रमजान माह: हर साहिबे निसाब पर फर्ज है जकात – ईद की नमाज अदा करने से पहले दें जकात

फतेहपुर। रमजानुल मुबारक का महीना चल रहा है। अब आखरी अशरा समाप्त होने में सिर्फ छह दिन का समय शेष रह गया है। ऐसे में बन्दों पर एक और अहम फरायज अदा करने का दिन आ चुका है और वह है जकात की अदायगी। इसे अदा करना हर साहिबे निसाब पर अल्लाह ने वाजिब करार दिया है। इसके न अदा करने पर बन्दा गुनाहों में दाखिल होता है। जकात इस्लाम का अहम रूकु है इसलिये कुरआन पाक में नमाज जैसी अहम इबादत के साथ अल्लाह तआला ने 32 बार जकात का जिक्र फरमाया है। अपने बन्दों को इस अहम फर्ज की अदायगी का हुक्म दिया है कि जकात अदा करने से माल घट नहीं जाता है बल्कि इससे माल बढ़ता है।
हदीस से यह पता चलता है कि जकात का माल जिस माल में मिला दिया जाये वह उस शख्स को तबाह बर्बाद कर देगा। इस दूसरी हदीस से खुश्की व तरी में जो माल हलाक होता है वह जकात न देने की वजह से होता है। हदीस में यह भी है कि जिसने अपने माल की जकात दे दी उसने अपने आपको बुराईयों से दूर कर लिया। इस तरह से जकात अदा करने को आमिलों ने ईमान की पहचान करार किया है। जो नहीं अदा करते कयामत में उनका माल गंजे संाप की सूरत में उनके सामने आयेगा और उसके गले में लिपट कर उस इंसान को डसेगा और कहेगा कि मैं तेरा माल व खजाना हूूं वहीं दूसरी तरफ जकात अदा करने वाला इंसान दोनों जहां में फैजेआब होगा। इस सभी बातों से यह मालूम होता है कि फितरा इंसान की बलाओं को दूर करता है और अदा न करने वाले बन्दे पर खुदा का आजाब होता है। दीनी शायदा हुक्में इलाही की इतारत परवाये रसूल पर अमल उसूली जन्नत है। इसके दुनियाबी फायदे मुआशरे के दबे कुचले गरीब, यतीम, बेवा वगैराह के लिये एक जबरदस्त ताऊन है, जिससे वह अपनी जिन्दगी की जरूरियातों को पूरा कर सकें। जिस मुसलमान पर जकात वाजिब है उसके लिये यह जरूरी है कि वह शख्स आकिल यानि अक्ल रखने वाला, बालिग होने के साथ-साथ मालिके निसाब होना जरूरी है। इसके अलावा वह शख्स जिसके पास हाजते असलियता को पूरा करने के बाद साढे सात तोला सोना या साढे़ बावन तोला चंादी और या फिर उसकी कीमत या इतने का सामाने तिजारत रखता हों। इसके अलावा उस शख्स के पास तकरीबन चौदह हजार रूपये मौजूद हो बशर्तें उस पर कोई कर्ज न हो, ऐसे शख्स पर जकात वाजिब है। बताया कि इसके अलावा और जिन पर जकात वाजिब है उनमें कोई ऐसा शख्स जिसकी कोई रकम बैंक में जमा हो और साल गुजर चुका हो। वह शख्स उस रकम का ढाई प्रतिशत अल्लाह की रजा के लिये गरीब को अदा करें। इसी तरह किसी के पास सिलाई मशीन है तो उस पर जकात वाजिब नही, लेकिन वह शख्स उससे कुछ कमाता है और रकम निसाबे जकात तक पहुंचे तो वह जकात अदा करें, लेकिन मशीन की कीमत पर नहीं। इसी तरह किसी के पास ट्रक, छोटी गाड़ियां जो किराये पर चलती हैं उसकी कीमत पर पहुंचे तो उस रकम पर जकात वाजिब है। इसी तरह अगर किसी के पास चंद मकान है और वह किराये के मकान उठे हैं उससे आने वाला किराया निसाबे जकात पर पहुंचे तो जकात अदा करें। पहला सोना, चांदी, रूपया पैसा दूसरा सामान तिजारत और तीसरा शरई के जानवर इसमें भी तादात है। अगर किसी के पास पांच ऊंट हैं तो वह जकात अदा करें इसके कम पर जकात की अदायगी नहीं है। इसी तरह अगर कोई शख्स गाय, भैंस, पाले है और उसकी तादात तीस से ज्यादा और अगर बकरियां है तो उसकी तादात करीब चालीस हो, या उससे ज्यादा तो उन पर जकात अदा करें। इसी तरह वह रकम जो कर्ज बतौर दी गयी है, एफडी, जीपीओ, आवास, विकास पत्र पर भी जकात है।

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