अमेरिका में पहली बार यूक्रेन को डिप्लीटेड यूरेनियम से लैस गोला-बारूद (जिसमें यूरेनियम की मात्रा कम हो) भेजने वाला है। रॉयटर्स के मुताबिक, ये हथियार रूसी टैंकों को तबाह करने में सक्षम होंगे। इन हथियारों की सप्लाई की घोषणा अगले हफ्ते हो सकती है। इन गोला-बारूद को अमेरिका के अब्राम टैंकरों से फायर किया जा सकेगा।
ये हथियार अमेरिका के यूक्रेन के लिए नए पैकेज का हिस्सा होंगे। ये ए़ड पैकेज करीब 3 हजार करोड़ रुपए का हो सकता है। यूरेनियम एक रेडियोएक्टिव मैटीरियल है, जिसके एक आइसोटोप का इस्तेमाल परमाणु बम में भी किया जाता है। इससे पहले ब्रिटेन ने भी मार्च में यूक्रेन को ऐसे ही हथियार भेजे थे। इसी के बाद नाराज रूस ने बेलारूस में अपने परमाणु हथियार तैनात करने का फैसला लिया था।
ये पहला मौका नहीं है, जब अमेरिका यूक्रेन को कोई विवादित हथियार भेज रहा है। इससे पहले अमेरिका ने क्लस्टर हथियारों की सप्लाई की थी, जिसका यूक्रेन जंग में इस्तेमाल कर रहा है। कम यूरेनियम वाले इस तरह के हथियारों को लेकर कई बार बहस हो चुकी है। इंटरनेशनल कोलिशन ने यूरेनियम वाले हथियारों को बैन करने की भी मांग की थी, क्योंकि इनसे कैंसर और दूसरी गंभीर बीमारियों का खतरा होता है।
इससे पहले जब ब्रिटेन ने ऐसे हथियार यूक्रेन भेजे थे, तब रूस ने इसका काफी विरोध किया था। पुतिन ने कहा था- ब्रिटेन जो बारूद-गोले भेज रहा है उसमें यूरेनियम मौजूद है। इससे पहले उन्होंने मार्च में यूक्रेन को चैलेंजर-2 बैटल टैंक देने की घोषणा की थी। पश्चिम और यूरोपीय देश लगातार गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहे हैं।
इसके साथ ही पुतिन ने घोषणा कर दी थी कि वो अपने टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन को बेलारूस में तैनात करेगा। साथ ही बेलारूस में इस्कंदर मिसाइल सिस्टम भी भेजा गया था, जिसमें परमाणु वॉरहेड लगाए जा सकते हैं।
यूरेनियम एनरिचमेंट के समय डिप्लीटेड यूरेनियम एक बाय-प्रोडक्ट के तौर पर निकलता है। ये भी यूरेनियम का ही लो लेवल आइसोटोप होता है। इसमें यूरेनियम की मात्रा कम होती है। इसका इस्तेमाल गोलों में किया जाता है, क्योंकि इसकी डेन्सिटी ज्यादा होने की वजह से गोला-बारूद आसानी से दुश्मन के कवच को भेद पाते हैं।
साथ ही ये ज्यादा टेम्परेचर या प्रेशर में खुद ही प्रज्जवलित हो जाते हैं। डिप्लीटेड यूरेनियम रेडियोएक्टिव होता है, लेकिन इसका प्रकृति पर असर कम होता है। हालांकि, इसके कण लंबे समय तक मिट्टी और हवा में मौजूद रह सकते हैं।
अमेरिका ने 1991 और 2003 के खाड़ी युद्ध के दौरान बड़ी मात्रा में कम यूरेनियम वाले गोला-बारूद का इस्तेमाल किया था। इसके अलावा 1999 में यूगोस्लाविया में नाटो के हमलों में भी ऐसे हथियारों का इस्तेमाल हुआ था।
UN की इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी ने यूगोस्लाविया, कुवैत, इराक और लेबनान जैसे देशों में पर्यावरण में यूरेनियम के अंश मिले थे। हालांकि, इससे किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
यूरेनियम वेपन को बैन करने के लिए बने इंटरनेशनल कोलिशन के मुताबिक, इन हथियारों को न्यूक्लियर वेपन की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस और पाकिस्तान जैसे देशों इन हथियारों को बनाते हैं। वहीं करीब 15 देशों के पास ये हथियार मौजूद हैं।