कोटा में मरीज के ऑक्सीजन मास्क में लगी आग, 15 दिन से पेट के तेज दर्द से था परेशान, इलाज के लिए गया मिली मौत

 

राजस्थान के कोटा में बुधवार को रात 10 बजे कोटा मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल के सर्जिकल आईसीयू में भर्ती मरीज वैभव शर्मा के ऑक्सीजन मास्क में आग लग गई थी।

इससे उसका चेहरा झूलस गया। परिवार का आरोप है कि वैभव की मौत आग लगने की वजह से हुई। आग लगता देख स्टाफ भी मौके से भाग गया।

वहीं, अस्पताल का कहना है कि वैभव की मौत आग लगने से पहले ही हो चुकी थी। इस बीच, अब पूरी घटना का एक वीडियो सामने आया है।

इस वीडियो में वैभव के पास तीन से चार लोग खडे़ दिख रहे हैं। इस दौरान अचानक मरीज के मास्क में आग लग जाती है।

 

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मरीज वैभव शर्मा की मौत का कारण आग नहीं बल्कि सेप्टीसीमिक शॉक बताया गया है। सेप्टीसीमिक शॉक उसकी आंत फटने के चलते संक्रमण की वजह से हुआ था।

उसकी धड़कनें बंद हो गई थीं, इसलिए ही उसे डायरेक्ट कार्डियोवर्जन (डीसी) शॉक दिया जा रहा था। उसके चेहरे, छाती और बाएं कंधे पर झुलसने के निशान मिले।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसके जिंदा रहते ये निशान नहीं हुए। मौत के तुरंत बाद के निशान माने गए। उसकी आंत में डेढ़ सेमी का छेद था। इसी का ऑपरेशन किया गया था।

 

वैभव के परिवार का आरोप है कि डीसी शॉक देते समय लापरवाही से आग लगी। आग लगने पर पूरा स्टाफ आईसीयू से भाग गया था। जो वीडियो सामने आया है, उसमें नजर आ रहा है कि जैसे ही आग लगी, आईसीयू में हड़कंप मच गया। मरीजों के साथ मौजूद लोग घबरा गए।

वहीं, वैभव के परिजनों और वहां मौजूद अस्पताल के स्टाफ ने आग बुझाने की कोशिश की। एक स्टाफ ऑक्सीजन सप्लाई बंद करती नजर आ रही है।

 

ऐसे में वीडियो से यह बात तो साफ है कि आग लगने के बाद स्टाफ ने भागने के बजाय आग बुझाने की कोशिश की थी। घटना के वक्त तीन रेजीडेंट डॉक्टर, दो नर्सिंगकर्मी सहित अन्य स्टाफ मौजूद था।

डीसी शॉक के दौरान ऑक्सीजन मास्क में आग कैसे लगी। अस्पताल द्वारा इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था। कमेटी को पहले 24 घंटे में रिपोर्ट देनी थी।

कमेटी ने सोमवार रात तक रिपोर्ट नहीं सौंपी। कमेटी ने रिपोर्ट के लिए दो दिन का समय मांगा। समय दिया गया। रिपोर्ट रविवार को देनी थी, लेकिन रविवार को भी रिपोर्ट नहीं दी गई।

 

छुट्टी का दिन था। ऐसे में सोमवार को रिपोर्ट सौंपी जानी थी। कमेटी ने सोमवार शाम तक भी रिपोर्ट प्रिंसिपल को नही सौंपी। कमेटी ने अधीक्षक व स्टाफ के बयान लिए हैं।

जिस उपकरण (डिफिब्रिलेटर) से वैभव को शॉक दिया जा रहा था, उसका लगातार उपयोग भी किया जा रहा है। हॉस्पिटल की प्रिंसिपल डॉ.संगीता सक्सेना ने बताया- रिपोर्ट अभी नहीं मिली है।

रिपोर्ट मिलने के बाद ही आग के कारण बता सकेंगे। मैं भी रिपोर्ट का ही इंतजार कर रही हूं।

वैभव शर्मा के भाई गौरव ने बताया- हम अनंतपुरा तलाबा गांव के रहने वाले हैं। यहां वैभव एक केमिकल फैक्ट्री में काम करता था। पिछले पंद्रह दिन से उसके पेट में दर्द था।

 

उसे निजी डॉक्टर को भी दिखाया था, लेकिन कोई आराम नहीं आया। इसके बाद उसे मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।

यहां उसकी सोनोग्राफी करवाई गई तो आंत में छेद बताया। डॉक्टर ने ऑपरेशन करने की बात कही। इसके बाद हमने उसे 6 जुलाई को नए अस्पताल में भर्ती करवा दिया।

चार दिन बाद 10 जुलाई को उसका ऑपरेशन किया गया। ऑपरेशन के बाद उसे सर्जिकल आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। बुधवार दोपहर को उसकी तबीयत खराब होने लगी थी। उसे वैंटिलेटर पर लिया, ऑक्सीजन चढ़ाई।

 

गौरव का आरोप है कि रात दस बजे करीब अचानक से उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी तो डॉक्टर उसे डीसी शॉक देने लगी। इसी के दौरान आग लग गई।

उसके ऑक्सीजन मास्क ने आग पकड़ ली। गौरव का दावा है कि आग लगने पर स्टाफ वहां से भाग गया था और उसने आग को बुझाया था। इस हादसे में उसका भी हाथ झुलस गया।

उन्होंने बताया- परिवार में पहले पिता काम करते थे। कुछ समय से उनकी तबीयत भी खराब रहने लगी थी। ऐसे में हमने उन्हें काम करने से मना कर दिया।

वैभव काम के लिए केमिकल फैक्ट्री में जाता था। मैं और मेरा छोटा भाई लकी नगर निगम का टिप्पर चलाते हैं।

 

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सीसीटीवी को लेकर वैभव के भाई गौरव ने कहा- रिपोर्ट में कुछ भी आए, भाई की मौत आग लगने के बाद ही हुई थी। पहले तो सबसे ठीक से बात कर रहा था।

मेरी मां उसके पास रहती थी। उसकी हालत देखकर रोती थी। उस दिन रात को जब वैभव की तबीयत बिगड़ी तो वह रोने लगी। मैं उसे बाहर ले गया।

अब स्टाफ और दूसरे लोग कह रहे हैं कि उसकी पहले मौत हो गई थी। अगर पहले मौत हो गई थी तो डॉक्टर और स्टाफ उसके साथ क्या कर रहे थे। क्यों मशीनें लगा रहे थे। जिंदा होगा तभी तो इलाज कर रहे थे।

 

गौरव से सवाल किया गया कि वह तो आखिरी कोशिश कर रहे थे कि धड़कन सामान्य हो जाए तो कहा- कोई कोशिश नहीं कर रहे थे। मेरा भाई जिंदा था। उनकी लापरवाही से उसकी मौत हुई है।

गौरव से फिर सवाल किया कि आपने कहा था कि आग लगने पर स्टाफ भाग गया था। आपने आग बुझाई। इस पर गौरव ने कहा- स्टाफ भाग गया था।

आग बुझाने में मेरे हाथ अंगुली जल गई थी। सीसीटीवी को लेकर जब उसे बताया गया तो उसने कहा- स्टाफ ने शुरू में आग बुझाने की कोशिश की, लेकिन उनसे नही बुझी तो वह दूर चले गए।

मैंने ही आग बुझाई थी। मुझे पता होता कि मेरे भाई की तबीयत यहां ठीक होने के बजाय बिगड़ जाएगी तो यहां तो लाता ही नहीं। न तो हमें जांच कमेटी में रखा, न मुआवजा मिला और न ही स्टाफ पर कार्रवाई हुई।

 

कोटा मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल के अधीक्षक डॉ. आरपी मीणा ने बताया- वैभव को गंभीर इन्फेक्शन था। उसकी आंत में छेद हो गया था। स्थिति यह थी कि उसके पेट में गंदा पानी भरा हुआ था।

वह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परफोरेशन का मरीज था। यानी कि उसकी आंत के बीच छेद था। इसकी वजह से कई अलग-अलग बीमारियां होती हैं। अब उसकी आंत में छेद कैसे हुआ।

इसके अलग अलग कारण हो सकते हैं। इन्फेक्शन शरीर में काफी बढ़ गया था। इससे उसे सेप्टिसीमिया हो गया था। सेप्टिसीमिया एक गंभीर ब्लड इन्फेक्शन है। इससे अलग-अलग हिस्से जैसे लंग्स, स्किन या ब्लडस्ट्रीम में बैक्टीरिया पनप जाते हैं।

 

डॉ. आरपी मीणा ने बताया- पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जो जलने के निशान हैं। वह जिंदा रहने के दौरान के नहीं हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जीवित व्यक्ति के झुलसने पर त्वचा अलग ढंग से रिएक्ट करती है।

उस पर लाली होती है। पोस्टमार्टम में त्वाचा पर ऐसा रिएक्शन नहीं पाया गया। ऐसे में यह क्लियर है कि आग उसकी मौत के बाद लगी थी।

इस मामले को लेकर डॉक्टर्स का कहना है कि रात को वैभव की तबीयत बिगड़ी, सीपीआर दिया तो उसमें कोई मूवमेंट नहीं हुआ था। इसके बाद रेजिडेंट्स और स्टाफ ने मरीज को फिर भी बचाने की कोशिश की। डीसी शॉक दिया।

 

इसमें मरीज के दिल तक करंट पहुंचाया जाता है। ताकि धड़कनों की उम्मीद फिर से बन सके। उसे डीसी शॉक दिया गया। कोई फायदा नहीं हुआ। अचानक ऑक्सीजन मास्क ने आग पकड़ ली।

किसी भी मरीज की हार्ट बीट को वापस लाने या हार्ट बीट को सामान्य करने के लिए डीसी शॉक दिया जाता है। यह डिफाइब्रिलेटर मशीन से दिया जाता है।

यह मशीन हार्ट बीट में परिवर्तन का पता लगाने और हार्ट तक बिजली का झटका पहुंचाने का काम करती है। हालांकि धड़कन रुकने के बाद 10 से 20 प्रतिशत चांस ही होते हैं कि धड़कन फिर सामान्य हो जाए। मरीज की धड़कन बंद होने के बाद डॉक्टर्स इसे आखिरी विकल्प के तौर पर यूज करते है।

इसमें दो इलेक्ट्रोड होते हैं। जिन्हें रोगी की छाती पर रखा जाता है। इससे पहले इन दोनों पर जेल लगाया जाता है। एक तय लिमिट में इलेक्ट्रॉनिक शॉक मरीज की छाती पर दिया जाता है। यह मरीज की स्थिति के आधार पर तय हेाता है कि कितना शॉक देना है।

 

सीसीटीवी फुटेज को लेकर जब हमने अस्पताल अधीक्षक डॉ.आरपी मीणा से बात की तो उन्होंने कहा- मामले की जांच के लिए कमेटी गठित कर दी गई है। सब कमेटी के पास है, प्रिंसिपल मैम बता सकेंगी।

गौरव के आरोप और सीसीटीवी में नजर आ रही घटना को लेकर जब उनसे पूछा तो उन्होंने कहा- स्टाफ तो बचाने की कोशिश ही करेगा।

महिला स्टाफ ने तो आग के बीच ऑक्सीजन बंद की थी। नहीं तो बड़ी घटना भी हो सकती थी। अस्पताल में मरीज की जान बचाई जाती है। बाकी तो रिपोर्ट के बाद ही पता लगेगा।

 

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