6 लाख सैनिक रूस को गए कुचलने फ्रांस को इसकी याद क्यों दिला रहा रूस

 

रूस फ्रांस के राजा नेपोलियन बोनापार्ट ने 6 लाख सैनिकों के साथ रूस पर चढ़ाई कर दी। इसका मकसद ब्रिटेन की आर्थिक नाकेबंदी के लिए रूस को राजी करना था। उस वक्त रूस में जार अलेक्जेंडर-1 का शासन था।

जार अलेक्जेंडर-1 की स्ट्रैटजी से नेपोलियन गच्चा खा गया। मॉस्को को जीतने के बावजूद भीषण सर्दी की वजह से 4 दिसंबर 1812 को नेपोलियन को सिर्फ 95,000 सैनिकों के साथ फ्रांस वापस लौटना पड़ा। यानी नेपोलियन ने रूस में अपने 5 लाख 5 हजार सैनिकों को गंवा दिया।

रूस ने रविवार को फ्रांस को इसी हार की याद दिलाई। दरअसल, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ‘ली जर्नल डू डिमांचे’ से एक बातचीत में कहा कि फ्रांस चाहता है कि रूस यूक्रेन में तो हार जाए, लेकिन हम कभी नहीं चाहते कि वह कुचल दिया जाए।

फ्रेंच रेवोल्यूशन यानी फ्रांसीसी क्रांति के दौरान एक प्रमुख व्यक्ति बनने से पहले नेपोलियन एक साधारण शख्स था। नेपोलियन का जन्म कोर्सिका के अजाचियो में 15 अगस्त 1789 को हुआ। नेपोलियन के जन्म से एक साल पहले ही फ्रांस ने कोर्सिका द्वीप को जेनेवा से जीता था।

नेपोलियन नौ साल की उम्र में पढ़ाई के लिए फ्रांस पहुंच गया। शुरुआती पढ़ाई ऑटुन में हुई। इसके बाद नेपोलियन 5 साल तक ब्रिएन में रहा। इसके बाद पेरिस की मिलिट्री एकेडमी में पढ़ाई की। नेपोलियन अभी 16 साल का ही हुआ था, इसी बीच पिता की मौत हो गई और परिवार पैसे की तंगी से जूझने लगा।

आर्थिक तंगी के चलते नेपोलियन आर्टिलरी में लेफ्टिनेंट के रूप में फ्रांसीसी सेना में शामिल हुआ। इस दौरान वह खाली टाइम में मिलिट्री स्ट्रैटजी और वॉर से जुड़ी किताबें पढ़ता था। 1786 में ग्रेजुएशन की डिग्री मिलने के बाद नेपोलियन कोर्सिका लौट आया।

फिर 2 साल तक सेना की नौकरी पर गया ही नहीं। इसी बीच साल 1789 में फ्रांस में लोकतांत्रिक क्रांति हो गई। इसके बाद नेपोलियन फिर से परिवार सहित फ्रांस पहुंचता है। इसी बीच फ्रांस की सरकार का विरोध कर रहे सैनिकों ने टौलॉन शहर को अंग्रेजों के हवाले कर दिया।

दक्षिणी फ्रांस स्थित टौलॉन, भूमध्यसागर में बड़ा सैन्य अड्डा था। फ्रांस के लिए टौलॉन को दोबारा जीतना जरूरी थी। टौलॉन को वापस लाने का जिम्मा नेपोलियन को सौंपा जाता है। नेपोलियन की स्ट्रैटजी से ब्रिटिश सेना को पीछे हटना पड़ा।

युद्ध में नेपोलियन की स्ट्रैटजी के किस्से मशहूर होने लगे। यही वजह थी कि महज 24 साल की उम्र में नेपोलियन को ब्रिगेडियर जनरल बना दिया गया। पेरिस में नई फ्रांसीसी क्रांतिकारी सरकार के खिलाफ विद्रोह छिड़ गया।

ब्रिगेडियर बोनापार्ट को विद्रोह को रोकने के लिए कहा गया। वह कभी भी विद्रोहियों पर गोली चलाने के पक्ष में नहीं था, लेकिन युवा सेनापति को अराजकता से और भी नफरत थी। सिर्फ 26 साल की उम्र में नेपोलियन फ्रांस की आंतरिक सेना का जनरल बन गया।

इसके बाद 1804 में 35 वर्ष की आयु में वह ‘एम्परर ऑफ द फ्रेंच’ (Emperor of the French) बना। इसका मतलब नेपोलियन फ्रांस देश का राजा नहीं, बल्कि फ्रांसीसी लोगों का राजा था। उसने लोगों को निजी आजादी का अधिकार दिया। लोगों को अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार दिया।

नेपोलियन ने ही कानून के सामने सब को बराबरी के अधिकार के सिद्धांत की बुनियाद रखी। इस दौरान उसने फ्रांस में सबसे ताकतवर सेना तैयार की। साल 1805 में नेपोलियन ने जिंदगी की सबसे बड़ी जंग जीती। यानी राजा बनने के एक साल के अंदर।

ये युद्ध चेक रिपब्लिक के ऑस्टरलित्ज में हुआ था। यहां मुकाबला था ऑस्ट्रिया और रूस की सेनाओं से। नेपोलियन ने जाल बिछाकर दुश्मन के 26 हजार सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। वहीं इस युद्ध में नेपोलियन के सिर्फ 9 हजार सैनिक ही मारे गए। इस जीत से नेपोलियन ने यूरोप पर अपना दबदबा कायम कर लिया। साथ ही अपने दौर का सबसे महान सैन्य कमांडर बन गया।

साल 1807 में नेपोलियन ने एक बार फिर से रूस को हराया। इस लड़ाई को बैटल ऑफ फ्रीडलैंड के नाम से जाना जाता है। इसके बाद नेपोलियन ने रूस के जार अलेक्जेंडर-1 के साथ तिलसिट की संधि की। इस संधि में तय हुआ कि दोनों एम्पायर मुश्किल की घड़ी में एक दूसरे की मदद करेंगे।

यहां पर विशेष रूप से ब्रिटेन की आर्थिक नाकेबंदी में साथ देना शामिल था। इस फैसले से रूस की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा। यही वजह थी कि साल 1810 में जार अलेक्जेंडर-1 नेपोलियन के साथ हुए समझौते को तोड़ने और ब्रिटेन के साथ खुले तौर पर व्यापार करने के लिए मजबूर हो गया।

यह नेपोलियन को नाराज करने के लिए काफी बड़ा कदम था। तनाव तेजी से बढ़ा और बातचीत की सारी कोशिशें नाकाम रहीं। इससे गुस्साए नेपोलियन ने जून 1812 में अपनी ग्रैंड आर्मी के 6,00,000 सैनिकों को रूस पर कब्जा करने के लिए भेज दिया।

नेपोलियन बोनापार्ट को मॉस्को पर कब्जा करने के बाद भी वापस क्यों लौटना पड़ा?

फ्रांसीसी एम्परर का प्लान 20 दिनों के अंदर रूस पर कब्जा करने का था। नेपोलियन ने उस वक्त कहा था कि मैं अलेक्जेंडर को जानता हूं। शायद वह ग्रैंड आर्मी को देखने मात्र से सरेंडर कर देगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो ब्रिटेन की नफरत तले रूस को कुचल दिया जाएगा।

‘द ब्रिटिश आर्मी अगेंस्ट नेपोलियन: फैक्ट्स, लिस्ट्स एंड ट्रिविया 1805-1815’ के लेखक रॉबर्ट बर्नहैम के मुताबिक युद्ध जीतने के लिए नेपोलियन ने अपने सैनिकों को पहले प्रमुख स्थानों पर कब्जा करने और फिर दुश्मन को नष्ट करने के अपने आजमाए हुए और परखे हुए तरीके पर भरोसा किया।

लेकिन जब ग्रैंड आर्मी रूसी क्षेत्र में पहुंची तो जार की सेना काफी पीछे हट गई। इससे नेपोलियन की सेना को अपेक्षा से अधिक लंबी दूरी तय करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे खाने और अन्य साजोसामान की कमी हो गई। नेपोलियन के सैन्य रणनीतिकारों ने यह भी महसूस किया कि रूस में रिस्टॉकिंग एक कठिन काम था क्योंकि यहां पर सड़कें बहुत खराब थीं।

बर्नहैम बताते हैं कि रूसी सैनिकों की यह रणनीति काफी कारगर सिद्ध हुई। रूसी सेना ने पीछे हटने से पहले ही खाने और सभी जरूरी सामानों को जलाकर नष्ट कर दिया था। इसके चलते नेपोलियन के सैनिक भूख, थकान और डायरिया जैसी बीमारियों से जकड़ने लगे।

सितंबर 1812 में जब फ्रांस की सेना ने मॉस्को पर कब्जा किया, तब तक 2 लाख से ज्यादा फ्रांसीसी सैनिक या तो मर चुके थे या बीमारी और थकावट की वजह से अस्पताल में भर्ती थे। जब जार ने हफ्तों तक नेपोलियन की किसी भी प्रस्तावित बातचीत का जवाब देने से इनकार कर दिया तो फ्रांसीसी एम्परर ने अपने सैनिकों को वापस फ्रांस लौट आने का आदेश दिया।

इसके बाद अक्टूबर के मध्य में जब फ्रांस की सेना वापस लौटने की तैयारी कर रही थी। उसी वक्त मॉस्को में हाड़ कंपाने वाली सर्दी का दौर शुरू हो गया। तापमान माइनस 22 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। इससे स्थिति नियंत्रण से बाहर होने लगी और एक-एक कर फ्रांसीसी जवानों की ठंड से मौत होने लगी।

फ्रांसीसी सेना के हजारों घोड़ों की ठंड से जान चली गई। खाना खत्म हो गया। यहां तक कि भूख से परेशान फ्रांस के सैनिकों में मरे हुए घोड़ों का मांस खाने की होड़ मच गई। लिहाजा सैनिक एक-दूसरे को ही मारने लगे। बर्नहैम बताते हैं कि दिसंबर की शुरुआत में जब नेपोलियन की सेना पोलैंड पहुंची, तब तक 6 लाख सैनिकों में से सिर्फ 95 हजार सैनिक ही बचे थे।

इस हार का नेपोलियन पर क्या असर पड़ा?

रूस पर फ्रांस की हार यूरोप के दूसरे देशों को नेपोलियन के विरुद्ध एकजुट करने में काफी मददगार रही। रूस से लौटने के बाद नेपोलियन की सेना में महज 10 हजार सैनिक ही युद्ध करने लायक बचे थे। इसे देखते हुए साल 1813 में ऑस्ट्रिया, प्रशिया, रूस, स्पेन, ब्रिटेन, पुर्तगाल, स्वीडन और जर्मनी ने फ्रांस के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया।

साल 1814 के मार्च महीने में दुश्मनों ने राजधानी पेरिस को घेर लिया। नेपोलियन को गद्दी छोड़नी पड़ी। उन्हें एल्बा नाम के एक जजीरे पर कैद कर के रखा गया। फ्रांस की गद्दी पर लुई 16वें को बैठाया गया।

कैद में रहने के दौरान भी नेपोलियन की निगाह फ्रांस पर थी। साल 1815 में वो कैद से भाग निकला और पेरिस पहुंच गया। पेरिस पहुंचने के बाद नेपोलियन ने संविधान में तेजी से बदलाव किया।

इससे कई विरोधी नेपोलियन के पाले में आ गए। साल 1815 में मार्च महीने तक यूरोप के कई देशों ने मिलकर नेपोलियन के खिलाफ मोर्चा बना लिया। जून में नेपोलियन ने बेल्जियम पर हमला कर दिया। हालांकि 18 जून को वाटरलू की लड़ाई में ड्यूक ऑफ वेलिंगटन ने उसे हरा दिया।

इसके बाद नेपोलियन कभी कैद से नहीं छूट सका। ब्रिटेन ने नेपोलियन को दक्षिणी अटलांटिक स्थित सेंट हेलेना द्वीप पर रखा। छह साल नेपोलियन ने तनहाई में बिताए। साल 1821 में पेट के कैंसर से नेपोलियन की मौत हो गई।

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.