लखनऊ: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने बिग्रेडियर नवीन सिंह, कर्नल दुष्यंत सिंह और लेफ्टिनेंट कर्नल आरपी राम के अलावा मोबाइल टॉवर लगाने वाली कंपनी मेसर्स इंडस टॉवर्स लिमिटेड के लखनऊ स्थित ठिकानों पर रविवार को छापा मारा। सीबीआई छापों में बरामद दस्तावेजों का परीक्षण कर रही है। तीनों सैन्य अफसरों पर कानपुर कैंट में तैनाती के दौरान कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचा कर भ्रष्टाचार करने का आरोप है। सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने बिग्रेडियर नवीन सिंह, कर्नल दुष्यंत सिंह, लेफ्टिनेंट कर्नल आरपी राम और मेसर्स इंडस टॉवर्स लिमिटेड लखनऊ के विरुद्ध एक सितंबर को आईपीसी की धारा 420, 120 बी तथा भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 13(2), 13 (1) (डी) तथा भ्रष्टाचार निरोधक कानून (2018 में संशोधित) की धारा 7 (ए) के तहत एफआईआर दर्ज किया।
इसकी विवेचना इंस्पेक्टर आशीष कुमार सिंह को सौंपी गई है। यह प्रकरण तीनों अफसरों की कानपुर कैंट में तैनाती के दौरान का है। पहले अभियुक्त बिग्रेडियर नवीन सिंह स्टेशन कमांडर के तौर पर कानपुर कैंट बोर्ड के पदेन अध्यक्ष थे, जबकि दूसरे अभियुक्त लेफ्टिनेंट कर्नल आरपी राम उनके स्टाफ आफिसर थे। तीसरे अभियुक्त कर्नल दुष्यंत सिंह कानपुर नगर के स्टेशन हेड क्वार्टर में तैनात थे। आरोपी कंपनी का मुख्यालय लखनऊ में विभूति खंड गोमती नगर स्थित बीबीडी विराज टॉवर में छठें तल पर है।
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि ब्रिगेडियर नवीन सिंह ने कैंट बोर्ड के पदेन अध्यक्ष रहते हुए निर्धारित दिशा-निर्देशों का घोर उल्लंघन करते हुए कानपुर के ए-1 श्रेणी की छावनी क्षेत्र की भूमि में सात सचल मोबाइल टावर्स (सीओडब्ल्यू) की स्थापना की सुविधा प्रदान की । नियमानुसार सेना की भूमि के पट्टे के लिए प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से टेंडर आमंत्रित किया जाना आवश्यक था। साथ ही टेंडर के माध्यम से प्राप्त उच्चतम बोली को ही स्टेशन कमांडर द्वारा स्वीकार किया जाना था।
आरोप है कि ब्रिगेडियर नवीन सिंह ने स्थान तय करने के लिए किसी बोर्ड का गठन नहीं किया था, ताकि मोबाइल कंपनी को सुविधा मिल सके। इससे सरकारी खजाने से हेराफेरी किए जाने का संदेह पैदा होता है। इस आरोपों को सत्यापित करने के लिए 30 अगस्त 2019 को सीबीआई एसीबी लखनऊ द्वारा मध्य कमांड लखनऊ के अधिकारियों के साथ कानपुर कैंट बोर्ड क्षेत्र में एक संयुक्त औचक निरीक्षण भी किया गया था। इस जांच के दौरान संदेह और गहरा हो गया। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि एयरटेल और रिलायंस जियो इन्फोकॉम द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया गया और झूठी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को भेज दी गई।