विदेश: 8 अगस्त को भारतीय सेना के 3 पूर्व सैन्य अधिकारियों ने ताइवान का दौरा किया था। इस पर चीन ने गुरुवार को कड़ी आपत्ति जाहिर की है। दरअसल, एक पाकिस्तानी पत्रकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन से इस मामले पर सवाल पूछा। इसके जवाब में वेनबिन ने कहा कि हम ताइवान के साथ किसी भी ऑफिशियल बातचीत का विरोध करते हैं।
वेनबिन ने कहा- ताइवान को लेकर हमेशा से हमारी यही पॉजिशन रही है। हमें उम्मीद है कि भारत भी एक-चीन वाले सिद्धांत को मानेगा और ताइवान से किसी भी तरह का मिलिट्री और सिक्योरिटी सहयोग बढ़ाने से दूर रहेगा। द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व एडमिरल करमबिर सिंह, जनरल एमएम नरवणे और पूर्व चीफ ऑफ एयर स्टाफ RKS भदौरिया ने ताइवान का दौरा किया था। ये ताइवान में हुए इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी डायलॉग में शामिल हुए थे।
सीनियर जर्नलिस्ट पलकी शर्मा के मुताबिक दिसम्बर 1949 में भारत चीन को मान्यता देने वाले पहले एशियाई देशों में से एक रहा। इसके बाद 45 सालों तक भारत और ताइवान के बीच कोई औपचारिक सम्पर्क नहीं रहा। दोनों देशों के बीच गतिरोध की स्थिति बनी रही। ताईवान का रवैया भी भारत को लेकर बहुत पॉजिटिव नहीं था।
ताइवान अपनी वन-चाइना नीति पर अड़ा रहा, जिसमें ताइपे सत्ता का केंद्र था। तिब्बत और मैकमोहन लाइन पर उसकी पोजिशन ठीक वही थी, जो चीन की थी। उसके अमेरिका से गहरे सम्बंध थे, लेकिन भारत जैसे देशों में उसकी अधिक रुचि नहीं थी।
लेकिन, 1990 के दशक में भारत की विदेश नीति बदली। उसने लुक-ईस्ट नीति अपनाई, जिसके चलते ताइवान से रिश्ते बढ़ाने की कोशिश की और ताइवान ने भी अच्छी प्रतिक्रिया दी। 1995 में अनधिकृत दूतावासों की स्थापना की गई। 21वीं सदी की शुरुआत तक भारत के चीन से सम्बंध अपने सबसे अच्छे दौर में प्रवेश कर चुके थे।
प्रधानमंत्री वाजपेयी चीन की सफल यात्रा करके लौटे थे। भारत की प्राथमिकताएं एक बार फिर ताइवान से दूर खिसक गईं। 2008 के बाद कुछ छिटपुट कोशिशें की गईं, जब ताइवानी मंत्रियों ने भारत की यात्रा की थी, लेकिन यह भारत को जानने-समझने तक ही सीमित थी। बड़ा बूस्ट 2014 में तब आया, जब प्रधानमंत्री मोदी ने ताइवानी प्रतिनिधियों को अपने शपथ-ग्रहण समारोह में बुलाया।
ताइवान को लेकर मोदी के मन में एक राजनीतिक धारणा थी और अतीत में भी वे ताईवान से रिश्ते कायम कर चुके थे। 1999 में मोदी ने भाजपा महासचिव के रूप में ताइवान की यात्रा की थी। 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने भारत में ताइवान के सबसे बड़े प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी की थी। प्रधानमंत्री के रूप में भी उन्होंने ताइवान से सम्बंध बनाए रखे। हालांकि, भारत ने ताइवान को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं दी है।
चीन ताइवान को अपना ही हिस्सा मानता है। जबकि ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है। चीन इसलिए ताइवान पर कब्जा करना चाहता है। ऐसा करके चीन पश्चिमी प्रशांत महासागर इलाके में अपना दबदबा दिखाने के लिए आजाद हो जाएगा। इससे गुआम और हवाई जैसे अमेरिकी मिलिट्री बेस के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।