हर साहिबे निसाब मुसलमान पर वाजिब है कुर्बानी: कारी फरीद – दीगर कौमी भाईयों की धार्मिक आस्था का रखें ख्याल – आपसी भाईचारे के साथ मनायें ईदुल अजहा का त्योहार

फतेहपुर। कुर्बानी कदीम इबादत है तमाम उम्मतों में हमेशा से राएज रही है। जैसा कि कुरआन मजीद में इसका जिक्र मौजूद है। हमारे मुल्क में मुखतलिफ ज़ात व मजहब के लोग रहते हैं। हर साल हम मुखतलिफ त्योहारों को बड़ी खुशी से मनाते हैं। ईदुल अज़हा भी इन त्योहारों में से एक है। इसमे अल्लाह तआला की रजा के लिए जानवरों की कुर्बानी करवाई जाती है। कुर्बानी हर साहिबे निसाब (सम्पन्न) मुसलमान पर वाजिब है।
यह बात काजी शहर कारी फरीद उद्दीन कादरी ने कही। उन्होने बताया कि हर वो मुसलमान जिसके पास साढ़े सात तोला सोना और साढ़े बावन तोला चांदी हो या फिर उसके बराबर की रकम हो वह साहिबे निसाब की श्रेणी में अता है। जिसकी जितनी बड़ी क़ुर्बानी उसका उतना ही बड़ा मकाम है। रहती दुनिया तक बेटे की क़ुर्बानी की बदौलत अल्लाह तआला के खलील (दोस्त) होने का लकब पैगम्बर हज़रत इब्राहिम को मिला। श्री कादरी ने कहा कि इस माह ईदुल अज़हा के तीन दिन यानी चाँद की 10, 11, 12 तारीख में जानवर का खून क़ुर्बानी की शक्ल में बहाने से अफजल अल्लाह तआला के नजदीक कोई अम्ल नहीं है। चाहे इंसान इन तीन दिनों मे पहाड़ के बराबर सोना खैरात कर दे तो वो भी कुर्बानी के बराबर नहीं हो सकता। उन्होंने जनपदवासी मुसलमानों से अपील किया कि वो अपने दीगर कौमी भाइयों की धार्मिक आस्था को देखते हुए किसी प्रतिबंधित जानवर की कुर्बानी न करें। कुर्बानी के दिनों में सफाई का खास ख्याल रखें। कुर्बानी का खून खुली नालियों में न बहायें और सोशल मीडिया पर जानवरों की तस्वीर न डालने का पैगाम दिया। खास कर गोश्त को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में काली पालीथीन या बंद थैलों का इस्तेमाल करें। जिससे किसी की दिल आजारी न होने पाए। लिहाजा ईदुल अज़हा के त्योहार को आपसी भाईचारा के साथ मनाएं और इस शहर की गंगा जमुनी तहजीब को बरकरार रखें। ईदुल अज़हा का त्योहार 29 जून गुरूवार को मनाया जाएगा।

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