प्ली बार्गेनिंग विषय को लेकर कारागार में शिविर का हुआ आयोजन – पीड़ित को क्षतिपूर्ति करके कठोर सजा से बच सकता है बंदी
फतेहपुर। जिला कारागार में निरूद्व बंदियों को उनके अधिकार एवं प्ली बार्गेनिंग के विषय पर सोमवार को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से शिविर का आयोजन किया गया। शिविर में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/प्राधिकरण की सचिव अर्पणा त्रिपाठी के अलावा जेल अधीक्षक मो. अकरम खान, डिप्टी जेलर अंजनी कुमार व जेल पीएलवी ने हिस्सा लिया।
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अर्पणा त्रिपाठी ने कारागार में बंदियों को उनके अधिकार एवं प्ली बार्गेनिंग विषय पर जागरूक करते हुए बताया कि प्रत्येक बंदी को कानून में विभिन्न प्रकार के विधिक अधिकार प्राप्त हैं। जैसे किसी बंदी के पास अधिवक्ता नहीं होता है तो जेल अधीक्षक के माध्यम से कार्यालय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को निःशुल्क अधिवक्ता प्राप्त करने का प्रार्थना पत्र दे सकता है। वर्तमान समय में लीगल एड डिफेन्स काउंसिल सिस्टम के माध्यम से निःशुल्क पैरवी कराई जा रही है। प्रत्येक बंदी को अपने घर वालों से मुलाकात करने का अधिकार, पढ़ने का अधिकार, फोन पर अपने परिजनांें से बात करने का अधिकार, इलाज करायें जाने का अधिकार व अन्य कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार आदि प्राप्त है। सचिव ने बंदियो को बताया कि प्ली बार्गेनिंग समझौते का तरीका है जो कि सात वर्ष से अधिक की सजा से दंडनीय अपराधो में, किसी महिला व 14 वर्ष के कम आयु के शिशु तथा देश के सामाजिक, आर्थिक स्थिति से प्रभावित करने वाले अपराधों पर लागू नहीं होता है। सात वर्ष तक की सजा वाले अपराधो में अभियुक्त अपने द्वारा किये गये अपराध को स्वीकार करके और पीड़ित व्यक्ति को हुये नुकसान और मुकदमें के दौरान हुये खर्चे की क्षतिपूर्ति करके कठोर सजा से बच सकता है। प्ली बार्गेनिंग किस तरह अपराधों पर लागू होता है उसके बारे में बताया। अभियुक्त को प्ली बार्गेनिंग के लिये आवेदन उसी न्यायलय में दाखिल करना होता है जिसमें उसके द्वारा किये गये अपराध से संबंधित मुकदमा विचाराधीन है। प्ली बार्गेनिंग के लाभ के बारे में बताते हुये सचिव ने अवगत कराया कि यह प्रक्रिया जेलो में बंद विचाराधीन कैदियों की सहायता करती है। जो लम्बे समय से जेलो में बन्द हैं। प्ली बार्गेनिंग पारस्परिक रुप से समाधानप्रद निपटारे के लिये न्यायालय, लोक अभियोजक, पुलिस अधीक्षक जिसने मामले का अन्वेषण किया, अभियुक्त तथा पीड़ित को मामले का समाधान पर निपटारा करने के लिये बैठक में भाग लेने के लिये नोटिस जारी कर पक्षकारो की स्वेच्छा से मामले का निस्तारण किया जाता है।