मणिपुर के CM बोले-दुखी होकर मैंने इस्तीफे की बात सोची, क्योकि लोगों ने PM के पुतले जलाए, मेरे खिलाफ अभद्र भाषा इस्तेमाल की

 

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा कि वे लोगों के बर्ताव से दुखी थे। मणिपुर में 2 महीने से जारी हिंसा के बीच बीरेन सिंह ने शुक्रवार 30 जून को इस्तीफा देने की बात सोची। इसके लिए वे राज्यपाल अनुसुइया उइके से मिलने वाले थे। हालांकि बाद में उन्होंने अपना फैसला बदल दिया।

शुक्रवार को जब उनके इस्तीफा देने की खबरें आईं तो सैकड़ों महिलाएं प्रदर्शन करने लगीं। उन्होंने कहा कि बीरेन सिंह इस्तीफा ना दें, बल्कि हिंसा फैलाने वालों पर सख्त एक्शन लें। मुख्यमंत्री ने शाम 4 बजकर 1 मिनट पर ट्विटर पर लिखा- इस मोड़ पर तो मैं इस्तीफा नहीं देने वाला हूं।

शनिवार को दिए एक इंटरव्यू में बीरेन सिंह ने कहा- लोगों ने प्रधानमंत्री के पुतले जलाने शुरू कर दिए। भाजपा दफ्तरों पर हमला शुरू कर दिया। पीएम के पुतले क्यों जलाए, उन्होंने क्या किया था? मेरे पुतले जलाते तो कोई बात नहीं थी। इससे मैं दुखी हो गया।

मैंने इस्तीफे का फैसला इसलिए नहीं लिया, क्योंकि मैंने जनता का समर्थन देखा। शुक्रवार को मेरे घर के बाहर सैकड़ों लोग जमा हो गए थे। मैं पहले दुखी था कि केंद्र और राज्य सरकार जो कर सकती थीं, वो कर रही थीं। इसके बावजूद कुछ लोग पुतले जला रहे थे, भाजपा दफ्तरों पर हमला कर रहे थे। लोगों ने समर्थन किया और जो मुझे लग रहा था कि जनता के बीच मैं भरोसा को चुका हूं, वो गलत था।

एक नेता बिना जनता के समर्थन के नेता नहीं रह सकता है। लोगों का समर्थन ही किसी को नेता बनाता है। सीएम आवास के बाहर जब मैं आया तो मुझे अच्छा महसूस हुआ। लोगों ने मुझसे कहा कि इस्तीफा ना दूं। अगर वो कहते कि मुझे इस्तीफा देना है तो मैं दे देता। अगर कहते कि नहीं देना है तो नहीं देता।

इस्तीफा देने के बारे में इसलिए सोचा, क्योंकि मैंने प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह के पुतले जलते हुए देखे। मैंने देखा कि कुछ लोग भाजपा दफ्तरों पर हमले की कोशिश कर रहे हैं। पिछले 5-6 साल में केंद्र ने जो मणिपुर के लिए किया है और हमने जो मणिपुर के लिए किया है, उसे देखते हुए मेरे मन में सवाल उठने लगा था कि क्या हम जनता का भरोसा खो चुके हैं। ये सोचते वक्त मुझे बुरा महसूस हुआ। कुछ दिन पहले एक ग्रुप ने बाजार में मुझे गाली दी थी। मुझे अच्छा नहीं लगा और इसलिए मैंने इस्तीफे के बारे में सोचा।

मणिपुर में हिंसा क्यों हो रही है, इसे लेकर मैं भी हैरान हूं। सरकार ने अभी तक ऐसी कोई अनुशंसा नहीं की है कि मैतेई समुदाय को शेड्यूल ट्राइप लिस्ट में शामिल किया जाए या ना शामिल किया जाए। इसके लिए सभी का सहमत होना जरूरी है। हाईकोर्ट ने हमसे पूछा था इस बारे में। हमने अभी कोई रिकमंडेशन नहीं भेजी है। अभी 4 हफ्तों का वक्त है। मैं हिंसा का कारण नहीं समझ पा रहा हूं। ये कारण वही संस्था बता सकती है, जिसने रैली निकाली कि मैतेई को शेड्यूल ट्राइब में ना शामिल किया जाए। उनके पास उत्तर होगा।

मणिपुर म्यांमार का पड़ोसी है। चीन भी करीब है। 398 किमी की सीमा पर कोई गार्ड नहीं है। सुरक्षा बल हैं, लेकिन इतने बड़े इलाके पर तैनाती नहीं की जा सकती है। अभी जो स्थिति है, उसे देखते हुए यह किया जा सकता है कि हिंसा की प्लािनंग की गई है। इसका कारण अभी सामने नहीं आया है। यह समस्या कहां से आ रही है? यह आज की समस्या नहीं है। कांग्रेस हम पर आरोप लगा रही है। लेकिन हम वही जहरीले फल खा रहे हैं, जिसके बीज इन्हीं लोगों ने बोए हैं। पूरी दुनिया जानती है कि यह किस की गलती है।

मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इम्फाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।

 

कैसे शुरू हुआ विवाद:

मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।

 

मैतेई का तर्क क्या है: 

मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।

 

नगा-कुकी विरोध में क्यों:

बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इम्फाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।

मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।

 

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