जुर्म की कश्ती पर संसद तक का सफर तय करने वाले अतीक अहमद के सियासी भविष्य पर अब ग्रहण लग गया है। उमेश पाल अपहरण के मामले में आजीवन कारावास की सजा मिलने के बाद अतीक अहमद अब कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकेगा।
इस सियासी सफर के लिए अतीक ने जिस अपराध को हथियार बनाया वही उसके लिए घातक हो गया। पूर्व विधायक राजू पाल के गवाह उमेश पाल की हत्या तथा अब उमेश के ही अपहरण मामले में अतीक को सजा होने के बाद पत्नी शाइस्ता परवीन के सहारे खोई सियासी साख को पाने की कवायद को भी झटका लगा है।
हालांकि, बसपा अध्यक्ष मायावती ने शाइस्ता को अभी पार्टी से तो नहीं निकाला है लेकिन उनकी राजनीतिक पारी पर सवाल जरूर खड़ा हो गया है। अतीक ने 17 वर्ष की उम्र में ही अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था और कुछ ही वर्षों में वह जरायम की दुनिया का बड़ा नाम बन गया।
राजनीतिक सरंक्षण की चाहत में राजनेताओं को पीछे से मदद करने वाले कई बड़े अपराधियों ने 80 के दशक में सियासत में सीधा हस्तक्षेप शुरू कर दिया। अपराध से राजनीति में आए मुख्तार अंसारी, डीपी यादव, शहाबुद्दीन, राजेंद्र तिवारी, छुट्टन शुक्ला जैसे बाहुबलियों की फेरहिस्त में अतीक अहमद भी 1989 में शामिल हो गया।
चांद बाबा की हत्या में भी आया था अतीक का नाम
राजू पाल ने अशरफ को चुनाव हराया
अतीक के बढ़ते कद को इससे ही समझा जा सकता है कि 2004 में अपना दल ने फूलपुर संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया और वह जीत हासिल करने में सफल रहा। इसके बाद शहर पश्चिमी विधानसभा से भाई अशरफ ने चुनाव लड़ा लेकिन बसपा के राजू पाल ने हरा दिया। अपराध और राजनीति में लगातार आगे बढ़ रहे अतीक के लिए भाई की हार के रूप में बड़ा झटका लगा लेकिन कुछ ही समय बाद राजू पाल की हत्या हो गई। इसमें अतीक और अशरफ का नाम सामने आया।
फूलपुर से सांसदी का चुनाव लड़ा लेकिन अतीक को मिली हार
भाजपा सरकार आने पर अतीक का अपराध की दुनिया में भी दखल कमजोर पड़ा
शाइस्ता की सियासी पारी की नैया भी डगमगाने लगी