चीन बोला- ताइवान मुद्दे पर आग से खेल रहा अमेरिका, विदेश मंत्री शांगफू ने कहा- ये हमारा आंतरिक मसला और…

 

विदेश: चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू रूस के दौरे पर हैं। इस दौरान उन्होंने ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका को घेरा है। उन्होंने कहा ताइवान मुद्दे पर अमेरिका आग से खेलने का काम कर रहा है। न्यूज एजेंसी ‘शिनहुआ’ के मुताबिक ली शांगफू ने कहा है कि चीन को रोकने के लिए अमेरिका ताइवान का इस्तेमाल कर रहा है। जबकि वो इसमें कभी कामयाब नहीं हो पाएगा।

मॉस्को में इंटरनेशनल सिक्योरिटी पर बोलते हुए शांगफू ने कहा- ताइवान को फिर से चीन में शामिल होने से कोई नहीं रोक सकता है। उन्होंने कहा कि ताइवान चीन का आंतरिक मसला है। इसमें वो किसी बाहरी की दखलंजदाजी को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

 

 

दरअसल, चीन के इस बर्ताव की वजह ताइवान के उप-राष्ट्रपति विलियम लाई का अमेरिका दौरा है। चीन ने उन्हें ट्रबलमेकर यानी मुसीबतें पैदा करने वाला कहा है। वहीं ताइवान ने चीन की इन धमकियों पर पलटवार किया था। उप राष्ट्रपति लाई ने कहा था कि ताइवान किसी भी धमकी से डरेगा नहीं और न ही पीछे हटेगा। चीन हमेशा से ही ताइवान के नेताओं के अमेरिका जाने पर आपत्ति जताता रहा है।

विलियम लाई अगले साल ताइवान में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में सबसे प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। ऐसे में चीन नहीं चाहता है कि वो अमेरिका से करीबी बढ़ाएं। लाई ने न्यूयॉर्क में अपने समर्थकों से बातचीत के दौरान कहा- अगर ताइवान सुरक्षित है तो पूरी दुनिया सुरक्षित है। वहीं डिफेंस मिनिस्टर ली शांगफू पर अमेरिका ने 2018 में पाबंदियां लगाई थी। अमेरिका ने ली पर पाबंदियों की घोषणा की वजह रूस से हथियार लेने को बताया था।

 

 

ताइवान का एयर डिफेंस जोन उसके एयरस्पेस से काफी बड़ा है और कई जगह पर यह चीन के एयर डिफेंस जोन पर ओवरलैप कर जाता है। इसके अलावा सिर्फ एयरस्पेस ही नहीं बल्कि कहीं-कहीं पर इसमें मेनलैंड भी शामिल है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ताइवान के डिफेंस जोन में चीन की बढ़ती दखलंदाजी उसकी ग्रे जोन रणनीति का हिस्सा है जिससे वह आइलैंड पर दबाव बनाए रखना चाहता है।

अमेरिका ने 1979 में चीन के साथ रिश्ते बहाल किए और ताइवान के साथ अपने डिप्लोमैटिक रिश्ते तोड़ लिए। हालांकि चीन के एतराज के बावजूद अमेरिका ताइवान को हथियारों की सप्लाई करता रहा। अमेरिका भी दशकों से वन चाइना पॉलिसी का समर्थन करता है, लेकिन ताइवान के मुद्दे पर अस्पष्ट नीति अपनाता है।

 

 

राष्ट्रपति जो बाइडेन फिलहाल इस पॉलिसी से बाहर जाते दिख रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि अगर ताइवान पर चीन हमला करता है तो अमेरिका उसके बचाव में उतरेगा। बाइडेन ने हथियारों की बिक्री जारी रखते हुए अमेरिकी अधिकारियों का ताइवान से मेल-जोल बढ़ा दिया।

इसका असर ये हुआ कि चीन ने ताइवान के हवाई और जलीय क्षेत्र में अपनी घुसपैठ आक्रामक कर दी है। NYT में अमेरिकी विश्लेषकों के आधार पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सैन्य क्षमता इस हद तक बढ़ गई है कि ताइवान की रक्षा में अमेरिकी जीत की अब कोई गारंटी नहीं है। चीन के पास अब दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है और अमेरिका वहां सीमित जहाज ही भेज सकता है।

 

 

अगर चीन ने ताइवान पर कब्जा कर लिया तो पश्चिमी प्रशांत महासागर में अपना दबदबा दिखाने लगेगा। इससे गुआम और हवाई द्वीपों पर मौजूद अमेरिका के मिलिट्री बेस को भी खतरा हो सकता है।

ताइवान ने समुद्री सतह से आसमान या पानी के अंदर मार करने वाली 46 MK-48 मिसाइल (टॉरपीडो) अमेरिका से 2017 में खरीदी।

एक टॉरपीडो की कीमत 74.65 करोड़ रुपए है, लेकिन ताइवान ने अमेरिका से ये 40.31 लाख रुपए में खरीदा था। मतलब साफ है कि अमेरिका ताइवान को काफी कम कीमत पर हथियार मुहैया कराता है।

20 मई 2016 को साई इंग वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनीं। 20 जनवरी 2017 को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने। इसके बाद दोनों देशों के बीच कई हथियार सौदे हुए।

 

 

 

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