यूपी में किसानों को बीज खरीद पर सब्सिडी देने में करोड़ों का घोटाला सामने आया है। किसानों को बीज खरीद पर सीधे सब्सिडी देने के बजाय मनचाही कंपनी को मनचाहे रेट के आधार पर बीज खरीद का ठेका दिया गया। उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग 2015 से 2020 तक सुचारु रूप से संचालित था, लेकिन 2021 से लेकर अब तक विभाग के जिम्मेदार शासनादेश को दरकिनार का मनमाने ढंग से डीबीटी योजना का संचालन कर रहे हैं। जिसके जरिए दो साल के अंदर लगभग 60 करोड़ की योजना के बजट में बंदरबांट किया गया।
30 जून 2021 को केंद्र सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ एग्रीकल्चर एंड फार्मर्स वेलफेयर डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर कॉरपोरेशन एंड फार्मर्स वेलफेयर के द्वारा जिओ जारी किया गया। इसमें कहा गया कि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के द्वारा बीज वितरण करने के लिए एजेंसियों का चयन पारदर्शी निविदा से किया जाए। खुली एवं पारदर्शी प्रतिस्पर्धा से निविदा की न्यूनतम दरों को प्राप्त किया जाए।
जिसके बाद 26 नवंबर 2021 को राज्य सरकार के द्वारा शासनादेश जारी किया गया। जिसमें यह लिखा गया कि कंपनियों का चयन किया जाए और चयनित सभी कंपनियों को समुचित अवसर प्रदान किया जाए जिससे कि एक से अधिक के विकल्प की स्थिति हमेशा बनी रहे।
9 दिसंबर 2021 को राज्य सरकार के द्वारा बीच खरीद को लेकर दूसरा शासनादेश जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि चयन किए गए सभी संस्थाओं को समान अवसर प्रदान किया जाए।
30 जून को केंद्र सरकार के द्वारा जारी किए गए जिओ के बाद डायरेक्टर ने बिना निविदा कराए 4 संस्थाओं का चयन (NSC, HAFED, NEFED, UPBVN) करके शासन को 12 अगस्त 2021 को एक प्रस्ताव भेजा। जिसके बाद शासन ने 21 सितंबर 2021 को चारों संस्थाओं अनुमोदन प्रदान करते हुए निर्देशित किया कि चयनित संस्थाओ से पारदर्शी तरीके से निविदा करते हुए न्यूनतम दर प्राप्त की जाए और इंपैनल करने के बाद क्रय की कार्रवाई की गई। लेकिन, निदेशक आरके तोमर के द्वारा शासन की आदेशों की अवहेलना करते हुए 20 अक्टूबर 2021 को पत्र जारी किया गया जिसमें चयनित संस्थाओं से दरें मांग ली गई।
20 अक्टूबर 2021 को विभाग के द्वारा दर मांगी गई और 20 अक्टूबर को ही NEFED की दर प्राप्त हो गई। अगले ही दिन 21 अक्टूबर 2021 को दूसरी कंपनी NSC के द्वारा दर प्राप्त की गई। तीसरी कंपनी कंपनी HEFED ने टेंडर निकाल कर दरें प्राप्त की जो कि 21 दिसंबर को विभाग को सूचित किया गया। चौथी कंपनी यूपी बीज विकास निगम ने कोई दर नहीं दिया। लेकिन, विभाग के द्वारा HEFED की दरें प्राप्त होने से पहले ही विभाग के द्वारा जिलों को क्रय की कार्रवाई शुरू करने को कह दिया गया जिससे कि न्यूनतम दर को तय ही नहीं किया गया और जिलों में क्रय शुरू हो गया।
राज्य सरकार की शासनादेश में यह कहा गया कि कंपनियों का चयन पारदर्शी तरीके से किया जाए और न्यूनतम दरों पर क्रय किया जाए, लेकिन विभाग के द्वारा अधिकतम दर देने वाली कंपनी को चयनित किया गया।
NCS के द्वारा चिली की न्यूनतम दर 14400 दी गईं और अधिकतम दर 46600 दी गई।
NEFED के द्वारा चिली की न्यूनतम दर 30000 दी गईं और अधिकतम दर 50000 दी गई।
NSC के द्वारा करेला की न्यूनतम दर 3825 दी गईं और अधिकतम दर 10500 दी गई।
NEFED के द्वारा करेला की न्यूनतम दर 11000 दी गईं और अधिकतम दर 16000 दी गई।
NSC के द्वारा लौकी की न्यूनतम दर 2070 दी गईं और अधिकतम दर 4470 दी गई।
NEFED के द्वारा लौकी की न्यूनतम दर 7000 दी गईं और अधिकतम दर 10000 दी गई।
NSC के द्वारा पत्ता गोभी की न्यूनतम दर 12325 दी गईं और अधिकतम दर 24935 दी गई।
NEFED के द्वारा पत्ता गोभी की न्यूनतम दर 25000 दी गईं और अधिकतम दर 40000 दी गई।
NSC के द्वारा टमाटर की न्यूनतम दर 16300 दी गईं और अधिकतम दर 65800 दी गई।
NEFED के द्वारा टमाटर की न्यूनतम दर 40000 दी गईं और अधिकतम दर 80000 दी गई।
उद्यान विभाग के द्वारा नवंबर 2015 से कैश डीबीटी की व्यवस्था लागू की गई थी जिससे कि किसानों को अपनी बीज का चयन एवं फसल चयन की स्वतंत्रता थी। किसान अपनी स्वेच्छा से बीज क्रय करते थे और सीधे अपने खाते में कैश डीबीटी का लाभ प्राप्त करते थे। यह व्यवस्था विभाग में मार्च 2021 तक चली।
लेकिन उद्यान विभाग के डायरेक्टर के द्वारा कैश डीबीटी को काइंड डीबीटी में परिवर्तित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया जिसको स्वीकृति दी गई और कहा गया कि बीज खरीद में सामान की खरीद चयनित एजेंसियों से न्यूनतम दरें प्राप्त करके की जाए।
काइंड डीबीटी करने के बाद किसानों की स्वतंत्रता को छीनने के साथ ही विभाग के द्वारा मंहगी दरों बीज वितरित करने का काम किया गया। खास बात यह है की पूरी प्रक्रिया में एजेंसियों के द्वारा बीज क्रय ना करके विभाग के द्वारा इसको क्रय किया गया। जोकि जो कि भारत सरकार के शासनादेश के बिल्कुल विपरीत था।
2021-22 में बीच और प्लास्टिक कैरेट खरीद के लिए कुल बजट 30 करोड़ का रखा गया जिसमें 20 करोड रुपए बच के लिए और 10 करोड रुपए प्लास्टिक कैरेट के लिए रखा गया था।
2021 में बीज खरीद में नेफेड को बीज खरीद का 90% कम दिया गया जबकि एनएससी को मात्र 10% कम दिया गया।
वहीं, प्लास्टिक कैरेट की खरीद में हैफेड को 100 परसेंट काम दिया गया। क्योंकि विभाग के डायरेक्टर उसे वक्त हैफेड के एचडी के अतिरिक्त चार्ज पर थे।
2022- 23 में बीच और प्लास्टिक कैरेट खरीद के लिए कुल 35 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया गया था जिसमें ₹27 करोड़ बीज खरीद के लिए और 8 करोड़ रुपए प्लास्टिक कैरेट की खरीद के लिए था। जिसमें बीज खरीद के लिए 90% काम नैफेड को और 10% काम एनएससी को दिया गया। जबकि प्लास्टिक कैरेट की खरीद के लिए 100% कम नैफेड को दे दिया गया। जबकि नैफेड के द्वारा दी गई दरों को जनपदों में जारी तक नहीं किया गया।
उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण महासंघ के उपाध्यक्ष जमाल अहसन उस्मानी ने बताया कि भ्रष्टाचार में लिप्त उद्यान निदेशक डा. आरके तोमर की शासन में ऊंची पहुंच के चलते शिकायत के नौ माह बीत जाने के बाद भी आज तक उक्त प्रकरण में अभी तक न तो जांच ही हो पाई है और न ही दोषियों के खिलाफ कार्यवाही हो पाई है।
सीएम योगी को भेजी गयी चिट्ठी में शिकायतकर्ता एवं महासंघ के उपाध्यक्ष जमाल अहसन उस्मानी ने कहा है कि विभागीय घोटालेबाजों ने बाकायदा शासनादेश को दरकिनार करते हुए किसानों को सीधे देने वाली डीबीटी स्कीम को मनमाने ढंग से संचालित किया जा रहा है। इसके जरिये 45 जिलों में एकीकृत बागवानी विकास मिशन और 30 जिलों में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में घोटाला किया गया है।
कैश बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम में किसानों को आजादी थी कि वो किसी भी संस्था से अपनी स्वेच्छा अनुसार बीज क्रय करेंगे और सब्सिडी का लाभ सीधे अपने खातों में लेंगे। किसानों को इसके तहत 20 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर मिलते थे। लेकिन ये योजना विभाग के अधिकारियों की वजह से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। आरोप यह भी है कि विभाग इसकी बजाय मनमाने दर से क्रय करके किसानों को काइंड सब्सिडी देने लगा।