बीमा पालिसी में नामित तो उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देना नहीं है बाध्यकारी, कोर्ट ने भुगतान करने का दिया निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बीमा पॉलिसी में अगर पत्नी नामित है तो उसे पति के नहीं रहने पर बीमा राशि प्राप्त करने के लिए उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देने की आवश्यकता नहीं है। उसे भुगतान पाने का पूरा अधिकार है। बीमा कानून की धारा 39 भी उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देने के लिए बाध्य नहीं करती है। कोर्ट ने भारतीय जीवन बीमा निगम आजमगढ़ के प्रबंधक को उक्त मामले में निर्णय लेने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ल की खंडपीठ ने यह आदेश आजमगढ़ की सविता देवी की पुनर्विचार अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है। इससे पहले कोर्ट ने बीमा राशि का भुगतान करने का आदेश दिया था, किंतु बीमा कंपनी ने पालिसी में नामित पत्नी/याची को यह कहते हुए भुगतान करने से इन्कार कर दिया कि उत्तराधिकार का विवाद चल रहा है।

याची की ओर से कहा गया कि उसके पति बृजेश कुमार मौर्य, जालौन में सहायक अध्यापक थे, जिनका दस लाख का बीमा था। उनकी मौत के बाद उसके दावा करने पर पत्नी ने दावा किया, जिसका उसके सास-ससुर ने विरोध किया। पत्नी मृतक आश्रित कोटे में सहायक अध्यापिका पद पर नियुक्त हुई है।

कोर्ट ने उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देने पर भुगतान करने का निर्देश दिया था। इस आदेश पर पुनर्विचार करने की अर्जी देते हुए कहा गया कि क्योंकि पत्नी पालिसी में नामित है। लिहाजा, कानून के तहत उसे उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देने का जरूरत नहीं है। इस पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है।

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