दुनिया का सबसे महंगा सिक्का, कीमत 192 करोड़ रुपए; ईस्ट इंडिया कंपनी ने इससे क्वीन एलिजाबेथ-II को श्रद्धांजलि दी

 

विदेश। ईस्ट इंडिया कंपनी ने क्वीन एलिजाबेथ-II की पहली डेथ एनिवर्सरी (पुण्यतिथि) पर एक सिक्का जारी किया है। इसकी कीमत 192 करोड़ रुपए है। इसे 4 किलोग्राम सोने से बनाया गया है। इसमें 6 हजार 400 हीरे भी जड़े हुए हैं। इसे ‘द क्राउन कॉइन’ नाम दिया गया है।

इसे अब तक का सबसे महंगा सिक्का कहा जा रहा है। इसके पहले ‘डबल ईगल’ नाम के सिक्के को दुनिया का सबसे महंगा सिक्का माना जाता था। इस ‘डबल ईगल’ की कीमत 163 करोड़ रुपए थी। इसे ऑगस्टस सेंट गॉडंस ने 1933 में डिजाइन किया था।

 

 

8 सितंबर 2022 को क्वीन एलिजाबेथ का निधन हुआ था। एक साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए ‘द क्राउन कॉइन’ जारी किया। इस सिक्के के किनारों पर महारानी एलिजाबेथ-II के कोट्स लिखे हैं। पहला कोट है-उम्र के साथ अनुभव आता है और अगर इसका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह एक गुण हो सकता है (With age comes experience and that can be a virtue if properly used)।
दूसरा कोट है- अपने पुराने मतभेदों को पीछे छोड़कर हम एक साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार हो सकते हैं

 

 

स्काई न्यूज के मुताबिक, इस सिक्के का साइज बास्केट बॉल के बराबर है। इसका डायमीटर (व्यास) 9.6 इंच है। इसमें दिवंगत सम्राट की तस्वीरें भी लगी हैं। इन तस्वीरों को प्रसिद्ध चित्र कलाकारों मैरी गिलिक, अर्नोल्ड माचिन, राफेल मैकलॉफ और इयान रैंक-ब्रॉडली ने बनाया है।

वहीं, इस सिक्के को बनाने में भारत, जर्मनी, UK, श्रीलंका और सिंगापुर के कारीगरों को लगाया गया था। इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय मूल के CEO संजीव मेहता ने जारी किया है।

 

 

24 अगस्त 1608 को ईस्ट इंडिया कपंनी का पहला जहाज सूरत के तट पर आया था। इसे ही ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन माना जाता है। उस समय कोई नहीं जानता था कि व्यापार के लिए आई ये कंपनी करीब 200 सालों तक भारत पर राज करेगी। इस घटना ने भारत के भूगोल, इतिहास दोनों को बदलकर रख दिया।

16वीं शताब्दी में अंग्रेजी साम्राज्य का सूरज डूबने ही वाला था। पुर्तगाल और डच लगातार अपने व्यापारिक साम्राज्य को फैला रहे थे। ब्रिटिशर्स केवल यूरोप तक ही सीमित थे और वहां भी उनको व्यापार में कोई खास फायदा नहीं हो रहा था। उन्हें एक बड़े बाजार की जरूरत थी।

 

 

व्यापारियों ने इंग्लैंड की महारानी से भारत में व्यापार करने की अनुमति मांगी। साल 1600 में एक कंपनी बनाई गई। कंपनी को मुख्यत: साउथ और साउथ ईस्ट एशिया में व्यापार करने के उद्देश्य से बनाया गया था, इसलिए कंपनी का नाम ईस्ट इंडिया पड़ा। 125 शेयरहोल्डर्स और 72 हजार स्टर्लिंग पाउंड की कैपिटल से कंपनी बनकर तैयार हो गई। कंपनी को रॉयल चार्टर प्राप्त था, यानी उसे ब्रिटेन के शाही परिवार का संरक्षण प्राप्त था।

 

 

ब्रिटिशर्स ने संसद के सदस्य और राजदूत सर थॉमस रो को राजपरिवार के शाही दूत के रूप में भारत भेजा। सर थॉमस रो 1615 में भारत आए और राजा से मिले। वे मुगल राजा को रिझाने के लिए अपने साथ बेशकीमती तोहफे लेकर आए थे। अगले 3 साल में ही रो ने मुगल शासन से भारत में व्यापार के लिए शाही फरमान हासिल कर लिए थे।

 

 

 

कंपनी के लिए अब व्यापार के रास्ते पूरी तरह साफ थे। कंपनी ने तेजी से भारत में अपने पैर पसारना शुरू किए। हर बड़े बंदरगाह पर कंपनी ने अपनी फैक्ट्री स्थापित की। 1646 तक ही कंपनी देशभर में 23 फैक्ट्रियां स्थापित कर चुकी थी। मुगल साम्राज्य की कमजोरियों का फायदा उठाकर धीरे-धीरे कंपनी ने शासन-प्रशासन में भी अपना दखल बढ़ाना शुरू कर दिया और एक व्यापारिक कंपनी से अलग प्रशासनिक कंपनी भी बन गई।

 

 

 

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