मोबाइल रील्स… यानी 1 से डेढ़ मिनट का शॉर्ट वीडियो। देखते-देखते कब घंटों गुजर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। क्या आपको पता है कि रील्स देखने का एडिक्शन आपकी बॉडी क्लॉक को बिगाड़ रहा है? आपके दिमाग को डैमेज कर रहा है। KGMU में ऐसे केस पहुंच रहे हैं। इनमें बच्चों से लेकर उम्रदराज लोग भी शामिल हैं।
केस 1- ऐसा असर…घर वालों से ही मारपीट करने लगा
पुराने लखनऊ का एक जनरल मर्चेंट दुकानदार दलजीत गुप्ता (बदला हुआ नाम) बेहद परेशान हालत में बीते शुक्रवार को KGMU पहुंचे। उनका बेटा अचानक से मोबाइल पर बहुत ज्यादा टाइम स्पेंड करने लगा था। दुकान पर बैठने के दौरान कई बार ऐसी स्थिति बन जाती कि ग्राहक काफी देर तक सामान के लिए काउंटर पर खड़े रहते, पर वह मोबाइल में व्यस्त रहता। हालात तब और बिगड़ गए, जब उसने बेहद आक्रामक रवैया अपनाते हुए घर के सदस्यों के साथ भी मारपीट करनी शुरू कर दी। दुकानदार बताते हैं कि दिनभर और रात भर वह रील्स ही देखा करता था। इस लत ने उसे परिवार से भी कटऑफ कर दिया।
केस 2- घर में खुद को कैद किया, तोड़फोड़ करता
Bsc सेकंड ईयर का छात्र प्रमोद 12वीं के बाद IIT में जाना चाहता था। महज कुछ नंबर से उसका सिलेक्शन रुक गया था। IIT नहीं मिलने के कारण उसने इंजीनियरिंग नहीं की। इसी बीच धीरे-धीरे मोबाइल पर बहुत ज्यादा टाइम स्पेंड करने लगा। देखते ही देखते हालात इस कदर बिगड़े कि वह महीनों घर से बाहर ही न निकलता। परिजन जब बाहर निकलने के लिए कहते, तो कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता। ज्यादा जोर डालने पर हिंसा पर उतर आता। घर में ही तोड़फोड़ शुरू कर देता। उसे KGMU की साइकोलाजी विभाग की OPD में पहुंचे। जहां डॉक्टरों के पूछने पर पिता ने बताया कि उसकी यह हालत लगातार रील्स देखने के कारण हुई है।
”रील्स देखने ही नहीं, बनाने की लत में कुछ भी कर गुजरते हैं बच्चे”
लखनऊ के मेदांता अस्पताल के डॉ. आकाश पंडिता कहते हैं, “रील्स बनाना भी हाल के दिनों में बड़ी समस्या बनकर उभरा है। खासतौर पर बच्चों पर इसका गहरा असर पड़ता हैं। ऐसे बच्चों की लाइफ लाँग परफॉर्मेंस पर असर पड़ रहा है। रील्स ज्यादा देखने की लत का असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है। ऐसे बच्चों की एकाग्रता पर असर दिखने लगता है। साथ ही, उनकी पढ़ने और बोलने की क्षमता भी प्रभावित होती है।”
हालिया शोध यह बताते हैं कि 50% से ज्यादा बच्चे टीवी या मोबाइल पर जरूरत से ज्यादा समय बिताते हैं। लिहाजा यह बेहद जरूरी है कि उन्हें मानीटर किया जाए। किसी भी सूरत उन्हें लगातार रील्स देखने की छूट न दी जाए। जरूरत पड़े, तो मेडिकल या साइकोलोजिकल काउंसिलिंग लेकर जानी चाहिए।
रील्स देखने के अलावा इसे बनाने की लत भी बेहद गंभीर समस्या हैं। मेदांता लखनऊ में रोजाना ऐसे केस आते हैं, जिनमें रील्स बनाने के दौरान कोई हादसा हो गया। कई पेरेंट्स उनके बच्चों में इस आदत को लेकर परेशान भी रहते हैं। राह चलते रील्स शूट करते समय कई जानलेवा दुर्घटनाएं भी हुई हैं। इसको लेकर बेहद अलर्ट रहने की जरूरत है।