कोटा में दुनिया की सबसे बड़ी बन रही घंटी, 5 हजार साल तक रहेगी सेफ; 8KM तक सुनाई देगा ओम का साउंड

 

रजस्थान के कोटा में इतिहास बनने जा रहा है। यहां रिवर फ्रंट पर दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल पीस कास्टिंग घंटी (बेल) को सांचे में ढालने का काम पूरा हो चुका है।

आसान शब्दों में समझें तो घंटी ने अपना आकार ले लिया है। कुछ ही दिनों में जब ये ठंडी होकर पूरी तरह ठोस अवस्था में आ जाएगी तब इस पर पेंडुलम लगाने और इसे जॉइंट लेस चेन से लटकाने का काम शुरू होगा।

 

इंजीनियर देवेंद्र आर्य कहते हैं कि 17 अगस्त गुरुवार देर रात ही इसे सांचे में ढालने का काम पूरा हुआ। ये काम इतना आसान नहीं था।

इसमें बेहद रिस्क थी और थोड़ी सी गलती महीनों-सालों की मेहनत पर पानी फेर सकती थी। आर्य कहते हैं कि यह प्रोजेक्ट बड़ा होने के साथ सबसे मुश्किल प्रोजेक्ट भी था।

 

सबसे ज्यादा चैलेंजिंग था कास्टिंग यानी इसकी ढलाई का… 79 हजार किलो वजन की इस घंटी को सांचे में ढालने की वर्किंग में चूक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।

ढलाई के 60 मिनट हमारे लिए साल भर का सबसे मुश्किल समय था। वो एक-एक मिनट हमारे लिए बहुत भारी था। किसी भी सेकेंड कोई भी बुरी खबर न आए, इसके लिए हम प्रार्थना करते रहे।

 

देवेंद्र आर्य बताते हैं कि इस घंटी को सांचे में डालने के लिए 3 हजार डिग्री तापमान पर ढलाई की गई। हमें यहां नुकसान की आशंका तो थी ही साथ ही किसी भी प्रकार की दुर्घटना से भी बचना था।

उन्होंने बताया कि कास्टिंग के लिए रविवार शाम से ही काम शुरू कर दिया गया था। जिसमें घंटी तैयार की गई है, उसे मोल्ड बॉक्स कहते हैं। मोल्ड बॉक्स में फायर कर पहले तापमान को 400 डिग्री तक पहुंचाया गया। गुजरात से लाई 35 भटि्ठयों में इसका मेटल तैयार किया गया है।

 

उन्होंने बताया कि मोल्ड बॉक्स में तापमान सेट नहीं हो पाता तो थ्री डी डिजाइन नहीं बन पाती, ना ही ढलाई का काम पूरा हो पाता। रात करीब साढे़ 9 बजे सारा प्रोसेस कंप्लीट किया गया। इसके बाद घंटी को ढालने का काम शुरू हुआ।

देवेन्द्र आर्य ने बताया कि ये सारा काम करते हुए हमारे मन में एक और वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने की योजना चल रही थी। हमारी कोशिश थी कि 15 मिनट में ही इसे ढाल लिया जाए, ताकि यह भी वर्ल्ड रिकॉर्ड बन सके, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसे ढालने में 59 मिनट का समय लगा।

 

देवेन्द्र आर्य ने बताया कि- पिछले तीन-चार दिनों से भट्टियां जलाकर तापमान 400 डिग्री तक ले जाया जा रहा था। कास्टिंग की प्रक्रिया 16 अगस्त को करनी थी, लेकिन चंबल नदी पास में होने से नमी के चलते तापमान सेट नहीं हो सका। 17 अगस्त को फिर कोशिश की गई।

ढलाई के दौरान फैक्ट्री में भी तापमान बहुत ज्यादा था, पहले तो सबने इससे हो सकने वाले नुकसान से बचने के लिए स्पेशल ड्रेस पहनी थी। इस दौरान हर कर्मचारी के लिए खतरा था, लेकिन इस बात का जोश था कि चंबल नदी के किनारे हम एक रिकॉर्ड बनाने जा रहा थे।

 

इंजीनियर देवेंद्र आर्य ने बताया कि घंटी बनाने के लिए 200 से ज्यादा एक्सपर्ट टीम करीब पांच से छह दिन जुटी रही। वहीं साल भर में 1000 कर्मचारियों ने 10 अलग-अलग प्रोजेक्ट पर काम किया। घंटी को ढालने के लिए 200 कर्मचारी चालीस घंटे से नॉन स्टॉप काम कर रहे थे।

इसकी कास्टिंग की लाइव प्रेजेंटेशन अमेरिका के इंजीनियरिंग कॉलेजों में की गई थी। कास्टिंग में अब तक 65 हजार लीटर डीजल का उपयोग किया जा चुका है।

 

वहीं, 600 एलपीजी सिलेंडर खत्म हो गए। उन्होंने बताया कि 35 भट्टियों में 2200 किलो धातुओं को एक साथ ढाला गया। इसमें ढली धातुओं को चार विशेष पात्रों से सांचे तक पहुंचाया गया। कास्टिंग के दिन यहां काम कर रहे कर्मचारियों को दस किलो ग्लूकोज और गुड़ का पानी दिया गया ताकि हीट का असर उन पर कम से कम हो सके।

देवेंद्र ने बताया कि इस प्रोजेक्ट पर अब तक 19 करोड़ रूपए से ज्यादा का खर्चा आ चुका है। कास्टिंग के बाद अब इसे प्राकृतिक तरीके से ठंडा किया जाएगा, जिसमें कुछ दिन का समय लगेगा।

 

इसके बाद इसे टांगने का काम किया जाएगा। यह घंटी सुनहरी नजर आएगी और यह समय के साथ चमकीली होती जाएगी।

आर्य ने दावा किया है कि यह इतनी मजबूत होगी कि 5000 साल तक सुरक्षित रहेगी। इसकी सिंगल पीस कास्टिंग होगी। यानी टुकड़ों में नहीं लगाया जाएगा, यह भी अपने आप में रिकॉर्ड है।

 

घंटी को बनाने में 13 तरह के मेटल का उपयोग किया गया है, जिसमें मुख्य रूप से कॉपर, एल्यूमीनियम और निकेल है। बाकि 9 तरह के गुप्त मेटल की जानकारी गोपनीय रखी गई है। आर्य ने बताया इस घंटी निर्माण में 5 वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गए हैं।

 

जॉइंटलेस चैन (इन एज कास्ट कंडीशन)

विश्व का सबसे बड़ा 3-डी फाइबर प्रोडक्ट

विश्व का सबसे ऊंचा जर्मन हैंगर (फैब्रिक कोटेड)

35 ऑयल फायर्ड वर्किंग फर्नेस अंडर वन रूफ

विश्व का सबसे बड़ा ग्रीन सिलिका सेंड मोल्ड (बाय ड्राई प्रोसेस ऑफ 2200 मीट्रिक टन)

विश्व की दो बड़ी घंटियों में एक चीन और दूसरी रूस में है। यह दोनों अलग-अलग टुकड़ों में बनाकर बाद में जोड़ी गई। चीन में घंटी को टांगते हुए एक टुकड़ा टूट गया था।

रूस की घंटी तो अभी तक कहीं लटकाई ही नहीं गई है। ऐसे में कोटा में बनी घंटी सबसे बड़ी सिंगल पीस है। इसका व्यास 8.5 मीटर होगा। इसकी लंबाई 9.25 मीटर होगी। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल पीस कास्टिंग है।

 

मास्को की घंटी टूटने की मुख्य वजह इसकी अंदरूनी सतह का प्लेन होना था। इसलिए पेंडुलम के टकराने की प्लेसमेंट को समझते हुए घंटी को खास स्ट्रेंथ दी गई है। कोटा में बनाई गई घंटी में अंदर की सतह को प्लेन ना रखते हुए यहां ज्वेलरी डिजाइन दी गई है। इस ज्वेलरी डिजाइन का वजन तकरीबन 25,000 किलो है। पहले घंटी का वजन 57 हजार किलो प्लान किया गया था, लेकिन बाद में मजबूती के लिए इसमें ज्वेलरी जैसी डिजाइन बनाई गई है, जिससे इसका वजन 79 हजार किलो है।

 

देवेंद्र कुमार आर्य ने बताया कि चाइना की घंटी का वजन करीब 1 लाख 1 हजार किलो है, जो इस घंटी से बहुत छोटी है। जबकि मास्को की घंटी का वजन 2 लाख किलो है, लेकिन कोटा के चंबल रिवर फ्रंट पर लगने वाली इस घंटी का वजन कम रखते हुए मजबूत बनाने का प्रयास किया गया है।

आर्य ने बताया कि इस घंटी के साथ लगने वाली चेन भी अब तक की सबसे बड़ी बिना जोड़ वाली चेन है। यह साढ़े छह मीटर लंबी और 425 किलो वजनी है।

 

इसे ऐसे तैयार किया गया है कि कोई भी आसानी से इसे मूव कर सकता है और घंटी बजा सकता है। वहीं इसे टांगने वाले हुक का वजन 21 टन है। इस घंटी की आवाज आठ किलोमीटर तक सुनाई देगी और इससे ओम की ध्वनि निकलेगी।

 

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