फतेहपुर। समलैंगिक विवाह के विरोध में अधिवक्ता परिषद के स्वर मुखर हो गये हैं। शनिवार को परिषद के पदाधिकारियों ने जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को चार सूत्रीय ज्ञापन भेजकर मांगों को पूरा किए जाने की आवाज उठाई।
अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष रवींद्र परमार व महासचिव संतोष कुमार त्रिपाठी की अगुवाई में पदाधिकारी कलेक्ट्रेट पहुंचे और जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को चार सूत्रीय ज्ञापन भेजकर कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक एवं ट्रांसजेंडर आदि व्यक्तियों के विवाह को विधि मान्यता देने के निर्णय की तत्परता एवं आतुरता से विचलित हैं। ज्ञापन में कहा गया कि समलैंगिक विवाह भारत की संस्कृति सभ्यता एवं भारतीय समाज की मूलभूत मान्यताओं के विपरीत है। समलैंगिक विवाह को विधिक मान्यता देने से समाज में अनेक सामाजिक विसंगतियां एवं कानूनी जटिलताएं पैदा हो सकती हें। पश्चिम की सामाजिक एवं सांस्कृतिक मान्यताओं एवं अवधारणाओं को आधुनिकता एवं अत्यंत अल्प समूह की इच्छा व मांग पर बिना सोचे समझे भारतीय समाज पर आरोपित करना हमारी आगामी पीढ़ी के लिए ठीक न होगा। समलैंगिक विवाह जैसे-जैसे जटिल विषय पर कानून बनाने के लिए व्यापक विचार विमर्श की आवश्यकता को देखते हुए इस पर कानून बनाने का कार्य भारत की संसद द्वारा किया जाना बेहतर होगा। इस मौके पर अधिवक्ताआंे में उमेश त्रिपाठी, धनंजय सिंह यादव, शिव प्रताप मिश्रा, सुनील गुप्ता भी मौजूद रहे।