5 साल लिविन रिलेशन में रहने के बाद किया शादी से इंकार फिर रेप केस क्यों

 

कर्नाटक मे  5 साल तक लिविन रिलेशनशिप में रहने के बाद मल्लिकार्जुन ने अपनी प्रेमिका रश्मिका से शादी करने से इनकार कर दिया। इसके बाद रश्मिका ने मल्लिकार्जुन के खिलाफ रेप का केस दर्ज कराया। अब कर्नाटक हाईकोर्ट ने लड़के को निर्दोष बताकर बरी कर दिया। इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के इस फैसले पर डिबेट हो रही है।

 

पढ़िए पूरा मामला क्या है, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया।
 12 साल पहले मल्लिकार्जुन देसाई गौदर की मुलाकात रश्मिका नाम की एक लड़की से हुई। इस मुलाकत के बाद धीरे-धीरे दोनों के बीच दोस्ती हो गई। कुछ समय बाद दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे।

पिछले 5 साल से मल्लिकार्जुन अपनी प्रेमिका रश्मिका के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे। जाति अलग होने की वजह से दोनों की शादी नहीं हो पाई। इसके बाद रश्मिका ने मल्लिकार्जुन के खिलाफ IPC की धारा  376(2)(n) के तहत रेप, 354 के तहत छेड़छाड़, 406 के तहत भरोसा तोड़ने, 504 के तहत जानबूझकर अपमान करने, 323 के तहत मारपीट करने और 506 के तहत धमकी देने के आरोप में केस दर्ज कराया।

लड़की ने बताया कि मल्लिकार्जुन ने शादी के झूठे वादे कर उसके साथ संबंध बनाए। इसलिए वह रेप का आरोपी है।

मल्लिकार्जुन के बचाव में उसके वकील ने कहा कि दोनों कपल एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे, लेकिन जाति अलग होने की वजह से मल्लिकार्जुन के प्रयासों के बावजूद शादी नहीं हो सकी। आखिरकार उनकी रिलेशनशिप टूट गई। ऐसे में मल्लिकार्जुन के खिलाफ रेप का ये आरोप सही नहीं है। लड़की का आरोप है कि मल्लिकार्जुन ने शादी के झूठे वादे करके उसके साथ संबंध बनाए जो रेप करने जैसा है। जबकि ये आरोप किसी भी तरह से सही नहीं हैं, क्योंकि दोनों ने सहमति से संबंध बनाए हैं।

 इस मामले पर कर्नाटक हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के सामने सुनवाई हुई। इसके बाद फैसला सुनाते हुए जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना ने कहा कि मुमकिन है कि लड़की ने शख्स को संबंध बनाने की इजाजत एक, दो या तीन बार नहीं बल्कि 5 साल में कई बार दी होगी। केस की चार्जशीट में इस बात का जिक्र है कि दोनों एक-दूसरे से प्यार करते थे। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि महिला की इच्छा के बिना ये सब संभव है।

इसके साथ ही जस्टिस नागप्रसन्ना ने लड़के के खिलाफ IPC की धारा 376 (2) (एन), 354, 406 और 504 के तहत लगाए गए रेप, सुनियोजित धोखाधड़ी, छेड़छाड़ और धमकी के आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने लड़के के खिलाफ सामान्य मारपीट करने के आरोप में IPC की धारा 323 के तहत दर्ज एफआईआर को बरकरार रखा।

 सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग के मुताबिक शादी के लिए झूठा वादा करके संबंध बनाना सिविल और क्रिमिनल अपराध है, लेकिन उसे IPC की धारा-375 के तहत बलात्कार नहीं माना जा सकता। इसके पहले भी केरल हाईकोर्ट समेत दूसरे कई अदालती फैसलों में कहा गया है कि लिव-इन रिश्तों में उपजी खटास के मामलों में रेप की एफआईआर करवाना गलत है।

अगर कोई व्यक्ति लंबे रिश्ते के बाद शादी से इनकार करता है तो उसके लिए रेप का अपराध नहीं बनाया जा सकता। IPC के तहत किसी भी अपराध को साबित करने के लिए मंशा होना जरूरी है। इसलिए सहमति के आधार पर बनाए गए संबंधों को कई साल बाद रेप बनाना आपराधिक कानूनों का दुरुपयोग है। इस लिहाज से कनार्टक हाईकोर्ट का यह फैसला कानून के मुताबिक है।

 भारत में इस तरह के लव रिलेशनशिप या लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई कानून नहीं है। ऐसे में अदालतें मौजूदा कानूनों की व्याख्या करके और पहले के फैसलों के जरिए इस तरह के मामलों में फैसला सुनाती हैं।

1978 में बदरी प्रसाद और डिप्टी डायरेक्टर ऑफ कन्सॉलिडेशन के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिलेशन और लिव-इन रिलेशन को लेकर भले ही कानून नहीं हैं लेकिन ये उम्र, सहमति और कंसेंट जैसी चीजों पर निर्भर करता है।

देश में रिलेशनशिप और लिव-इन रिलेशनशिप की व्याख्या मुख्य रूप से दो मौलिक अधिकारों के कानून पर निर्भर करती है…

बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।

कोलकाता हाईकोर्ट के सीनियर वकील देवरूप भट्टाचार्य ने कहा कि ये दोनों कानून हर इंसान को ये अधिकार देते हैं कि वह अपनी जिंदगी पूरी आजादी के साथ अपने तरीके से जी सकता है। जब तक कि कोई कानून उसे ऐसा करने से नहीं रोकता हो। एक इंसान जिसके साथ और जैसे चाहे रह सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2006, 2010 और 2013 में तीन अलग-अलग मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि वयस्क होने के बाद कोई भी व्यक्ति किसी के भी साथ रहने या शादी करने के लिए स्वतंत्र होता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद भारत में रिलेशनशिप में साथ रहने वालों को कानूनी मान्यता मिल गई थी।

 लव रिलेशनशिप और लिव-इन-रिलेशनशिप में क्या फर्क है? जवाब: लव रिलेशनशिप में दो एडल्ट एक-दूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन साथ नहीं रहते हैं। वहीं, लिव-इन-रिलेशनशिप में दो बालिग यानी एडल्ट आपसी सहमति से एक साथ रहते हैं। उनका रिश्ता पति-पत्नी की तरह होता है, लेकिन वो दोनों एक-दूसरे के साथ शादी के बंधन में नहीं बंधे होते हैं।

 

 लिव-इन में रहने वाला पुरुष अगर अपनी महिला पार्टनर के साथ मारपीट करे तो ? 
 महिला पार्टनर ऐसी सिचुएशन में घरेलू हिंसा एक्ट की धारा-12 के तहत उस पर केस दर्ज करा सकती है। इसकी शिकायत डायरेक्ट मजिस्ट्रेट को की जा सकती है। इसके अलावा घरेलू हिंसा एक्ट की धारा-18 के तहत महिला पार्टनर प्रोटेक्शन ऑर्डर की भी डिमांड रख सकती है।

मजिस्ट्रेट पूरे मामले को सुनकर, जो भी फैसला सुनाते हैं। अगर उस फैसले को पुरुष नहीं मानता है, तो उसे 1 साल की जेल या 20 हजार का जुर्माना या धारा-31 के अंतर्गत दोनों तरह की सजा हो सकती है।

 

 लिव-इन में रिलेशन में संपत्ति के बंटवारे को लेकर क्या कोई नियम है ?
 लिव-इन रिलेशन में रहने वाले पार्टनर के लिए संपत्ति पर दावे को लेकर 3 तरह की बातें हैं…

  1. रिलेशनशिप से अलग होने पर गुजारा भत्ता की मांग लंबे समय से चल रही है। इस तरह की मांग करने वालों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में लिव इन को मान्यता मिली है, ऐसे में अब इसे भी मान्यता मिलनी चाहिए।
  2. लिव-इन में रहने वाले दो लोगों की संपत्ति और उस पर दावे को लेकर कोई कानून नहीं है। ऐसे में दो लोग जो लिव-इन में हैं, उनकी संपत्ति पर उनका ही अधिकार होता है।
  3. लिव-इन में पैदा होने वाले बच्चे अपने मां-बाप के अलग होने के बाद दोनों से संपत्ति की मांग कर सकते हैं।

 

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