प्रधानमंत्री मोदी बताएंगे रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने का फॉर्मूला

 

 

रूस पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च के पहले हफ्ते में 40 देशों के विदेश मंत्रियों से औपचारिक-अनौपचारिक बातचीत करेंगे। जी-20 और रायसीना डायलॉग के बैनर तले होने वाली इस बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध ज्यादा चर्चा में रहेगा। हालांकि, यूक्रेन इस मीटिंग का हिस्सा नहीं है, लेकिन रूस के बहाने उस पर चर्चा होगी।

माना जा रहा है कि बैठक में भारत युद्ध को समाप्त करने का फॉर्मूला पेश कर एक बड़ी पहल कर सकता है। जी-20 मुख्यत: आर्थिक विकास को गति देने का मंच है, लेकिन रूस पर लगे प्रतिबंध और भारत जैसे देशों द्वारा रूस से तेल खरीदने को लेकर राजनीतिक चर्चा हो सकती है। इसी बैठक में सितंबर में होने जा रहे शिखर सम्मेलन का एजेंडा तैयार होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मार्च के पहले हफ्ते में 40 देशों के विदेश मंत्रियों से औपचारिक-अनौपचारिक बातचीत करेंगे। जी-20 और रायसीना डायलॉग के बैनर तले होने वाली इस बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध ज्यादा चर्चा में रहेगा। हालांकि, यूक्रेन इस मीटिंग का हिस्सा नहीं है, लेकिन रूस के बहाने उस पर चर्चा होगी।

माना जा रहा है कि बैठक में भारत युद्ध को समाप्त करने का फॉर्मूला पेश कर एक बड़ी पहल कर सकता है। जी-20 मुख्यत: आर्थिक विकास को गति देने का मंच है, लेकिन रूस पर लगे प्रतिबंध और भारत जैसे देशों द्वारा रूस से तेल खरीदने को लेकर राजनीतिक चर्चा हो सकती है। इसी बैठक में सितंबर में होने जा रहे शिखर सम्मेलन का एजेंडा तैयार होगा।

1 और 2 मार्च को होने वाली जी-20 विदेशमंत्रियों की बैठक में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, साउथ कोरिया, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन भाग लेंगे।

बांग्लादेश, मिस्र, मॉरिशस, नीदरलैंड्स, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, स्पेन और यूएई जैसे मित्र देशों को भी बुलाया गया है। इनमें से लगभग सभी देशों के विदेश मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी मुलाकात होगी।

दिल्ली के पांच सितारा हॉटलों में 1000 से ज्यादा रूम बुक किए गए हैं, जिनमें से कुछ प्रोटाकॉल के तहत सरकार ने तो कुछ अलग-अलग देशों ने बुक किए हैं।

100 से ज्यादा बुलेट प्रूफ कारों की व्यवस्था की गई है, बाकि गाड़ियां अलग हैं। सितंबर में होने वाली शिखर बैठक में यह संख्या दोगुनी से ज्यादा हो जाएगी।

जी-20 ग्लोबल नॉर्थ का ग्रुप है। इसमें ज्यादातर विकसित देश हैं। ग्लोबल साउथ की हिस्सेदारी कम है। भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील या सऊदी अरब के रूप में ही विकासशीलों की हिस्सेदारी है। भारत की भूमिका यह है कि जो विकसित नहीं है, उनकी आवाज बने।

ग्लोबल साउथ की समिट में प्रधानमंत्री ने विकासशील देशों के विचार हासिल भी कर लिए हैं। बीती जी-20 बैठक में कई कारणों से कोई नतीजा नहीं आ पाया था। यूक्रेन युद्ध इसमें प्रमुख कारण था। इस बार मूड बेहतर है, स्थितियां बेहतर हैं।

 रूस तो ऐसा कहेगा ही। कि दूसरे देशों की क्या राय है। पिछली शिखर बैठक में मोदी ने कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है, तो उनकी बात को सबने स्वीकार कर लिया था। अब देखना है कि क्या कोई बीच का मार्ग निकलकर आता है?

भारत के लिए सबसे सकारात्मक यह है कि जी-20 की अध्यक्षता हमारे पास है और अध्यक्ष होने के नाते हम ही आउटकम दस्तावेज लिखेंगे। जो संशोधन आएंगे, वे भी हम लिखेंगे। सारांश भी भारत ही लिखेगा। दिल्ली घोषणा का ड्राफ्ट भी भारत ही लिखेगा।

 चीन को सिर्फ भारत से नहीं, बल्कि बहुत सारे मुद्दों से निपटना है। अमेरिका के मुद्दे हैं। कई विकासशील देश चीन के कर्ज को लेकर परेशान हैं। वे इसे उदार बनाने पर जोर डालेंगे। इसलिए चीन कई मामले में बैकफुट पर रहेगा।

जी-20 सियासी मुद्दे डिस्कस करने का मंच नहीं है। यह आर्थिक नीतियों का मंच है। चूंकि पॉलिटिक्स के बिना कोई बात नहीं होती, इसलिए पॉलिटिकल डिस्कशन अनस्ट्रक्चर्ड ही होता है। यदि चर्चा ज्यादा पॉलिटिकल हो जाए तो मतभेद बढ़ जाते हैं।

 बाइडेन ने साफ संकेत दिया है कि अमेरिका लंबी लड़ाई के लिए तैयार है। एक साल हो गया है और अमेरिका अब पीछे नहीं हटेगा। भविष्य के लिए यह ठीक नहीं है। जब दो हाथी लड़ते हैं तो आसपास की घास ही कुचली जाती है। यह अच्छा संकेत नहीं है।

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