क्या सच में बिहार में है सोने की खान, 100 मीटर नीचे से निकाला गया सैंपल, लोगों को सता रहा अपनी जमीन खोने का डर
बिहार के बांका में जमीन से सोना तलाशने का काम लगातार जारी है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) की तरफ से यहां किए जा रहे ऑब्जर्वेशन की वजह से इसकी चर्चा पूरे देशभर में है। दावा किया जा रहा है कि यहां के जमीन के भीतर सोने की खान है।
GSI के इस दावे में कितनी सच्चाई है। इसे जानने के लिए हम पटना से 300KM दूर बिहार-झारखंड बॉर्डर के कटोरिया इलाके में पहुंचे। फिर यहां से 30 KM अंदर जंगल और पहाड़ों के रास्ते जब हम केरवार गांव पहुंचे, तो यहां बंजर जमीन में खुदाई का काम चल रहा था।
15 दिन में 100 मीटर की खुदाई, 28 बॉक्स में सैंपल कलेक्ट किया गया
हम सबसे पहले उस साइट पर पहुंचे जहां GSI की तरफ से खुदाई हो रही है। यहां सोने जैसा दिखने वाले सैंपल कलेक्ट किए जा रहे हैं। इसके लिए दो बड़े-बड़े ड्रिलिंग मशीन मंगाए गए हैं, जिससे 5 मजदूर दिन रात खुदाई का काम कर रहे हैं। हर 20 फीट खुदाई के बाद मिलने वाले सैंपल को कलेक्ट कर एक बक्से में सुरक्षित रखा जा रहा है। इसके बाद इन सभी सैंपल को GSI के सैंपल के लैब में भेजा जा रहा है।
खुदाई में मिला सोने जैसा चमकने वाला मेटल
अभी तक की हुई खुदाई में तीन अलग-अलग तरह के मेटल मिलने की बात सामने आई है। इसमें एक सोने की तरह चमकने वाला पीले रंग का मेटल भी है। हालांकि, ये क्या है? इसे कोई भी अधिकारी बताने के लिए तैयार नहीं है। उनका कहना है कि जब तक लैब से पुष्टि नहीं हो जाती है इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, अभी तक इस तरह के 28 बॉक्स सैंपल को कलेक्ट किया गया है। इन्हें GSI के तीन लैब पटना, कोलकाता और दिल्ली भेजा गया है। लैब में सैंपल की जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि यहां से किस तरह के मेटल मिल रहे हैं।
100 साल पहले अंग्रेजों ने भी कराई थी खुदाई, अभी तक है निशानी
ऐसी बात नहीं है कि यहां पहली बार सोने या किसी धातु की खोज की जा रही है। करीब 100 साल पहले अंग्रेजों ने भी इसी इलाके में सोना होने की आशंका जताई थी, जिसके बाद मजदूरों की मदद से यहां खुदाई कराई गई थी। हालांकि, तब 10-15 फीट गड्ढा करके ही छोड़ दिया गया था। ये गड्ढे आज भी वहां मौजूद हैं, जहां अभी GSI की तरफ से खुदाई की जा रही हैं। वहां से बमुश्किल 50 फीट की दूरी पर अंग्रेज की तरफ से गड्ढे कराए गए थे।
अब उस गांव को जानिए, जहां सोने की तलाश की जा रही है
बिहार और झारखंड के बॉर्डर पर बसा केरवार गांव चारों तरफ पहाड़ों और जंगलों से घिरा इलाका है। गांव के एक तरफ बिहार है और दूसरी तरफ झारखंड का इलाका शुरू हो जाता है। 6 टोलों में बंटे लगभग 1200 घरों के इस गांव की 70 फीसदी आबादी यादव समुदाय की है।
ये बिहार के उन चुनिंदा गांवों में है, जहां आदिवासी भी रहते हैं। बाकी के 10 फीसदी में धोबी, भुइयां व अन्य जाति के लोग शामिल हैं। गांव के 90 फीसदी लोग खेती और जंगल पर निर्भर रहते हैं। खेती-किसानी ही इनका मुख्य पेशा है। ग्रामीण बताते हैं कि यहां मुख्य रूप पर टमाटर, मकई और धान की पैदावार होती है। इन्हीं से इनका घर चलता है।