आतंकियों के खिलाफ हिंदुओं ने उठाई बंदूक

जम्मू-कश्मीर के राजौरी के डांगरी गांव के सरपंच धीरज हाथ में बंदूक लिए खड़े हैं। उनके बगल में सुभाष चंदर भी राइफल लिए हुए हैं। सुभाष सरकारी ऑफिस में प्यून हैं, बंदूकों से उनका कोई नाता नहीं। पीछे-पीछे सौरभ कुमार भी बंदूक लिए चले आ रहे हैं, वे BJP के ब्लॉक प्रेसिडेंट हैं। इनके साथ अजय कुमार और रमेश चंदर जैसे कई एक्स सर्विसमैन भी हैं, जो सालों पहले बंदूक छोड़ चुके थे, लेकिन अब फिर उठानी पड़ रही है।

डांगरी के आम लोगों के हाथ में बंदूकें हैं, महिलाएं भी बंदूक चलाने की ट्रेनिंग ले रही हैं। जब मां-बाप बंदूक चलाने की ट्रेनिंग कर रहे हैं, तो बच्चे दूर से देख रहे हैं। इस बार ये सब 1 जनवरी की शाम से शुरू हुआ है।

इस शाम दो आतंकी आए और AK-47 से 4 घरों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। जाते-जाते एक घर के बाहर बम प्लांट कर गए। हमले में 7 लोगों की मौत हुई और 11 लोग घायल हो गए। मरने वालों में 2 बच्चे भी थे। इस हमले के जवाब में विलेज डिफेंस कमेटी (VDC) के मेंबर्स की ट्रेनिंग तो शुरू हो गई है, लेकिन सवाल ये है कि बिना तनख्वाह ये कितने दिन चल पाएगी।

बालकृष्ण के एक फायर से भागे आतंकी
आतंकी बड़ी वारदात करने के इरादे से आए थे, लेकिन गांव के बालकृष्ण के पास एक पुरानी राइफल थी। उन्होंने एक फायर किया तो आतंकियों को लगा कि फोर्स आ गई, वे भाग गए। गांव में सिर्फ एक नहीं, बल्कि 71 पुरानी राइफलें मौजूद थीं।

हालांकि, कई साल से चलाना तो दूर, किसी ने उठाकर भी नहीं देखी थी। VDC के तहत साल 1998 से 2001 के बीच गांव वालों को 71 बंदूकें दी गई थीं। तब आतंकवाद चरम पर था, लेकिन इन बंदूकों की कभी जरूरत नहीं पड़ी।

1 जनवरी को हुई आतंकी वारदात के ठीक बाद 5 जनवरी को जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा ने वादा किया कि राजौरी में काम करने वाली विलेज डिफेंस कमेटी को डोडा की तर्ज पर तैयार किया जाएगा। उधर, जम्मू-कश्मीर पुलिस के DGP दिलबाग सिंह ने भी रिटायर्ड सैनिकों को VDC में शामिल करने की बात कही।

VDC मेंबर्स को पहली बार सेल्फ लोडिंग राइफल से ट्रेनिंग
विलेज डिफेंस कमेटी क्या है? ये क्या करती है? आतंकियों से कैसे लड़ती है और राजौरी में हुए हमले के बाद इसे क्यों मजबूत किया जा रहा है, इन सवालों के साथ हम राजौरी के उसी डांगरी गांव पहुंचे, जिसे आतंकियों ने निशाना बनाया था। हमले के बाद डांगरी गांव के लोगों को इकट्ठा कर पहली बार सेल्फ लोडिंग राइफल से ट्रेनिंग दी गई और फायरिंग भी कराई गई।

डांगरी गांव के पास ही BSF की फायरिंग रेंज में गांव वालों को ले जाया गया। VDC मेंबर्स से फायरिंग रेंज में भी गोलियां चलवाई गईं। इसके अलावा राइफल के रखरखाव की बेसिक ट्रेनिंग दी गई। अगर आतंकी हमला होता है तो वेपन रखने वाले VDC मेंबर को क्या करना है, सुरक्षाबलों ने इस बारे में ट्रेनिंग दी। ये ट्रेनिंग आस-पास के गांवों में भी दी जा रही है।

राइफल के मेंटेनेंस के लिए जेब से खर्च करना पड़ता है
धीरज आगे कहते हैं- ‘केंद्र सरकार ने VDC के लीडर को 4,500 और मेंबर को 4,000 रुपए देने की घोषणा की है, लेकिन पूरे राजौरी में किसी VDC मेंबर को तनख्वाह नहीं मिलती। गांव में सारे VDC मेंबर गुजारे के लिए कोई न कोई नौकरी, बिजनेस या खेती करते हैं। दिन भर लोग घर के बाहर रहते हैं। ऐसे में अगर दिन में आतंकी हमला कर दें, तो कौन उनका मुकाबला करेगा। VDC मेंबर को मेहनताना मिलेगा तो कुछ लोग गांव की सुरक्षा के लिए अपना वक्त देंगे।’

सुरक्षा के लिए पर्सनल वेपन खरीदना चाहते हैं गांव के लोग
धीरज के बाद हमारी मुलाकात डांगरी के ही नवनीत शर्मा से हुई। आतंकी वारदात के बाद नवनीत ही तुरंत मौके पर पहुंचे थे। वे कहते हैं- ‘गांव के लोगों के दिलों में जो दहशत फैली है, उसके बाद लोग पर्सनल वेपन रखने के बारे में सोचने लगे हैं।

राजौरी में VDC मेंबर को कभी नहीं दी गई तनख्वाह’
VDC को तनख्वाह न मिलने से जुड़ा सवाल लेकर हम राजौरी के SSP मोहम्मद असलम से बात करते हैं। असलम बताते हैं- ‘राजौरी में हुए हमलों के बाद हमने विलेज डिफेंस गार्ड्स को फिर से एक्टिव किया है।’

‘जम्मू रीजन में पिछले कई साल से इस तरह की कोई आतंकी गतिविधि नहीं देखी गई थी, इसलिए VDC की देखरेख अच्छे तरीके से नहीं हो पा रही थी। राजौरी के जिस गांव में आतंकी हमला हुआ, वहां VDC मेंबर्स के पास 71 राइफल थीं। दिक्कत ये है कि कई साल से इन हथियारों को चेक नहीं किया गया।’

आतंकी घटना के बाद कितने VDC मेंबर को नए वेपन दिए हैं, इसके जवाब में SSP असलम कहते हैं- ‘इसका खुलासा नहीं किया जा सकता, ये सुरक्षा का मामला है। हमने तय किया है कि VDC में शामिल हुए नए मेंबर्स को वेपन नहीं दिए जाएंगे। इसके बदले हम लाइसेंस पॉलिसी में छूट दे रहे हैं। गांव के लोग वेपन खरीदना चाहते हैं, तो पुलिस आसानी से लाइसेंस बनाकर देगी। ये तय है कि मानदेय नहीं दिया जाएगा। सिर्फ वेपन दिए गए हैं, लोकल थाने में उनकी मीटिंग कर निर्देश देते रहेंगे।’

VDC का नाम VDG हुआ, लेकिन बदला कुछ नहीं
मार्च 2022 में केंद्र सरकार ने विलेज डिफेंस कमेटी का नाम बदलकर विलेज डिफेंस गार्ड्स (VDG) कर दिया था। इसके तहत हर मेंबर को एक राइफल और 100 गोलियां देना तय किया गया है। VDG के लीडर को 4,500 रुपए और सदस्यों को 4,000 रुपए हर महीने दिए जाएंगे। पहले VDC योजना के तहत सिर्फ कमेटी के लीडर स्पेशल पुलिस ऑफिसर (SPO) को 1,500 रुपए महीना दिया जाता था।

विलेज डिफेंस गार्ड्स में कम से कम 15 सदस्य होते हैं। इसमें रिटायर्ड फौजी, पूर्व पुलिसकर्मी होते हैं। कुछ लोग VDG में अपनी इच्छा से शामिल होते हैं। इन सदस्यों में से कम से कम 5-6 लोगों को .303 राइफल दी जाती हैं।

 आतंक फैला, तो VDC बनी
1990 में कश्मीर घाटी में आतंकवाद तेजी से फैलने लगा था। इसी दौरान साउथ कश्मीर रीजन से जम्मू के किश्तवाड़, डोडा, बदरवा, रामबन, रियासी, राजौरी, पुंछ की तरफ आतंकी घुसपैठ बढ़ने लगी। एक तरफ तो सीमा पार से आतंकी आ रहे थे, दूसरी तरफ कश्मीर के आतंकवादी भी जम्मू रीजन में हिंदू अल्पसंख्यक गांवों को टारगेट करने लगे।

जम्मू रीजन के ये जिले और कश्मीर के बीच पीर पंजाल पर्वतमाला है। इसी को पार कर आतंकी जम्मू रीजन में घुस रहे थे। साल 1993 में जम्मू के किश्तवाड़ जिले में आतंकियों ने एक साथ 13 लोगों की हत्या कर दी। इस घटना के बाद आतंकियों से लड़ने के लिए गांवों के स्तर पर ही लोगों को संगठित करने का फैसला लिया गया।

आर्मी, सेंट्रल पुलिस और जम्मू कश्मीर पुलिस तीनों फोर्स के लिए चिंता थी कि आतंकवाद को जम्मू आने से रोका जाए। कश्मीर में अल्पसंख्यक आबादी यानी कश्मीरी पंडितों का पलायन हो चुका था, इसके बाद आतंकी गुटों ने जम्मू रीजन के पहाड़ी इलाकों से भी हिंदू अल्पसंख्यकों को भगाने की रणनीति बनाई थी।

कश्मीर घाटी से इतर जम्मू के पहाड़ी इलाकों की स्थिति अलग थी, पहाड़ी इलाकों में फोर्स का मूवमेंट मुश्किल था। अगर आतंकी कहीं हमला करते, तो उस जगह तक फोर्स काे पहुंचने में ही कई घंटे का वक्त लग जाता। ऐसे में आतंकियों को हमला करके भागना आसान था। यहीं से स्थानीय लोगों को वेपन ट्रेनिंग देने का आइडिया आया।

इलाके में क्या बदला?
पूर्व DGP वैद्य बताते हैं- ‘VDC बनने से पहाड़ी इलाकों से पलायन रोका जा सका। कुछ हिंदू अल्पसंख्यकों का जम्मू इलाके से भी पलायन शुरू हो गया था, उनके लिए रियासी में कैंप भी बनाया गया था। VDC के काम शुरू करने के बाद पलायन रुक गया। उस वक्त VDC ने आतंकियों से कड़ी टक्कर ली, इसके कई मेंबर ने आतंकवाद से लड़ने के दौरान शहादत भी दी।’

‘राजौरी, पुंछ, जम्मू के उन सीमावर्ती इलाकों में भी ये कमेटी बनाई गई, जहां सीमा पार से घुसपैठ की आशंका थी। तब सीमा पर फेंसिंग नहीं हुआ करती थी और आतंकियों का बॉर्डर पार करना बहुत आसान था। क्रॉस बॉर्डर घुसपैठ के रास्तों को स्थानीय पहाड़ी लोग अच्छे से समझते थे। घुसपैठ रोकने के लिए कई VDC ने एंबुश भी लगाए। VDC ने फोर्स मल्टीप्लायर बनने का भी काम किया।’

वैद्य आगे बताते हैं- ‘पिछले कई साल से जम्मू इलाके में कोई आतंकी घटना नहीं होने से VDC की ट्रेनिंग और उन्हें दिए जाने वाले वेपन में कमी आई। पिछले साल सरकार ने VDC को फिर से मजबूत करने के लिए योजना बनाई है। हाल में राजौरी में हुए आतंकी हमले के बाद ये और भी ज्यादा जरूरी हो गया है।’

‘अब सरकार ने विलेज डिफेंस गार्ड के तहत जो नीति बनाई है, उसे जमीन पर लागू करने की जरूरत है। विलेज डिफेंस कमेटी जितनी मजबूत होंगी, पुलिस और सुरक्षाबलों का काम उतना आसान होगा। ‘

सवालों के घेरे में  रहा, लोगों के हाथों में हथियार देना
जिस दिन हम राजौरी के अपर डांगरी गांव में थे, उससे एक दिन पहले राजौरी के पड़ोसी जिले पुंछ से खबर आई कि सुरनकोट तहसील के गांव मड़ा में रूबीना कौसर की गोली लगने से मौत हो गई। इस मामले में उसके पति को हिरासत में ले लिया गया।

जानकारी मिली कि पति निसार अहमद विलेज डिफेंस कमेटी (VDC) का सदस्य है। आरोप है कि उसने सरकारी बंदूक से पत्नी को गोली मारी थी। आम लोगों को VDC मेंबर बनाकर उन्हें हथियार देने का सबसे बड़ा खतरा इसी तरह की घटनाएं हैं।

आदिवासियों को दिए गए थे हथियार, सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताया
अपनी सुरक्षा के लिए आम लोगों को हथियार देने वाला जम्मू-कश्मीर पहला राज्य नहीं था। जम्मू में VDC बनने के 10 साल बाद छत्तीसगढ़ में सलवा जुडूम नाम से नक्सलियों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ। इसे भी सरकार का समर्थन था। हालांकि, ये आंदोलन अपने मकसद से भटक गया। सलवा जुडूम समर्थकों पर हत्या जैसे आरोप लगने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ये आंदोलन खत्म कर दिया गया।

राजौरी के अपर डांगरी गांव में 1 जनवरी 2023 की शाम को 2 अनजान लोग घुस आए। पूछ-पूछकर हिंदुओं को गोली मारी। लोग बचकर घरों में भागे तो दरवाजों पर ही AK-47 राइफल से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं। ये सब 15 मिनट चला और 5 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। आतंकी जाते हुए बाल्टी के नीचे एक बम छिपा गए। 2 जनवरी की सुबह 2 बच्चों की इससे मौत हो गई। हमले में मारे गए दो लड़कों की मां गुस्से में कहती हैं- ‘उन्हें (आतंकी) पकड़ लाओ, मैं खुद गोली मार दूंगी।’

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