मनुष्य ठीक तरीके से चले तो संसार की सर्वश्रेष्ट कृति बन सकता है, गलत रास्ते पर चल पड़े तो विकृति बनने में देर नही लगती
अरुण कुमार/न्यूज वाणी ब्यूरो
अतराड़ा। मनुष्य को परमपिता परमात्मा ने इस विशेषता के साथ पैदा किया कि यदि वह ठीक तरीके से चले तो संसार की सर्वश्रेष्ट कृति बन सकता है और यदि वह गलत रास्ते पर चल पड़े तो विकृति बनने में देर नही लगती। हमारा जन्म लेना हमारा सौभाग्य है किन्तु जन्म लेने से कहीं महत्वपूर्ण हमारा जीवन जीने का ढंग है। हम किस तरीके से जी रहे है यह महत्वपूर्ण है। आज की स्थिति तो ऐसी हो गई है कि हम अच्छा दिखना चाहते है किन्तु अच्छा करना नही चाहते। भगवान ने हमें जहाँ विचार करने की शक्ति प्रदान की है वहीं विचारों को व्यक्त करने के लिए बोलने की शक्ति भी प्रदान की है। मनुष्य की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए बल्कि मनुष्य को यह समझदारी होनी चाहिए कि वह सही सोचे, सही देखें, सही बोले और सही करे। प्रतिदिन चौबीस घंटों में हमारे मष्तिष्क में लगभग 60 हजार विचार आते है जिनमें से कुछ विचारों का कोई महत्व नही होता और कुछ विचार बहुत महत्वपूर्ण होते है। सही विचारों को जीवन में संजोना सीखें तथा महत्वहीन विचारों पर अपनी शाक्ति व्यर्थ मत करो। लेकिन देखने में तो उल्टा ही नजर आता है। फोटो तो सभी के बहुत अच्छे है किन्तु एक्सरों का बुरा हाल है। कहने का मतलब इतना भर है कि अच्छे दिखने का सिर्फ नाटक ही मत करो, अच्छे बनो भी । जो लोग अच्छी सोच रखते है वे ही आसमान छूते है और घटिया सोच वाले तो धरती पर बोझ ही बन कर रह जाते है। अपने के साथ- साथ समाज के प्रति भी हमारी सोच उदार होनी चाहिए । हमारी अपेक्षा रहती है कि समाज हमें महत्व दे, आगे रखे लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि समाज के लिए हमारा क्या योगदान है । हमारे जीवन में प्रतिदिन अनेकों विपरीत परिस्थितियाँ, विपरीत विचार, विपरीत लोगों का आगमन होता रहता है यह आवश्यक नही है कि हमारे प्रति सब अनुकूल रहे लेकिन हम सब के प्रति अनुकूल बने रहें यह सोच हमारे जीवन को संवारती है। अपने स्वजनों के प्रति सोच को सकारात्मक रूप से बदल लेगें तो जीवन में निश्चित रूप से खुशहाली आ जायेगी । हम सोच बदलने का बाहरी ढोंग करते है सोच आन्तरिक रूप से बदलनी होगी तभी जीवन में उदारता, उच्चता आयेगी और जीवन जीने का असली आनन्द आयेगा। इतिहास इस बात का गवाह है कि जिसने भी अपनी सोच को आन्तरिक रूप से बदला है वही जीवन के उच्च शिखर पर पहुंचा है। जिस प्रकार वृक्ष के उगने के लिए बीज आवश्यक होता है उसी प्रकार हर कार्य के मूल में एक बीज होता है और वह है सोच । जैसा बीज वैसा ही पौधा, जैसी सोच वैसा ही कर्म । यदि आप अपनी जीवन रूपी बगिया को सुन्दर बनाना चाहते है, उसे रंग-बिरंगी करना चाहते है, उसे अच्छी सुगन्ध से महकाना चाहते है तो मन रुपी बगिया में चुन-चुन कर अच्छी सोच के बीज बोइए और सकारात्मक सोच के पौधे उगाइए । आपका जीवन निश्चित रूप से सुहाना एवं सरस बनेगा ।