लेखपाल का लालच या गलतियां, जिंदा जल गईं मां-बेटी:सड़क बनी तो जमीन महंगी हुई, परिवार के विवाद को रिश्वत ने अग्निकांड बनाया:
‘महिलाओं में आग लगाने की टेंडेंसी होती है, वे जल्दी आग लगाने के लिए उत्सुक हो जाती हैं।’ 17 फरवरी को जब कानपुर देहात की DM नेहा जैन ‘अग्निकांड’ के पीड़ित परिवार से मिल रही थीं, उसी दौरान UP सरकार में महिला कल्याण मंत्री प्रतिभा शुक्ला के पति अनिल शुक्ला वारसी ये सब कह रहे थे।
अनिल इतने पर भी नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा- ‘उनका (मां-बेटी) मरने का इरादा नहीं था। वे डरा रही थीं कि ऐसा करेंगी, तो प्रशासन के लोग भाग जाएंगे। ये सिर्फ हादसा है।’
कानपुर देहात में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान 44 साल की प्रमिला और 21 साल की नेहा की जिंदा जलने से मौत हो गई थी। इसके बाद ग्रामीणों ने पुलिस और प्रशासन की टीम को दौड़ा लिया था।
हालात ये थे कि उस दिन अफसरों ने भागकर जान बचाई। DM नेहा जैन भी शुक्रवार तक पीड़ित परिवार से मिलने की हिम्मत नहीं कर पाई थीं। ये मामला कितना बड़ा है, और आग लगाने के आरोपों में कितनी सच्चाई है, ये जानने के लिए मैं कानपुर देहात में उस जमीन पर पहुंचा, जहां ये घटना हुई थी।
झोपड़ी के बाहर जला सामान अब भी मौजूद, नेताओं का आना-जाना जारी
लखनऊ से लगभग 200 किमी दूर कानपुर देहात की मैथा तहसील में आने वाले गांव मड़ौली में अब भी नेताओं का आना-जाना जारी है। घटना के वायरल वीडियो में जो झोपड़ी आपने देखी होगी, वहां अब सिर्फ एक हिस्से में राख पड़ी है। झोपड़ी का छप्पर, जिस पर टिका हुआ था, वो ईंट-सीमेंट से बनी दीवार और पिलर भी टूटा हुआ है।
जमीन के एक हिस्से में लगा सरकारी नल और चबूतरे पर बना शिवलिंग भी टूटा पड़ा है। इस जमीन के सामने वाले हिस्से से गांव की रोड जा रही है, जबकि दोनों तरफ खेत हैं। चार दिन गुजर चुके हैं, लेकिन अब भी यहां UP पुलिस के जवान तैनात हैं। यहां से दो किमी दूर मड़ौली गांव में पीड़ित परिवार का घर है, सब वहीं मिलने जा रहे हैं।
मड़ौली की तरफ बढ़ा, तो गांव के बाहर रोड रोलर दिखा, सड़क बनाने का काम चल रहा था। सामने से एक बुजुर्ग आ रहे थे। उनसे पूछा तो हंसते हुए बोले- ‘बड़े-बड़े नेता आ रहे हैं, उन्हीं के लिए इंतजाम हो रहा है। इस बवाल से कुछ हो न हो, कम से कम सड़क तो बन गई।’
बुजुर्ग चले गए तो मैं मड़ौली के पंचायत भवन की तरफ चल दिया। पीड़ित परिवार के बेटे शिवम और अंश दीक्षित लोगों से यहीं मिल रहे हैं। मैंने वजह पूछी तो बताया गया कि उनके घर तक की सड़क पर गाड़ियां नहीं जा पा रही थीं, इसलिए यहां रुके हैं।
गांव में भी बड़ी संख्या में पुलिसवाले तैनात हैं। गली के आखिर में पीड़ित कृष्ण गोपाल दीक्षित का मकान है। मकान पुराना है, लेकिन पक्का है और 2 हजार स्क्वायर फीट (करीब 230 गज) में बना हुआ है। घर पर ताला लगा था। पड़ोसियों ने कहा कि उनसे मिलना है, तो पंचायत भवन ही जाना पड़ेगा।
आमने-सामने रहते हैं पीड़ित परिवार और आरोपी
कृष्ण गोपाल दीक्षित के घर के सामने ही आरोपी अशोक दीक्षित का घर है। पीड़ित पक्ष और आरोपी पक्ष आपस में रिश्तेदार हैं। दरवाजा खटखटाया तो एक महिला बाहर आई। घर के अंदर तीन महिलाएं और एक लड़की थी। महिलाओं में एक आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी और बाकी दो बहुएं हैं। दोनों बेटे आर्मी में हैं। बड़े भाई गौरव दीक्षित की पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में है, जबकि छोटे भाई अभिषेक की पोस्टिंग बेंगलुरु में है।
मैं सवाल करता हूं तो गौरव की पत्नी रुचि जवाब देती हैं, ‘मेरे परिवार को बचा लीजिए। मेरे पति और देवर का नाम लिया जा रहा है, जबकि घटना वाले दिन वे ड्यूटी पर थे। हम लोगों की नहीं सुनी जा रही है।’
किसी और महिला ने बात नहीं की, तो मैं पंचायत भवन की तरफ चल दिया। वहां पहुंचा तो पता चला कि पीड़ित परिवार से मिलने ब्राह्मण महासभा के लोग आए हैं। मुझे देखकर बेटा शिवम आ गया। मैंने मामले पर सवाल किया तो बोला- ‘घटना वाले दिन SDM लेखपाल, SO रूरा और 10-15 पुलिसवालों के साथ आए थे। हम उनसे छप्पर न गिराने की गुहार लगा रहे थे। मेरी मां हाथ जोड़ रही थी, लेकिन वो लोग नहीं माने। तभी किसी ने आग लगा दी।’
‘आग बुझाने की जगह, बुलडोजर से झोपड़ी ढहा दी। पुलिसवाले और SDM, लेखपाल किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की। हमने और पिताजी ने बचाने की कोशिश की, लेकिन हमारे हाथ जल गए। पिताजी भी बचाने में झुलस गए हैं।’
शिवम चुप हो गया तो छोटा भाई अंश बोलने लगा, ‘हम सिर्फ चाहते हैं कि आरोपियों को पकड़ा जाए। DM और SP सस्पेंड किए जाएं।’ इसी बीच समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण नेताओं का डेलिगेशन आ गया। दोनों भाई उठकर उनके पास चले गए। मैं वहां से निकला और घटना से जुड़े सवालों पर पड़ताल करने लगा।
पहला सवाल: क्या जमीन पर कृष्ण गोपाल दीक्षित के परिवार का 125 साल से कब्जा है?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए | गाटा नंबर के लिए हमने उस लेटर को देखा, जो अतिक्रमण गिराने के लिए SDM ज्ञानेश्वर प्रसाद की ओर से CO मैथा को फोर्स की डिमांड के लिए लिखा गया था।
लेटर में साफ लिखा है कि गाटा नंबर: 1642 मी. ग्राम समाज की जमीन है। जिसकी 0.2050 हेक्टेयर जमीन पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का कब्जा है। इसकी तस्दीक के लिए हमने वेबसाइट चेक की। पता चला कि जिस जमीन पर कब्जे की बात कही गई है वह सरकारी रिकॉर्ड में रानी देवी पत्नी रामनरेश के नाम दर्ज है।
रानी देवी आरोपी अशोक दीक्षित की बहन
पीड़ित पक्ष ने अशोक दीक्षित को मुकदमे में आरोपी बनाया है। अशोक दीक्षित के बेटे गौरव दीक्षित से पूछा तो उन्होंने बताया, ‘रानी देवी हमारी बुआ हैं। शादी के कुछ साल बाद उनके परिवार में विवाद होने से वे हमारे घर आ गईं।’
‘पिता को डर था कि उनके बाद उन्हें कोई परेशानी न हो, इसलिए 2004-05 में इस जमीन का पट्टा दिला दिया। जमीन पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था। वे भी परिवार के ही लोग हैं। हमने जमीन खाली करने को कहा, तो बोले कि हमारे पेड़ लगे हैं, जब काटेंगे तो जमीन छोड़ देंगे। कई साल बाद भी कब्जा नहीं हटा, तो हम लोगों ने शिकायत की। बुआ रानी देवी की तरफ से 22 दिसंबर 2022 को एप्लिकेशन लगाई गई थी, उसी पर ये कार्रवाई हुई है।
दूसरा सवाल: 18 साल से कब्जा नहीं हटा, अचानक क्या हुआ कि प्रशासन एक्टिव हो गया?
इसकी तस्दीक के लिए मैंने पीड़ित और आरोपी पक्ष दोनों ही परिवारों से बात की। पीड़ित परिवार की तरफ से शिवम ने बताया, ‘लेखपाल अशोक कुमार रिटायर्ड फौजी हैं। आरोपी अशोक दीक्षित के बेटे गौरव और अभिषेक भी फौज में हैं। ये लोग काफी नजदीक हैं। लेखपाल के कहने पर गौरव ने अपनी बुआ के नाम से शिकायत की थी।’
शिवम के भाई अंश ने आरोप लगाया कि ‘लेखपाल के जरिए अभिषेक और गौरव ने अधिकारियों को रिश्वत खिलाई। DM-SDM के पास भी रुपए पहुंचाए गए। हमारी मां-बहन को जलाकर मार दिया।’
इन आरोपों की छानबीन के लिए मैंने गौरव दीक्षित से भी बात की। उन्होंने बताया, ‘यह सही है कि लेखपाल अशोक कुमार रिटायर्ड फौजी हैं और हम भी फौजी हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी जमीन के लिए लड़ाई नहीं लड़ेंगे। लेखपाल को हमने कोई रुपए नहीं दिए हैं। वह सिर्फ सही काम कर रहे थे।’
मैंने इस मामले में गांव के लोगों से भी बात की। वे कैमरे पर आने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन गांव के ही रामरतन ने बताया कि लेखपाल की बदमाशी की वजह से ही इतनी बड़ी घटना हुई। उसने ही पैसा लिया और कब्जा हटाने पर अड़ गया।
तीसरा सवाल: जमीन से कब्जा हटाने से किसका सीधा फायदा था?
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए मैंने FIR की छानबीन की। FIR में पहले अशोक दीक्षित फिर अनिल दीक्षित का नाम है। दोनों भाई हैं। इनकी बहन रानी देवी के नाम ही जमीन है। यहां दो अन्य रिश्तेदारों की भी कहानी में एंट्री है।
निर्मल दीक्षित और विशाल दीक्षित भी पीड़ित पक्ष के रिश्तेदार हैं। इनमें से विशाल की जमीन विवादित जमीन से सटी हुई है। इसकी डिटेल वेबसाइट पर मौजूद है। भूलेख पर गेंदालाल के नाम से जमीन दिखाई दे रही है। गेंदालाल विशाल के पिता हैं।
छानबीन में पता चला कि विवादित जमीन के सामने से गांव की ओर जाने वाली लिंक रोड गुजर रही है। इससे जमीन की कीमत बढ़ रही है। 15 जनवरी 2023 को पीड़ित परिवार के खिलाफ लेखपाल अशोक कुमार ने रूरा थाने में FIR दर्ज कराई थी।
इस FIR में लेखपाल ने बताया है, ‘कानपुर देहात की गाटा नंबर- 1642 मि. रकबा 0.657 हेक्टेयर राजस्व अभिलेखों में ऊसर के खाते में दर्ज है और ग्राम सभा की संपत्ति है। इस जमीन के सामने से पक्की सड़क गुजर रही है, जिसकी वजह से यह जमीन बेशकीमती है।’ इस FIR में लेखपाल की भाषा से साफ है कि 18 साल बाद अचानक से जमीन से कब्जा हटाने के लिए आरोपी पक्ष क्यों एक्टिव हुआ था।
चौथा सवाल: क्या पीड़ित कृष्ण गोपाल दीक्षित दबंग और भूमाफिया हैं?
विवादित जमीन पर कुछ पक्का कंस्ट्रक्शन हुआ था, जिसके अब सिर्फ अवशेष नजर आते हैं। जहां मां-बेटी की जलकर मौत हुई, वहां भी जली ईंटें नजर आती हैं। इसी जमीन के आधे हिस्से में झोपड़ी बनी थी। पीड़ित परिवार के मुताबिक, कृष्ण गोपाल और घर के बच्चे रात में वहीं पर रखवाली के लिए रुकते थे।
लेखपाल और प्रशासन ने आरोप लगाया है कि कृष्ण गोपाल भूमाफिया और दबंग है। मैंने गांव में इस आरोप की पड़ताल की, तो पता चला कि परिवार के हालात आर्थिक तौर पर अच्छे नहीं हैं। गांव में जो पक्का मकान बना है, वह काफी पहले बनाया गया है।
कृष्ण गोपाल और बड़ा बेटा शिवम अपनी दो बीघा जमीन पर खेती कर घर का खर्च चलाते हैं। अंश की मोबाइल शॉप है। परिवार की बकरी और गाय के दूध से भी कुछ आमदनी होती थी। ज्यादातर गांववालों के मुताबिक, ये पारिवारिक झगड़ा था, जिसे लेखपाल ने इतना बड़ा बना दिया। पीड़ित परिवार दबंग नहीं है, जैसा कि लेखपाल ने जनवरी में हुई FIR में बताया है।
पांचवा सवाल: क्या अतिक्रमण हटाने के लिए नियमों के तहत कार्रवाई हुई?
किसी भी तरह का अतिक्रमण हटाने के लिए UP राजस्व संहिता-2006 के मुताबिक, धारा-67 में कार्रवाई होती है। ये ऐसे की जाती है:
- धारा-67 की उपधारा-1 के तहत ग्राम पंचायत में अगर किसी ग्राम समाज की जमीन पर कब्जा किया जाता है, तो लेखपाल पहले SDM को जानकारी देगा।
- इसके बाद उपधारा-2 के तहत SDM की तरफ से कब्जा करने वालों को नोटिस दिया जाएगा। इसमें उस पर जुर्माने की रकम की जानकारी दी जाएगी। साथ ही पूछा जाएगा कि क्यों न उसे इस जमीन से बेदखल कर दिया जाए।
- उपधारा-3 के तहत अगर नोटिस के बाद भी कब्जा करने वाला जवाब नहीं देता है, तो SDM को अधिकार है कि वह कब्जा हटाने का आदेश दे सकता है। इसके लिए ताकत का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। साथ ही उससे जुर्माना भी वसूल किया जा सकता है।
- उपधारा-4 के तहत SDM को लगता है कि कब्जा करने वाला व्यक्ति दोषी नहीं है, तो नोटिस को खारिज भी किया जा सकता है।
- SDM के नोटिस के बाद उस तारीख से 30 दिन के भीतर कब्जा करने वाला व्यक्ति DM के यहां अपील कर सकता है।
पीड़ित पक्ष से जब इस मामले की पड़ताल हुई, तो आरोपी पक्ष की तरफ से 22 दिसंबर 2022 को एप्लिकेशन दी गई थी। 13 जनवरी 2023 को कृष्ण गोपाल दीक्षित की झोपड़ी पर कार्रवाई करने लेखपाल और पुलिस पहुंच गए। पीड़ित परिवार 13 जनवरी की रात को ही DM ऑफिस पहुंच गया।
इससे नाराज होकर अफसरों ने 15 जनवरी को थाना रूरा में अवैध कब्जे की FIIR दर्ज कराई। इसी में पीड़ित परिवार को दबंग बताया गया। इसके साथ ही DM ऑफिस के सामने पीड़ित परिवार के धरने को अवैध बताते हुए थाना अकबरपुर में एक मुकदमा दर्ज किया गया।
पीड़ित परिवार के छोटे बेटे अंश कहते हैं, ‘हमें कब्जा हटाने का कोई भी नोटिस न पहले दिया गया, न ही बाद में। 13 फरवरी को कब्जा हटाया गया, उसी दिन हमें नोटिस भी दिया गया था। हमारा केस कोर्ट में है, लेकिन फिर भी कार्रवाई कर दी गई।’
पीड़ित परिवार के इस दावे का सच SDM के लेटर से भी सामने आता है। SDM ने 13 फरवरी 2023 को CO मैथा को लेटर लिखकर कब्जा हटाने के लिए फोर्स मांगी थी। ये लेटर 13 फरवरी को ही भेजा गया था।
छठवां सवाल: मौके पर जो टीम पहुंची, क्या वो ऐसी कार्रवाई के लिए तैयार थी?
इस सवाल के जवाब के लिए मैंने UP के पूर्व DGP विक्रम सिंह से बात की। उन्होंने बताया- ’ऐसे ऑपरेशन में अगर किसी की जान जाने लगे, तो मौके पर मौजूद अफसरों की पहली जिम्मेदारी है कि सब छोड़कर पहले जानमाल की हिफाजत करें। ऑपरेशन को तुरंत रोक देना चाहिए था।’ विक्रम सिंह ने आगे कहा, ‘इस अतिक्रमण को हटाने के ऑपरेशन में प्रशासन और पुलिस से तीन चूक हुई:
- जो अफसर और पुलिस के लोग वहां मौजूद थे, उनको ऐसे ऑपरेशन का अनुभव नहीं था। महिला ने मरने की धमकी देते हुए खुद को बंद किया था, तभी ऑपरेशन रोककर उसे बचाने की कोशिश करनी चाहिए। उसके उलट JCB से झोपड़ी को गिरवा दिया गया।
- जब ऐसा ऑपरेशन करना था, तो आपको साथ में एम्बुलेंस लेकर जाना चाहिए था, वहां एम्बुलेंस भी नहीं थी।
- जिस तरह से मां-बेटी जलीं, ऐसा लगता है कि उन्हें बचाने की बस नाममात्र की कोशिश की गई, क्योंकि न आग को बुझाने की कोशिश हुई, न ही पीड़ितों को अस्पताल पहुंचाने की। मां-बेटी जलती रहीं और प्रशासन-पुलिस अपनी जान बचाने में लगा रहा।
सातवां सवाल: क्या कानपुर देहात की DM नेहा जैन का वीडियो हादसे की रात का है?
इस सवाल के जवाब की तलाश में मैं कानपुर देहात मुख्यालय पहुंचा। यहां मेरी मुलाकात DM नेहा जैन से हुई। वे बताती हैं- ‘हमने एक महोत्सव का आयोजन किया था। ये 6 से 12 फरवरी तक था और कई बड़े कलाकारों ने इसमें हिस्सा लिया। फिट इंडिया कैंपेन के तहत मैंने हूपला डांस किया था। ये डांस का वीडियो घटना के दिन का नहीं है। कोई भी अधिकारी इतना संवेदनहीन नहीं हो सकता।’
नेहा जैन आगे बताती हैं- ‘मैं 17 फरवरी को मड़ौली गांव गई थी। पीड़ित परिवार से मिलकर मैंने उनकी बात सुनी है। मैंने शिवम और अंश से भी बात की है। पीड़ित परिवार के साथ मेरी पूरी संवेदनाएं हैं। परिवार के लिए जो भी हो सकेगा, हम जरूर करेंगे। फिलहाल SIT की जांच चल रही है, इसलिए मैं ज्यादा नहीं बोल सकती।’
पुलिस की भूमिका की भी हो रही जांच :
लौटने से पहले मेरी मुलाकात कानपुर देहात के SP बीबीजीटीएस मूर्ति से हुई। वे बताते हैं- ‘इस मामले में हत्या के साथ-साथ अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लेखपाल और JCB ड्राइवर को अरेस्ट कर लिया गया है। रूरा थाने के SO को सस्पेंड कर दिया गया है।’
‘इस मामले में 12 नामजद और अन्य को आरोपी बनाया गया है। फरार आरोपियों की तलाश की जा रही है। मामले में पुलिस की भूमिका क्या रही है, इसकी जांच एडिशनल SP को सौंपी गई है। इसके अलावा शासन के निर्देश पर SIT जांच भी चल रही है।’
पीड़ित पक्ष की ओर से कराई गई FIR में SDM, लेखपाल, एसओ के भी नाम हैं। SDM पर आग लगवाने और लेखपाल पर आग लगाने का आरोप है।
पहली नजर में ये एक परिवार का जमीन विवाद नजर आता है, जिसे सरकारी सिस्टम की घूसखोरी ने एक दर्दनाक दुर्घटना में तब्दील कर दिया। 13 फरवरी को पुलिस और प्रशासन ने जो कार्रवाई की, उसे भी किसी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता।
हमारे बाप-दादाओं ने आजादी से पहले यहां घर बनाया था। इस दुकान पर तो 20 साल से मैं ही बैठ रहा हूं। मथुरा के हिंदू भाई तो अमन-चैन से रहना चाहते हैं, बाहरी लोग यहां आकर मंदिर-मस्जिद करते हैं।’ ये कहते हुए शाकिर के चेहरे पर डर और गुस्सा एक साथ नजर आता है। दिसंबर 2022 में मथुरा के लोअर कोर्ट के आदेश के बाद से कृष्ण जन्मभूमि के आसपास रहने वाले हिंदू-मुस्लिम व्यापारियों की नींद उड़ी हुई है।