हरियाणा में नूंह हिंसा से बचे लोगों की कहानियां, मंदिर में 7 घंटे बंद रहे; फायरिंग-पत्थरबाजी के बीच लौटे घर 

 

हरियाणा के नूंह में हिंसा में फंसे लोग अपने घर सुरक्षित पहुंच गए हैं। हिसार, भिवानी, करनाल, फतेहाबाद, अंबाला,पानीपत समेत कई जगहों से लोग नूंह में ब्रजमंडल यात्रा में शामिल होने गए थे। अचानक हिंसा की वजह से कुछ फंस गए तो कुछ जान बचाकर वहां से भाग निकले।

भिवानी के लोग ड्राइवर के भागने के बाद यात्री के बस भगाने से बचे। हिसार के लोगों की बस उपद्रवियों ने जला दी थी। फतेहाबाद के लोगों ने किसी तरह पथराव के बीच बस को भगाकर जान बचाई।

सोमवार दोपहर करीब डेढ़ बजे का समय था। हम सभी नूंह में ब्रजमंडल यात्रा में शामिल गाड़ियों के काफिले में शामिल होकर नल्हड़ शिव मंदिर से फिरोजपुर-झिरका की तरफ रवाना ही हुए थे कि अचानक पूरा काफिला रूक गया। हमारी बस पीछे थी, जिसमें काफी सारे बच्चे थे। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, बस पर पत्थर लगने शुरू हो गए।

पहले एक तरफ से पत्थर फेंके जा रहे थे। कुछ सेकेंड बाद ही चारों तरफ से पत्थरों की बारिश हुई। हालात यह बने की बस में चीख-पुकार मच गई। कुछ लोग बस से निकल कर भाग गए। इसमें बस का चालक भी शामिल था। 10 लोग ही बस में बचे। इसी बीच उपद्रवियों की भीड़ पहुंच गई। एक-एक आदमी की जेब चैक की। वे बोल रहे थे कि बंदूक तो नहीं है।

इसके बाद उनके मोबाइल फोन और पर्स छीन लिए। एक व्यक्ति ने उनकी मदद की और फिर उनके साथ ही यात्रा में गए यात्री ने बस का स्टीयरिंग संभाला। उसने कभी बस नहीं चलाई थी। उसके सिर में भी चोट लगी थी। उन्होंने बस की रफ्तार बढ़ाई और फिर कुछ लोगों ने छिपाकर रखे मोबाइल से गूगल नेविगेशन के सहारे गांवों के रास्तों से होते हुए रेवाड़ी की तरफ मुड़ गए।

15 किलोमीटर तक रास्ते में बीच-बीच में उनकी बस पर पथराव होता रहा। बस में बैठे-बैठे ही कुछ लोगों के पत्थर लगने से सिर फूट गए। खून बहता रहा, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कुछ सेकेंड रूक जाएं। उक्त व्यक्ति उन्हें 50 किलोमीटर दूर रेवाड़ी लाकर ट्रॉमा सेंटर में ले गया। पूरे सफर में सब आंखें बंद कर बैठे रहे।

विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हिसार के संदीप बंसल ने बताया कि सुबह 7 बजे हिसार से 2 बसों में करीब 125 श्रद्धालु निकले थे। 11 बजे मंदिर में पहुंच गए। जब उपद्रव शुरू हुआ तो मंदिर में जलाभिषेक कर रहे थे। मंदिर 3 तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ था। उपद्रव होते ही ड्राइवर बसों को मंदिर से दूर ले गए, लेकिन उनकी एक बस को जला दिया गया। यह देखकर दूसरे ड्राइवर ने बस दौड़ा दी।

हिसार के श्रद्धालुओं में महिलाओं और बच्चों की संख्या काफी थी। हमने मंदिर में ही सुरक्षा घेरा बनाया। मंदिर में पानी के भी केवल 20 वाटर कैंपर थे। इसलिए महिलाओं और बच्चों का बुरा हाल हो गया। 7 घंटे तक मंदिर में बंधक के तौर पर रहे। जो खीर का प्रसाद था, उसी को खाकर महिलाओं और बच्चों को गुजारा करना पड़ा। भूख और प्यास से बच्चे तड़प रहे थे।

पहाड़ियों से हम पर गोलियां चल रही थीं क्योंकि मंदिर में चारदीवारी और मुख्य इमारत के अलावा कहीं ठहरने की जगह नहीं थी। सुरक्षा चक्र बनाने वाले कार्यकर्ता खुद भी घायल हो रहे थे। एक समय तो ऐसा था कि उपद्रवी केवल 300 मीटर दूरी से ही फायरिंग कर रहे थे। करीब 100 से 150 उपद्रवी पहाड़ियों से फायरिंग कर रहे थे। पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए थे कि उनके पास फोर्स नहीं है।

जैसे जैसे शाम ढलती जा रही थी, मंदिर पर फायरिंग बढ़ती जा रही थी। रात 8 बजे उन्हें मंदिर से रेस्क्यू किया गया। पुलिस जब उन्हें नूंह पुलिस लाइन लेकर आई, तब भी रास्ते में पत्थरबाजी हुई, जिस कारण बच्चे और महिलाएं सहमी रहीं। जब पुलिस लाइन पहुंचे, तब उन्हें अपने बचने की उम्मीद दिखी।

फतेहाबाद के रहने वाले महेश हंस ने बताया कि भूना और आस-पास के क्षेत्रों से 40 के करीब लोग सुबह 5:30 बजे बस में सवार होकर नूंह के लिए रवाना हुए थे। वे 11 बजे के आसपास वहां पहुंच गए और यात्रा एक बजे शुरू हो गई थी, लेकिन वे थोड़ा पीछे थे। तभी शोर मचा कि आगे पथराव हो गया है।

हिंसा का पता चलते ही उन्होंने वहां से सुरक्षित निकलने के लिए दूसरे रूट पर बस दौड़ा दी। जिस सड़क पर जा रहे थे, उस सड़क पर भी आगे उन्हें दोनों तरफ काफी युवक खड़े मिले, जिन्होंने बस पर अचानक पथराव शुरू कर दिया। इससे बस के शीशे टूट गए। उनके समेत कई लोगों को चोटें लगीं। इसके बाद भी बस को ड्राइवर ने रोका नहीं और वहां से सुरक्षित निकाल लाया।

रास्ते में उन्हें पुलिस चौकी दिखी। वे चौकी में रुके तो चौकी खाली पड़ी थी। इसके बाद डायल 112 को सूचित किया, लेकिन बाद में जान को खतरा मानते हुए वे वहां से भी निकल आए। देर रात सभी फतेहाबाद के भूना में अपने घर पहुंचे।

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