लोहिया, भगत सिंह, गांधी का रास्ता मुश्किल लेकिन सही : रियाजुल्ला खान

लखीमपुर खीरी / क्या नुकसान के डर से ईमान की बात न कहेंगे बोलना ही है! लोग क्या कहेंगे,क्या सोचेंगे,इन दोनों के बीच की कड़ी पर चलने के लिए अत्यधिक हिम्मत,न्यायिक कौशल की आवश्यकता होती है, यह एक पहेली है जो प्रत्येक व्यक्ति को अपना निर्णय लेने से पहले परेशान करती है।एक बहुसंख्यक ग़ुलामी की मानसिकता,स्वार्थी लोगों के बीच सत्य और न्यायिक बात करने के लिए बहुत ही इच्छाशक्ति के साथ आत्मशक्ति की ज़रूरत होती है।
बहुसंख्यक सामंती वर्ग हर दल में ही नही हर दिल में ,समाज में अपना दबदबा कायम रखना चाहता है और सिर्फ अपने मन की बात करना चाहता है ऐसे में दबे कुचले ,सत्य की राह पर चलने वालो को निष्पक्ष उनका हिस्सा मिलना कठिन होता है अगर हिम्मत करके अपने हक़ की बात पर कोई बोलता है तो ये लोग उसके खिलाफ एक तंत्र खड़ा कर देते है उसमें उस व्यक्ति के आस पास उसके जैसे कमज़ोर लोगो को तोड़कर ,लालच देकर खड़ा कर दिया जाता है मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर में दो दोस्त दो अलग अलग परिस्थितियों में पंचायत के पंच की गद्दी पर बैठते है गद्दी पर बैठते ही उन्हें अपनी गहन गम्भीर ज़िम्मेदारी का बोध होता है और उसके बाद वे अपनी भूमिका से न्याय कर पाते हैं।लेकिन आज की परिस्थित में समाज,विचारधारा,दल हो इनमें नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका है आज केवल और केवल शक्तियों का दुरुपयोग किया जाता है चेहरे,जाति देखकर फैसले किये जाते हैं संबंधों,जाति को देखकर न्याय को विध्वंस कर दिया जाता है जिस तरह भाजपा सीबीआई ,ईडी,चुनाव आयोग का दुरुपयोग करती है ऐसे ही अन्य राजनैतिक दल,समाज,में भी यही हो रहा है परिणाम चाहे समाज या
दलों के लिए कितने ही घातक क्यों न हो।परंतु ये शायद भूल जाते हैं की ये देश भगत सिंह और गांधी का देश है यहां के खून में और मिट्टी में साहस भरा है जब ब्रिटिश हुक़ूमत के खिलाफ नही झुके तो इन दलों के चम्मचों और सामाजिक तानाशाहों से से क्या डरेंगे! शोषण के खिलाफ, अन्याय के खिलाफ,अधिकारों के हनन के खिलाफ फिर चाहे समाज मे हो रहा हो या राजनैतिक दलों में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ बोलने सीखिए ,लड़ना सीखिए ,अधिकार छीनना सीखिए,जनाब ये लोकतांत्रिक देश है दल हो या दिल सबके अधिकार स्पष्ट है लेना सीखिए!
तुम्हारा आसमां कदमो में होगा धरती के
हम आने खून से जब इंक़लाब लिखेंगे।।

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