मोबाइल देखकर बच्चा खाता है खाना, दिमाग होगा कमजोर; वर्चुअल ऑटिज्म का रिस्क, क्या हैं लक्षण

 

 

अर्थव 6 महीने का था, तब से उसे मोबाइल फोन की आदत है। वो जब भी रोता, उसकी मां मोबाइल फोन पर गाना लगाकर सामने रख देती। वो एक टक मोबाइल फोन पर देखता, गाना सुनने के बाद खुश हो जाता।

यह एक घर का मामला नहीं, बच्चे के रोते ही पेरेंट उन्हें शांत कराने के लिए मोबाइल या और कोई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट थमा देते हैं।

इससे बच्चा शांत भी हो जाता है और पेरेंट्स अपना काम भी निपटा लेते हैं। वहीं बच्चा घंटों तक स्क्रीन पर बिजी रहता है।

कई रिसर्च में सामने आया है कि कम उम्र में बच्चों को फोन थमाने से उनका मानसिक विकास यानी मेंटल डेवलेपमेंट प्रभावित होता है। इससे वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा बढ़ रहा है।

आखिर क्या है वर्चुअल ऑटिज्म, इससे बच्चों को कैसे बचाएं यह जानने के लिए हमने एक्सपर्ट से बात की।

एक्सपर्ट:

डॉ. प्रीतेश गौतम, साइकोलॉजिस्ट, निर्वाण क्लिनिक, भोपाल

डॉ. विवेक शर्मा, पीडियाट्रिशियन, पेंग्विन पीडियाट्रिक केयर क्लिनिक, जयपुर

सवाल: वर्चुअल ऑटिज्म होने पर बच्चों को क्या दिक्कत होती है, इसके लक्षण क्या हैं?
जवाब:
 स्मार्टफोन, टीवी या इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर ज्यादा समय बिताने से बच्चों में कई लक्षण दिखाई देते हैं। इसके बारे में हम नीचे लगे क्रिएटिव में डिटेल में बता रहे हैं।

सवाल: बच्चे क्यों बन रहे वर्चुअल ऑटिज्म का शिकार?
जवाब:
 पिछले कुछ सालों में मां-बाप के बीच एक ट्रेंड तेजी से बढ़ा है कि वो अपने बच्चों का मन बहलाने के लिए उन्हें कहानी या लोरियां सुनाने की जगह मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट पकड़ा देते हैं।

पेरेंट्स सोचते हैं कि हम बच्चों को पढ़ना सिखा रहे हैं। उन्हें A, B, C, D और राइम्स लगाकर मोबाइल थमा देते हैं। लेकिन वो बच्चों को गैजेट्स की लत लगा रहे होते हैं।

बच्चे इनके आदी हो जाते हैं और वर्चुअल दुनिया में खो जाते हैं।

इसके अलावा सिंगल-न्यूक्लियर फैमिली सेटअप के बढ़ते ट्रेंड और फैमिली मेंबर्स के बीच बढ़ती डिस्टेंस ने इस सिचुएशन को और बढ़ावा दिया है।

सवाल: कितने साल के बच्चों में इसका ज्यादा खतरा होता है?
जवाब: 
1-3 साल के बच्चों को इसका ज्यादा रिस्क होता है। नॉर्मली 5 साल तक के बच्चों पर इसका असर पड़ता है।

सवाल: बच्चे में अगर ये लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो क्या करें?
जवाब: 
अगर आपको अपने बच्चों में इस तरह के लक्षण दिख रहे हैं तो सबसे पहली बात तो डरें नहीं। नीचे लगे ग्राफिक से समझते हुए बच्चे की केयर करें।

सवाल: क्या इसके लिए बच्चे को कोई थेरेपी करा सकते हैं?
जवाब: 
हां, करा सकते हैं। इस बारे मे पीडियाट्रिशियन यानी बच्चों के डॉक्टर से एडवाइस जरूर ले लें।

सवाल: क्या बच्चों को मोबाइल फोन नहीं देना चाहिए?
जवाब: 
बिल्कुल सवा साल से 3 साल तक के बच्चों को तो मोबाइल से दूर ही रखें।

कुछ दिनों तक वो आपसे जिद करेंगे। आप फिर भी उन्हें बहला-फुसलाकर शांत करें।

बच्चों का शेड्यूल ऐसा बनाएं कि जिसमें उनके लिए 1-2 घंटे का टाइम ई-गैजेट्स, टीवी देखने के लिए फिक्स कर लें।

वो क्या कन्टेंट देख रहे हैं इस पर भी नजर बनाएं रखें।

सवाल: अगर बच्चे नहीं मानते हैं फिर क्या करें? किन चीजों से मन बहलाएं?
जवाब: 
आप उनके पसंद का खाना बनाएं। घुमाने ले जाएं। साथ बैठकर इनडोर गेम्स खेलें। पढ़ाई के लिए बार-बार फोर्स न करें।

सवाल: क्या जॉइंट फैमिली में रहने से ये परेशानी नहीं होगी?
जवाब:
 हां काफी हद तक। बच्चे जॉइंट फैमिली में रहते हैं तो हर समय किसी न किसी फैमिली मेंबर से कनेक्ट होते हैं। उनके साथ खेलते हैं, टाइम स्पेन्ड करते हैं। वो अपनी छोटी से छोटी बातें उनसे शेयर कर सकते हैं।

इससे उनका ज्यादातर समय अलग-अलग मेंटैलिटी के लोगों के साथ बीतता है। जिससे उन्हें कई चीजें सीखने का मौका मिलता है और मोबाइल-टीवी के लिए टाइम नहीं बचता।

सवाल: सवा साल से 5 साल तक के बच्चे का डेवलेपमेंट कैसे करें?
जवाब: पॉइंट्स से समझते हैं…

बच्चों को खुल कर बात करने दें: बच्चों को अपने मन की बात करने का मौका दें। उन पर हमेशा अपनी ही न थोपें। न ही उन पर दूसरों की भड़ास निकालें।

वे आपके साथ फ्रेंडली होना सीखते हैं। इससे आगे चल कर उन्हें कोई भी परेशानी होगी तो आपको इस बारे में जरूर बताएंगे।

उनमें बचपन से इस बात का भरोसा रहेगा कि कैसी भी कंडीशन हों, पेरेंट्स उनको समझेंगे और उनका साथ देंगे।

बच्चों के लिए अपना प्यार जताएं: अपने बच्चों को प्यार कौन नहीं करता। पेरेंट्स ये सोचकर बच्चों के सामने प्यार जताते नहीं हैं कि वो इसका फायदा न उठाएं। ये गलतफहमी है।

अपने बच्चों को प्यार जताएं। उन्हें प्यार करना सिखाएं। ये उन्हें एक अच्छे इंसान के रूप में भी तैयार करता है। छोटे-छोटे एचीवमेंट पर उन्हें किस करें, गले लगाएं और गिफ्ट्स दें। जिससे उन्हें प्राउड फील हो।

हर दिन उसकी प्रॉब्लम को गंभीरता से सुनें। इससे बच्चों के शरीर में गुड हार्मोन बढ़ते हैं और उनमें पॉजिटिव बदलाव आता है।

बच्चों को सोशल होना सिखाएं: बच्चों के मेंटल डेवलेपमेंट के लिए जरूरी है कि आप उन्हें सोशल होना बताएं। उन्हें लोगों से मिलाएं और उनसे बात करने का तरीका सिखाएं।

इससे उनका आत्म विश्वास बढ़ेगा। वे सोशल तौर पर मजबूत होंगे।

बच्चों को सिचुएशन डील करने दें: बच्चों के अंदर समस्याओं को खुद सॉल्व करने के आदत बनाएं।

इससे आगे चल कर उनके सामने कोई समस्या आएगी भी तो, वे मेंटली डिस्टर्ब नहीं होंगे बल्कि परेशानी को समझेंगे और इससे लड़ेंगे।

स्ट्रेस बॉल और सेंसरी खिलौनें दें: स्ट्रेस बॉल और सेंसरी खिलौने स्ट्रेस और टेंशन को दूर करने का काम करते हैं। स्ट्रेस बॉल स्ट्रेस रिलीज करने में मदद करती है। सेंसरी खिलौनों से मेंटल हेल्थ में सुधार होते है।

डिमोटिवेट करने वाली बातें न करें: बच्चों की कमियां सुनने और गलती करने पर उन्हें डिमोटिवेट न करें। ऐसा कुछ न बोलें कि आप जीवन में कुछ नहीं कर पाएंगे। फेल हो जाएंगे, कुछ नहीं होगा ये सब।

ये सभी बातें बच्चों को परेशान करती हैं उन्हें सैड जोन में ले जाती हैं। इसलिए इन सिचुएशन में उन्हें कहें कि आगे से ऐसा नहीं करना, चीजें अच्छी होंगी।

अंत में एम्स का डेटा पढ़ें

  • मार्च 2022 में इलेक्ट्रानिक्स और आईटी मंत्रालय ने संसद में रखे गए आंकड़ों में बताया कि भारत में 24% बच्चे सोने से पहले स्मार्टफोन चेक करते हैं और 37% बच्चे एकाग्रता यानी फोकस करने की क्षमता से जूझ रहे हैं।

चलते-चलते

पेरेंट्स के लिए काम की बात

  • बच्चे के साथ खुद भी मोबाइल न चलाएं।
  • एक-दूसरे से या बच्चे से तेज आवाज में बात न करें।
  • बच्चों की ज्यादा कमियां न निकालें।
  • बच्चों के सामने लड़ाई-झगड़ा न करें।
Leave A Reply

Your email address will not be published.