिए वो सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाता रहता है। ये तो फिल्मी कहानी थी, लेकिन रियल लाइफ में भी चंबल में भिंड जिले के मिहोनी गांव की छायाबाई की यही कहानी है।
छायाबाई कहती हैं- मैं मरी नहीं, बल्कि जिंदा हूं…पर यह साबित कैसे करूं? इस सच को साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रही हूं। पुलिस-प्रशासन, हर चौखट पर गुहार लगा चुकी हूं। न कोई मेरा दर्द समझ रहा है, न ही किसी ने मेरी फरियाद सुनी। पहले अपनों ने मुझे बेघर किया, फिर फर्जी तरीके से वसीयत बनवाकर घर और जमीन समेत डेढ़ करोड़ की संपत्ति हड़प ली। उन्होंने मुझे दर-दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया है। पति से हक की लड़ाई लड़ रही थी। मैं जिंदा हूं, दुनिया के सामने यह साबित करने की अब जद्दोजहद कर रही हूं। आंखें बंद होने से पहले ही रोजाना माैत से भी बदतर जिंदगी जी रही हूं।
खुद को जिंदा साबित करने के संघर्ष
ये तो ठीक से याद नहीं कि शादी कब हुई। नासमझ थी, तभी पापा ने शादी कर दी। उन्हें कैंसर था। मैं इकलौती हूं। मुझे लेकर पिता चिंतित रहते थे। उनके बाद मेरा क्या होगा, यही सोचते रहते। कैंसर का इलाज चल ही रहा था कि एक दिन उन्होंने बताया- तुम्हारी शादी तय कर दी है। लड़का अच्छा है। तुम्हारा ख्याल रखेगा। थोड़े ही दिन में मेरी शादी हो गई। मैं समन्ना गांव में अपने ससुराल आ गई। पति सियाराम शर्मा शादी के शुरुआती दिनों में अच्छे से ख्याल रखते। समय बीतता गया। कहते हैं- औलाद पति-पत्नी के बीच की कड़ी जैसी होती है। मुझे कोई संतान नहीं हुई। शायद इसलिए मेरे प्रति पति का व्यवहार बदलने लगा। उपेक्षा से शुरू हुआ यह बदलाव कब प्रताड़ना तक पहुंच गया, समझ ही नहीं पाई।
2010 में ससुरालवालों की प्रताड़ना से तंग आकर मैंने घर छोड़ दिया। इसके बाद कुछ दिन तक मैं अपनी मौसी और मायके के रिश्तेदारों के यहां रही। फिर 2011 में अपने मामा के साथ पश्चिम बंगाल चली गई। 2022 के सिंतबर में वापस अपनी मौसी के घर इटावा लौटी। रिश्तेदारों को लेकर मैं अपने मायके मिहोनी गांव पहुंची तो देखा कि मेरे ससुराल वाले मेरे पिता के घर पर कब्जा कर चुके हैं। मेरे पति ने मुझे घर में घुसने नहीं दिया। मायके के जानने वालों ने मुझे बताया कि तुम तो मर चुकी हो। तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हारा मृत्यु प्रमाण पत्र बनाकर तुम्हारी संपत्ति पर कब्जा कर चुके हैं। पिता से मिली जमीन भी फर्जी कागज तैयार कर बेच चुके हैं। इसके लिए मेरे ससुराल वालों ने मुझे मृत बताकर वोटर लिस्ट से मेरा नाम कटवा दिया। इसके बाद एक-एक कर फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र, वसीयत और फिर नामांतरण कराकर मेरी संपत्ति पर कब्जा कर लिया। मैं खुद बीएलओ के पास पहुंची और वोटर कार्ड बनवाने के लिए कहा, लेकिन बीएलओ ने परिवार के दबाव में मेरा वोटर आईडी नहीं बनाया। कहने लगा कि तुम तो मर चुकी हो, तुम्हारा वोटर आईडी कैसे बन सकता है। पहले खुद को जिंदा साबित करो, फिर आना और वोटर आईडी के लिए आवेदन करना।
मेरे ससुराल वाले मुझे धमकी दे रहे हैं। अंजाम भुगतने की चेतावनी देकर मुझे चुप रहने के लिए कहा जा रहा है। ऐसी स्थिति में कल अगर किसी ने मेरी हत्या कर दी तो हत्यारा भी कोर्ट में मेरा मृत्यु प्रमाणपत्र दिखाकर खुद को निर्दोष साबित कर देगा, क्योंकि पुलिस और प्रशासन की नजर में मैं कागजों में मर चुकी हूं। मायके पक्ष का कोई भी व्यक्ति यदि सपोर्ट में आता है तो ससुरालवाले उसे भी धमकी देते हैं।
मेरे ससुर भागीरथ प्रसाद के चार बेटे हैं। इनमें सबसे बड़े विद्यासागर, फिर गंगाचरण, सियाराम और नारायण दास। इनमें से विद्यासागर ने शादी नहीं की थी। मेरे पति के छोटे भाई नारायण दास का परिवार से कोई लेना-देना नहीं है। मेरे पति सियाराम के बड़े भाई गंगाचरण के पांच बेटे हैं। इनमें सुनील, अनिल, सुबोध, सतेंद्र और अमित शर्मा हैं। इन्हीं लोगों के साथ मेरे पति रहते हैं। मेरे जेठ के बेटे सुबोध शर्मा ने मेरे पति के साथ मिलकर मेरा मृत्यु प्रमाणपत्र बनवा दिया। उसी ने मेरी संपत्ति को अपने नाम करने के लिए वसीयत भी तैयार करा दी।
जेठ के बेटे ने पंचनामा बनाकर खुद को किया वारिस
महिला ने आगे कहा, संपत्ति के नामांतरण के लिए दिए गए आवेदन में मेरे जेठ गंगाचरण शर्मा के बेटे सुबोध शर्मा ने खुद को मेरा वारिस बताया है। आवेदन में सुबोध शर्मा ने मिहोनी के सर्वे क्रमांक 548 रकबा 0.11 में हिस्सा 0.08 हेक्टेयर वसीयत के आधार पर नामांतरण के लिए आवेदन पत्र धारा 109-110 मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 के तहत प्रस्तुत किया है। इसमें लिखा है कि पंचनामा व मृत्यु प्रमाणपत्र के आधार पर मृतक छाया देवी पत्नी सियाराम की मृत्यु 02 सितंबर 2017 को होने की पृष्टि हुई है। प्रकरण में मौजा मिहोनी और मौजा समन्ना पटवारी से रिपोर्ट ली गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक सुबोध शर्मा वसीयतकर्ता छाया देवी के जेठ के बड़े लड़के हैं। मौजा पटवारी समन्ना की रिपोर्ट के अनुसार मृतक छायादेवी पत्नी सियाराम के कोई पुत्र या पुत्री नहीं है। ऐसे में सुबोध शर्मा के अलावा अन्य कोई वारिस होना नहीं बताया गया है।
मृत्यु प्रमाणपत्र बनाकर संपत्ति पर किया दावा
छाया देवी ने बताया, मैं 2010 तक अपने पति के साथ थी। इसके बाद बंगाल चली गई। छह महीने पहले जब अपने मामा के घर से लौटी, तो पता चला कि पिता की संपत्ति पर अब मेरा अधिकार नहीं है। ससुराल वालों ने मायके का घर, जमीन सबकुछ अपने कब्जे में ले लिया है। मुझे रहने के लिए भी जगह नहीं दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में हम कहां जाएं? समझ नहीं आ रहा है। इस षड्यंत्र में मेरे पति ने जेठ और उनके लड़कों के साथ मिलकर डेढ़ करोड़ की संपत्ति की फर्जी वसीयत कराकर बेच दी। करीब डेढ़ करोड़ की संपत्ति को देखकर मेरे ससुराल वालों की नीयत बिगड़ गई और मुझे बेदखल कर दिया। उन्होंने मेरा मृत्यु प्रमाणपत्र 2009 का बनवा लिया है।
आखिर किस तरह किया नामांतरण
फर्जी वसीयत और मृत्यु प्रमाणपत्र के आधार पर संपत्ति अपने कब्जे में लेने के बाद पति और जेठ के बेटे ने नामांतरण के लिए आवेदन दिया। जांच के बाद मेरी मृत्यु की पुष्टि होने पर पूरी संपत्ति हड़प ली गई। फर्जी वसीयत, फर्जी पंचनामा, फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र और आखिरी में फर्जी नामांतरण के बाद मेरा कोई हक अपनी संपत्ति पर नहीं रहा है। अब मैं खुद को जिंदा साबित करने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रही हूं। पहले खुद को जिंदा साबित कर लूं, फिर अपनी संपत्ति के लिए दावा करना पड़ेगा। यह लड़ाई सिर्फ मुझे जिंदा बताने की नहीं है। बिना घर, बिना जमीन-जायदाद के आगे का जीवन किसके सहारे कटेगा? यह समझ नहीं आ रहा है।
कलेक्टर पहुचने के बाद भी सुनवाई नहीं
15 दिन पहले ही छाया देवी ने कलेक्टर से न्याय की गुहार लगाई। छाया देवी का कहना है कि मैंने सभी दस्तावेज के साथ कलेक्टर से शिकायत की, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके पहले भी थाने में शिकायत कर चुकी हूं। ससुराल पक्ष वालों के दबाव में आकर मेरी बात नहीं सुनी जा रही है। मेरे पिता से मिले घर को कब्जे में लेने के बाद मायके से मिली जमीन की भी रजिस्ट्री फर्जी वसीयत दिखाकर कर ली गई। एक करोड़ की संपत्ति में मकान और फूप में नेशनल हाईवे पर प्लॉट है। प्लॉट को भी मेरे पति के भतीजे ने फर्जी तरीके से बेच दिया है।
भतीजे ने फर्जीवाड़ा किया, मैंने नहीं
छाया देवी जहां अपने पति सियाराम शर्मा को भी दोषी बता रही है, वहीं सियाराम शर्मा अपने भतीजे को इस फर्जीवाड़े के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। सियाराम ने कहा, मेरी पत्नी खुद ही मेरे साथ नहीं रहना चाहती है। 2010 में अचानक घर छोड़कर चली गई। लंबे समय तक वापस नहीं लौटी तो मेरे भाई गंगाचरण शर्मा के बेटे सुबोध शर्मा ने मेरी पत्नी का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवा दिया। उसी के आधार पर फर्जी वसीयत बनाकर मेरी पत्नी के नाम की संपत्ति अपने नाम करा ली। कुछ संपत्ति को उसने बेच भी दिया है। मेरी पत्नी मुझ पर आरोप लगा रही है, जबकि मैं खुद अपने भतीजे के फर्जीवाड़े में फंसकर बेदखल हो गया हूं। न तो पत्नी का साथ मिल पाया और न ही भाई-भतीजे अपने हुए। मेरी पत्नी 12-13 साल पहले घर छोड़ गई। इस दौरान वो बिहार में किसी के साथ रह रही थी। अब वापस लौटकर इस तरह का आरोप लगा रही है। हमने 5-6 साल तक इंतजार किया। मृत्यु प्रमाणपत्र कहां से बना, किसने बनाया, कब बनाया? मुझे कुछ भी नहीं पता है। 12 साल बाद वापस लौटी, लेकिन अभी पांच माह हो गए, मेरे पास नहीं आ रही।
पुलिस जांच कर रही, कार्रवाई करेंगे: ASP
इस मामले में ASP कमलेश कुमार खरपुसे ने बताया कि महिला शिकायत करने आई थी। उनका कहना था कि मेरा मृत्यु प्रमाणपत्र फर्जी तरीके से बनवा लिया है। महिला ने ससुरालियों पर फर्जी तरीके से वसीयत कराकर प्रॉपर्टी बेचने का भी आरोप लगाया है। यह मामला देहात थाना पुलिस को दिया गया है। पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है। जांच के बाद जो तथ्य सामने आएंगे, उसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
पुलिस से शिकायत की, लेकिन न्याय नहीं मिला: वकील
पीड़िता के वकील राजेश शर्मा का कहना है कि महिला का फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र तैयार कराकर जमीन को बेचा गया है। इस संबंध में आवश्यक दस्तावेजों को भी उपलब्ध कराया गया है। पुलिस से भी शिकायत की है। अब तक पीड़िता को न्याय नहीं मिला है। हमारी पहली प्राथमिकता है कि महिला के फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। इसके बाद महिला की संपत्ति उसे वापस लौटाई जाए। पीड़िता के पक्ष में वैधानिक कार्रवाई करते हुए कानून की मदद ली जाएगी।