– नौ माह से पांच वर्ष की अवस्था तक विटामिन ए की नौ खुराक से मिलता बच्चे को पोषण
बच्चे को खुराक पिलाकर अभियान का आगाज करते सीएमओ।
फतेहपुर। जिले में 291867 बच्चों को विटामिन ए की खुराक पिलाई जाएगी। नौ माह से पांच वर्ष तक की अवस्था के बच्चों को इस सीरप का कुल नौ खुराक लेना अनिवार्य है। ऐसा करने से बच्चों को पोषण मिलता है और उनका बीमारियों से बचाव भी होता है। इसके लिए एक माह तक अभियान चलेगा जिसका आगाज बुधवार से हो गया। जिले में इस अभियान का शुभारंभ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अरबन पक्का तालाब में सीएमओ डा अशोक कुमार ने किया। उन्होंने अपील किया कि आशा, एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की मदद से बच्चों को इस दवा का सेवन अवश्य करवाएं।
अभियान के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ अशोक कुमार ने बताया कि जिले में नौ से बारह माह के 17564 बच्चों को यह दवा दी जाएगी। विटामिन ए सम्पूरण कार्यक्रम के तहत ही एक से दो वर्ष तक के 66187 बच्चों को और दो से पांच वर्ष तक के 208126 बच्चों को इस दवा का सेवन करवाया जाएगा। इस अभियान में एएनएम का सहयोग आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता करेंगी। बच्चों को यह दवा खसरे से बचाव के प्रथम और दूसरे टीके के साथ दी जाती है और इसके अलावा प्रत्येक छह माह पर अभियान के दौरान भी इसका सेवन कराया जाता है। छाया वीएचएसएनडी और छाया यूएचएसएनडी सत्रों पर बच्चों को लाकर इस दवा का सेवन करवाया जाता है। प्रत्येक सरकारी अस्पताल में यह दवा उपलब्ध है। इसे नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में भी शामिल किया गया है। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ सुरेश की निगरानी में अगस्त व सितम्बर माह में इसे अभियान के तौर पर उपलब्ध कराया जाएगा। एसीएमओ ने बताया कि विटामिन ए की कमी छोटे बच्चों में रोकथाम लायक अंधेपन का प्रमुख कारण है जिसे दवा सेवन से दूर किया जा सकता है। इसकी कमी बच्चों के विकास को बाधित कर सकती है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी बाधित करती है। खसरा व दस्त पीड़ित बच्चों में इसकी कमी हो जाने से मृत्यु की आशंका अधिक होती है। टीकाकरण के साथ इस सीरप की सही और उम्र विशिष्ट खुराक देने पर करीब दस फीसदी बच्चों में दस्त, सिरदर्द, बुखार और चिड़चिड़ापन जैसे हल्के लक्षण दिखते हैं जो बिना उपचार के 24 से 48 घंटों के भीतर स्वतः ठीक हो जाते हैं। वर्ष 2013 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विटामिन ए की कमी को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या घोषित किया है क्योंकि यह पाया गया कि विश्व में छह से 59 माह के प्रत्येक तीन बच्चों में से एक बच्चे को यह प्रभावित करता है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारी प्रावधानों के तहत यह सीरप उपलब्ध कराया जा रहा है।