जश्ने जफर इकबाल मुशायरे में सुनाए गए बेहतरीन कलाम

– हमने अपने खून से सींचा है गुलजारे वतन, हम फकत नारों में वंदे मातरम करते नहीं: वासिफ
जश्ने जफर इकबाल मुशायरे में कलाम पेश करते शायर।
फतेहपुर। जश्ने जफर इकबाल जफर के मुशायरा एवं कवि सम्मेलन में दूर-दूर से आए जाने माने शायरों ने बेहतरीन कलाम पेश कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। मशहूर शायर इंजीनियर वासिफ फारूकी ने मुशायरे का आगाज किया। वरिष्ठ अधिवक्ता मोहम्मद मोइनुद्दीन के संयोजन में कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुशायरे में जफर इकबाल जफर कलाम सराहे गए-मोम के लोग कड़ी धूप में आ बैठे हैं, आओ अब इनके पिघलने का तमाशा देखें।
जाने माने शायर एवं विश्व विख्यात नाजिम इंजीनियर वासिफ फारूकी ने नज्म सुना कर मौजूद लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया- हमने अपने खून से सींचा है गुलजार ए वतन, हम फकत नारों में वंदे मातरम करते नहीं। फैजाबाद से आए जाने-माने शायर शाहिद जमाल ने अपने कलाम से लोगों को बहुत मुतासिर किया- न जाने कैसी थकन साथ साथ रहती है, जहां भी जाओ घुटन साथ साथ रहती है। वरिष्ठ कवि एवं शायर रामबाबू रस्तोगी रायबरेली ने सुनाया- कोई सैलाब जो होता उतर गया होता, मैं अगर तुमसे बिछड़ता तो मर गया होता। शकील गयावी ने बेहतरीन तरन्नुम में शानदार कलाम पेश किया- मुश्क-ए-बू है बाग-ए-उर्दू जिनके इस्तेकबाल में, बन के दूल्हा आज बैठे हैं वो दुल्हन हाल में। इस मुशायरा की खास बात यह है कि इसमें उन शेयरों ने कलाम पेश किया जिनका उर्दू साहित्य में नाम है और जिनके कलाम विद्वानों के बीच सराहे जाते हैं। जानी-मानी शायरा तरन्नुम कानपुरी ने अपने मधुर कंठ से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया- जब तगाफुल आपका देखेंगे हम, साज ए दिल टूटा हुआ देखेंगे हम, आओगे रोज ए कयामत सामने हश्र तक क्या रास्ता देखेंगे हम। लखनऊ के शायर फारुख आदिल की पुर कशिश आवाज ने दिल जीत लिया- कोई सियासी दल है क्या, शहर तेरा जंगल है क्या, मुश्किल चाहे जैसी हो, छोड़ के जाना हल है क्या। जाने माने जाने माने शायर एवं संचालक मारूफ रायबरेलवी ने सुनाया- कतरा-ए-खून-ए-जिगर को चश्म तर तक ले गए, अब के बादल ऐसे आए मेरा घर तक ले गए। सद्भाव के शायर एवं कवि डॉक्टर वारिस अंसारी ने पढ़ा- जाने कितने लोग मारे जा रहे हैं और हम है कि निहारे जा रहे है, खैरियत क्या है मियां बस ये समझ लो, जिंदगी के दिन गुजारे जा रहे हैं। हिंदी एवं उर्दू में एक साथ लेखन करने वाले शिव शरण बंधु ने सुनाया-हम उर्दू से मोहब्बत कर रहे हैं, मोहब्बत की हिफाजत कर रहे हैं, अजब दस्तूर है जम्हूरियत का, जो कातिल हैं हुकूमत कर रहे हैं। सलीम ताबिश, डॉ शाहिद खान फैजाबादी, अनस इजहार इलाहाबादी, वकार काशिफ कानपुरी, शिवम हथगामी आदि अनेक शायरों ने भी कलाम पेश किए। शायर कमर सिद्दीकी ने फनकारों का इस्तकबाल किया।

Leave A Reply

Your email address will not be published.