वैलेंटाइंस वीक निकल गया। जिनकी जोड़ी नहीं बनी, वो संन्यास नहीं लेंगे। घर वाले, रिश्तेदारों-दोस्तों या फिर किसी ऐप से सहारे अपना घर बसाने की सोचेंगे। कहीं अगुआ, कहीं ‘बर्तुहार’ तो कहीं नाई-पंडित से लेकर फूफा-मौसा-ताऊ और प्रोफेशनल एजेंट तक इस काम में लगाए जाएंगे। नई पीढ़ी, नई टेक्नॉलजी के सहारे घर बसाने का बंदोबस्त करेगी।
संयोग है कि ‘प्रेम सप्ताह’ बीतने के तुरंत बाद शादियों का लग्न शुरू हो रहा है। जिन्हें फरवरी में उनका वैलेंटाइन नहीं मिला या मिली, उनके लिए शादियों का ये सीजन सौगात बनकर आएगा।
लेकिन सवाल यह भी है कि उनके लिए रिश्ते कैसे ढूंढ़े जाएंगे? बहुत पुरानी बात नहीं है, जब दिल्ली की दीवारों पर ‘दुल्हन वही जो पाठक जी दिवलाएं’ जैसे इश्तेहार लगे रहते थे। आज भी ढेर सारे ऐप और मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स मनचाहा रिश्ता दिलाने का वादा कर रही हैं। पुराने समय में ये जिम्मेदारी बुजुर्गों के कंधे पर होती।
आज हम आपको मैच मेकिंग के बदलते रूप से रुबरू कराएंगे। यह भी जानेंगे कि कहां दूल्हों का मेला लगता है और कभी रिश्ते ढूंढने का जो काम नाई तो करते थे, कूरियर के जमाने में वे आज भी शादी का कार्ड लोगों के घर देने जाते हैं। लेकिन पहले बात करते हैं आज के दौर की-
3 हजार करोड़ रुपए की है ऑनलाइन इंडियन मैचमेकिंग इंडस्ट्री
केन रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक देश में ऑनलाइन मैचमेकिंग इंडस्ट्री का बिजनेस 3 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। इसमें बड़ा हिस्सा मंझोले और छोटे शहरों का है। गांवों में भी ऑनलाइन मैचमेकिंग के जरिए रिश्ता ढूंढने का चलन बढ़ा है।
बड़े शहरों से ऑपरेट होने वाली मैचमेकिंग साइट्स गांव-देहात के लोगों की जरूरतों और मान्यताओं का बखूबी ख़याल रखती हैं। जाति-धर्म से लेकर गोत्र मिलाने तक के ऑप्शन मौजूद होते हैं।
देश में प्रोफेशनल मैट्रिमोनियल वेबसाइट 2000 के आसपास आई
साल 2000 के आसपास देश में पहली मैट्रोमोनियल साइट लॉन्च हुई। इससे पहले मैरिज ब्यूरो की वेबसाइट्स तो बन गई थीं, लेकिन वो केवल अपना विज्ञापन करती थीं और ऑनलाइन सर्विस प्रोवाइड नहीं कराती थीं। इसके बाद वेडिंग वेबसाइट्स और मैट्रिमोनियल ऐप्स की बाढ़ सी आ गई। मैचमेकिंग का ऑनलाइन तरीका सबसे आसान और सस्ता था। जिसके चलते यह दिनोंदिन पॉपुलर होता गया।
देश में 2600 से ज्यादा मैट्रिमोनियल साइट्स, सैकड़ों ऐप
‘मैरिज इन साउथ एशिया’ किताब में भारत में मैचमेकिंग के बदलते तौर-तरीकों की पड़ताल की गई है। इसके मुताबिक देश में फिलहाल 2600 से ज्यादा एक्टिव मैचमेकिंग वेब साइट्स और सैकड़ों ऐप मौजूद हैं। दिनोंदिन इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है।
मैट्रिमोनियल बेवसाइट आने के बावजूद आज भी देश में पुराने तौर-तरीकों से सामूहिक विवाह होते रहते हैं। ऐसा ही एक मेला बिहार के मिथिला में लगता है।
बिहार के मिथिला में 700 साल से लगता है दूल्हे का मेला
700 साल पुरानी बात है। बिहार के मिथिला इलाके में कर्णाट वंश के राजा हरिसिंह देव का राज था। उनका राज आधुनिक नेपाल के मैथिल इलाके तक फैला था। राजा साहब पुराने ख्यालात के थे। उनका मानना था कि गोत्र में शादियां नहीं होनी चाहिए।
साथ ही गरीब घर के लड़के-लड़कियों को आसानी से रिश्ते मिलें, इसके लिए उन्होंने सौराठ सभागाछी की शुरुआत की। ये सभागाछी दरअसल, दूल्हों का मेला था। गुरुकुल से निकलने वाले लड़के यहां आते, जहां लड़की के घरवाले लड़के को देखते, मेले में मौजूद पंडितों के पास दोनों पक्षों की 7 पीढ़ियों का इतिहास होता; जिसे मिलाकर देखा जाता कि दोनों परिवारों के बीच पहले कोई रिश्ता तो नहीं हुआ। अगर सब कुछ ठीक लगता तो दोनों की शादी करा दी जाती। इसमें किसी भी तरह के दहेज का लेनदेन नहीं होता।
700 साल पुरानी ये सभागाछी आज भी लगती है; लेकिन अब यहां उतने रिश्ते तय नहीं होते। पहले मिथिला के राजा-महाराजा से लेकर आम लोगों तक को उनका जीवनसाथी यहीं मिलता था। अब बदलते परिवेश में लोग दूसरे तरीकों से भी रिश्ते ढूंढ़ने लगे हैं।
पंडितजी, नाई, मैरिज ब्यूरो और फिर आईं मैट्रिमोनियल साइट्स
पुराने जमाने में मैच मेकिंग यानी रिश्ते बनाने के लिए लोग समाज के बड़े बुजुर्ग और पंडितों के भरोसे रहा करते। उत्तर भारत के कुछ इलाकों में यह महत्वपूर्ण काम नाइयों के जिम्मे था।
नाई का पेशा ऐसा था कि उसके यहां समाज के हर वर्ग के लोग नियमित आते; जहां दूल्हा-दुल्हन के खानदान, गांव, उनके चाल-चलन और आर्थिक स्थिति की भी जानकारी ले ली जाती। नाई ही रिश्ते की शुरुआत कराता।
मैथिली-भोजपुरी में कई लोकगीत हैं, जिसमें लड़कियां नाई (हज्जाम) से राम-लक्ष्मण और गेंदे के फूल की तरह सुंदर दूल्हा ढूंढने की गुहार करती हैं। मसलन…
‘’सुनर वर खोजिहे रे हजमा हम अलवेल। जउवन फुलगेनमा रे हजमा’’
कहा जाता है कि पुराने समय में किसी की इज्जत बनाने और बिगाड़ने में नाई की बड़ी भूमिका होती थी। वह घर-घर जाकर शादियों का न्योता भी दिया करता था। मौखिक न्योते के साथ नाई लड़के की शादी की स्थिति में सुपारी और लड़की की शादी में पीले चावल देता था। बदले में उसे हर घर से अनाज और रुपए मिलते थे। कई जगह अब भी शादी के कार्ड नाई ही पहुंचाते हैं। इस दौरान उसकी पारखी नजर ब्याह करने लायक लड़के और लड़कियों की तलाश में रहती। जो नए रिश्ते तय करने में काम आता।
कोलकाता, मुंबई और दिल्ली में खुले मैरिज ब्यूरो
अंग्रेजों के जमाने में जब दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों की आबादी बढ़ी तो वहां रिश्ते ढूंढने के लिए पंडित-नाई और समाज के बड़े-बुजुर्ग नाकाफी पड़ गए। ऐसे में देश में मैरिज ब्यूरो खुलने शुरू हुए। जहां एक ऐजेंसी फीस लेकर वर-वधू ढूंढती थी। वैसे कह सकते हैं कि देश में मैरिज ब्यूरो अंग्रेज लेकर आए।
प्रेमी लेखक ने खोला था दुनिया का पहला मैरिज ब्यूरो
29 सिंतबर 1650 को इंग्लैंड में दुनिया का पहला मैरिज ब्यूरो खुला। इसे खोलने वाले हेनरी रॉबिन्सन नाम के अंग्रेज राइटर थे। उस वक्त का यूरोप काफी दकियानूसी था। शादी से पहले लड़के-लड़कियों का मिलना और संबंध बनाना बड़ा अपराध समझा जाता। पूरे यूरोप में शुद्धतावादी नैतिकता का जोर था।
हेनरी खुद प्रेम और आध्यात्म पर लिखते थे। ऐसे में उन्होंने लंदन की लड़कियों के लिए कुछ करने का फैसला किया। उन्होंने लंदन में ही एक ब्यूरो खोला, जो लड़के-लड़कियों को प्रेम और शादी के लिए मिलवाने का काम करता था।
दस्ताने से शुरू होती थी प्यार की दास्तां
17वीं-18वीं सदी तक इंग्लैंड और यूरोप के दूसरे हिस्सों में बड़े पैमाने पर मैरिज या डेटिंग ब्यूरो खुलने लगे। आज के डेटिंग ऐप्स में जिस तरह मैच या स्ट्राइक बनते हैं; उससे इतर पुराने समय में रूमाल या दस्ताने का इस्तेमाल किया जाता था।
मैरिज ब्यूरो पर पुरुष अपनी पंसद की लड़की के लिए दस्ताना छोड़ कर जाता। अगर अगले संडे वह लड़की उस दस्ताने को पहनकर चर्च आती तो इसका मतलब था कि वह लड़के में ‘इंट्रेस्टेड’ है।
कहीं गमला तो कहीं खिड़की से लटकाते थे रंगीन कपड़ा
भारत का सामाजिक तानाबाना यूरोप के मुकाबले काफी मजबूत था। यही वजह है कि यूरोप में नाई-पंडित इतने काम नहीं आते। वहां जिस घर में शादी लायक लड़की होती, वहां कुछ ऐसे निशान लगा दिए जाते कि लड़केवाले खुद रिश्ते लेकर आए। उदाहरण के लिए स्पेन में बालकनी में रंगीन गमले लगाए जाते, तो फ्रांस में खिड़की पर चटख रंग का कपड़ा लटकाया जाता।
वाइन की एक बढ़िया बॉटल लेकर लड़की के पिता से उसका हाथ मांगने वाले लड़के जवां मर्द समझे जाते थे।
अखबार में निकलने लगे थे रंगभेद वाले शादी के विज्ञापन
जो लोग मैरिज ब्यूरो को मोटी फीस नहीं दे पाते थे, उनके लिए अखबार का विज्ञापन काम आता। अखबार के छोटे से वर्गीकृत विज्ञापन में किस तरह के वर या वधू चाहिए; यह बताकर अपना नाम-पता और नंबर दिया जाता। जिसके आधार पर लोग आपस में संपर्क करते।
ऐसे विज्ञापनों में उस समय के समाज की सोच भी देखने को मिलती। जिससें ‘सिर्फ गोरी लड़कियों के लिए मान्य’ जैसी शर्तें लिखी होतीं।
जिसे देखते हुए 2022 में महिला दिवस पर ‘दैनिक भास्कर समूह’ ने फैसला किया कि अब अखबार में वैवाहिक विज्ञापनों में बेटियों के रंग से संबंधित विवरण जैसे कि कलर कॉम्प्लेक्शन- गोरी, गेहुआं और फेयर जैसे शब्द प्रकाशित नहीं किए जाएंगे।
जहां सब रहे नाकाम, वहां ऑनलाइन मैचमेकिंग आई काम
कोई किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, या सिर्फ साथ के लिए शादी करना चाहे यानी असेक्शुअल या 60 की उम्र में शादी करना चाहे; ऐसे लोगों के लिए रिश्ता ढूंढने का कोई भी ट्रैडीशनल साधन मौजूद नहीं है।
लेकिन ऑनलाइन मैच मेकिंग साइट अलग-अलग कैटिगरी में रिश्ते ढूंढ़ने में मदद करती हैं। देश में दर्जनों ऐसी वेबसाइट्स हैं जो कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के बीच रिश्ता कराती हैं।
मैरिज ब्यूरो के बाद आई मैट्रिमोनियल वेबसाइट, जिन्होंने लड़के-लड़कियों की सोच, पसंद-नापंसद, बैंक बैलेंस की जानकारी निकालकर रिश्ते जोड़ने की शुरुआत की।
मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स मांगती हैं पूरी जन्मपत्री, आदतों की भी पूरी छानबीन
मैरिज वेबसाइट्स पर लॉगिन के लिए प्रोफाइल बनानी होती है। इस दौरान वेडिंग वेबसाइट्स भावी दूल्हे या दुल्हन से जुड़ी तमाम जानकारियां लेती हैं। वेबसाइट्स ये जानना चाहती हैं कि आप यह प्रोफाइल खुद अपने लिए बना रहे हैं या किसी रिलेटिव, बेटा-बेटी, भतीजा-भतीजी या दोस्त के लिए। उम्मीदवार की कुंडली और आदतों की पूरी छानबीन की जाती है। पूछा जाता है कि आप वेजेटेरियन या नॉनवेजटेरियन हैं। वाइन या बियर पीते हैं या नहीं। क्या आपको डॉगी या बिल्ली रखना पसंद हैं या नहीं। आपका अपना घर है या नहीं।
शाहरुख-सलमान में कौन फेवरेट, बतानी होती है पसंद-नापंसद
वेडिंग वेबसाइट्स आपके व्यक्तित्व की खासियतों और हुनर की भी जानकारी मांगती हैं। पढ़ाई, लिखाई, पेंटिंग, कढ़ाई, फोटोग्राफी जैसे शौक के बारे में जानकारी देनी होती है। यह भी पूछा जाता है कि आप गाते हैं या सिर्फ गुनगुनाते हैं। आप क्या पढ़ना पसंद करते हैं। आपको ज्योतिष पसंद है या अंकविज्ञान पर विश्वास है। आपको किस तरह की मूवी देखना पसंद है। शाहरुख पसंद है या सलमान। आप थियटर या ट्रैवल क्या पसंद करते हैं। क्या आप ट्रैकिंग करते हैं? आपकी पसंद के स्पोर्ट्स कौन से हैं? हेल्थ को लेकर आप कितने अलर्ट हैं; जिम जाते हैं या योग करते हैं?
फूड हैबिट्स की थाली भी देखी जाती है
इतना सब जानने के बाद वेबसाइट्स आपके पहननावे की भी छानबीन करती हैं। आप वेस्टर्न ड्रेस पहनते हैं या इंडियन लुक पसंद हैं। जींस या कैजुअल वियर, आप क्या पहनना पसंद करते हैं। टी-शर्ट या टॉप में क्या पसंद है। पूछने वाले यहां तक भी पूछते हैं कि आपने ‘पठान’ देखी या ‘एन एक्शन हीरो’। वेडिंग वेबसाइट्स आपकी फूड हैबिट्स की कुंडली भी खंगाल लेती हैं। ‘चिली चाइनीज’ से लेकर ‘पंजाबी तड़के’ तक की आपकी पसंद की हर जानकारी उनके पास होती है।
लोअर या अपर मिडिल क्लास, परिवार का स्टेटस क्या है?
वेडिंग वेबसाइट्स आपका भाषा ज्ञान जानने के लिए प्रेमचंद और रस्किन बॉन्ड तक चली जाती हैं। उम्र से लेकर खाने तक आपकी कुंडली में झांकने के बाद परिवार का ब्योरा मांगा जाता है। परिवार के बारे में पूछकर आपका क्लास जानने की कोशिश की जाती है। पूछा जाता है कि आप लोअर मिडिल क्लास या अपर मिडिल क्लास किस फैमिली का हिस्सा हैं। आप न्यूक्लियर फैमिली में रहते हैं या जॉइंट फैमिली में रहना होता है। भाई-बहन की भी जानकारी ली जाती है। इन सबके बाद आपके गोत्र तक पूछा जाता है। यह भी पूछा जाता है कि आप पेरेंट के साथ रहते हैं या नहीं।
जो पड़ोस की आंटी नहीं जानतीं, वो वेबसाइट्स बता देती हैं
जीवनसाथी की तलाश करने वालों को ऑनलाइन वेबसाइट्स वो सारी जानकारी दे देती हैं जो नाई या आपके पड़ोस की आंटी भी नहीं दे पातीं। इन वेडिंग वेबसाइट्स में रिलेशनशिप मैनेजर होता है, जिसकी जिम्मेदारी होती है कि वो लड़का-लड़की की आपस में बात कराए। अगर लड़का-लड़की के बीच कुछ ‘क्लिक’ करता है तो वह मीटिंग फिक्स करता है। अब आप ये मत सोचिएगा कि रिलेशनशिप मैनेजर फ्री में आपको मिलवाने के लिए कोई मशक्कत करेगा। उसके लिए शुगन के रूप में पेमेंट करनी पड़ती है। कुंडली की ऑनलाइन मैचिंग पर कितने गुण मिल रहे हैं, इसकी भी जानकारी आपको घर बैठे ऑनलाइन मिल जाती है।
ये तो रही मेैट्रिमोनियल वेबसाइट्स पर प्रोफाइल बनाते वक्त मांगी जाने वाली जानकारी का ब्योरा, अंत में ऐसी वेबसाइट में आए नए बदलावों को भी जानना जरूरी है।
अहमदाबाद में खुला देश का पहला समलैंगिक मैरिज ब्यूरो
देश में आज भी सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता नहीं मिली है, लेकिन कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। जिसके बाद ऐसे जोड़ों को मिलाने वाली साइट्स भी बनने लगीं। देश में समलैंगिक जोड़ों को मिलाने वाला पहला मैरिज ब्यूरो अहमदाबाद में खुला। 24 साल की उम्र में इसे खोलने वाली उर्वी शाह का दावा है वो 30 से अधिक समलैंगिक जोड़ों का रिश्ता करवा चुकी हैं।
मैच मेकिंग साइट पर भी पहुंचे ठग, बुजुर्ग से 65 लाख की ठगी
मुंबई के रहने वाले 65 साल के एक बुजुर्ग अकेलेपन से परेशान थे। उनकी पत्नी की मौत काफी पहले हो गई थी। लॉकडाउन में अकेलापन उन्हें काफी खला। जिसके बाद उन्होंने एक फेमस मैट्रिमोनियल साइट पर रजिस्ट्रेशन कराया।
जहां एक युवती के साथ बुजुर्ग का मैच बना। दोनों में नबंर एक्सचेंज हुआ और बातें होने लगीं। धीरे-धीरे दोनों आपस में वीडियो कॉल भी करने लगे। इसी दौरान युवती ने बजुर्ग की अश्लील वीडियो बना ली।
बाद में इस वीडियो को वायरल करने की धमकी देकर युवती ने बुजुर्ग से 65 लाख रुपए ऐंठ लिए। जीवन भर की कमाई लुटाने के बाद बुजुर्ग ने पुलिस में कंप्लेन दर्ज कराई।
कोर्ट का फैसलाः शादी की गारंटी नहीं मैच मेकिंग साइट्स
देश में चलने वाली मैचमेकिंग साइट्स प्रीमियम मेंबरशिप के नाम पर मोटी फीस भी लेती हैं। ऐसा ही एक मामला कर्नाटक में सामने आया, जहां 35 साल के एक शख्स ने 53 हजार रुपए में एक मैट्रिमोनियल साइट की मेंबरशिप ली, लेकिन इतने पैसे खर्च करने और तमाम कोशिशों के बाद भी उसका कहीं पर भी रिश्ता पक्का नहीं हुआ।
नाराज होकर शख्स ने बेंगलुरु के एक कंज्यूमर कोर्ट में ऑनलाइन मैट्रिमोनियल सर्विस प्रोवाइडर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई भी मैट्रिमोनियल सर्विस प्रोवाइडर शादी की सुविधा दे सकता है, गारंटी नहीं ले सकता।
दुल्हन कोई भी दिलवाए, लेकिन पुरानी कहावत आज भी सच है, जोड़े स्वर्ग में बनते हैं, लेकिन निभाए धरती पर जाते हैं। जोड़ी किसी भी जरिए से बने, लेकिन इतना ध्यान रखें कि इमोशंस की ठगी होने पर शादी नहीं चलती।