विदेश। सऊदी अरब के अधिकारियों ने गुरुवार को सार्वजनिक तौर पर बताया कि वो यमन में ईरान समर्थक हूती विद्रोहियों के साथ बातचीत कर रहे है। इससे सालों से चल रहे यमन के गृह युद्ध का समाधान ढूंढा जा रहा है। 9 साल से चल रही जंग रुकवाने के मकसद से हूती लीडर्स ने सऊदी में बैठक की है। हर मंच पर एक-दूसरे के खिलाफ दिखने वाले सऊदी के अधिकारियों और हूती विद्रोहियों की ये पहली बैठक है।
यमन में जंग और उसके परिणामों की वजह से यमन में 3 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। कई लाख लोग बेघर भी हुए हैं। सऊदी की सेना के यमन में पहुंचने से पहले ही वहां की इकोनॉमी हूती और यमनी लोगों के संघर्ष की वजह से खराब हो चुकी थी। सऊदी के दखल के बाद यहां हालात और खराब हो गए थे।
सऊदी के अल अखबरिया चैनल के मुताबिक, सना में अप्रैल महीने में सऊदी की एक टीम ने दौरा किया था। इसका मकसद यमन में बने राजनीतिक हालातों का समाधान ढूंढ़ना था। इस टीम के दौरे क बाद सऊदी की राजधानी रियाद में भी हूती विद्रोहियों और सऊदी के अधिकारियों की मीटिंग हुई। मीटिंग में यमन में चल रहे युद्ध को खत्म करने और जंग की वजह से बने हालातों से उबरने पर बातचीत की गई। साल के शुरुआत में ही सऊदी ने यमन के डेलिगेशन को राज्य के दौरे पर आने को कहा था।
हूती विद्रोहियों के प्रमुख, महदी अल-मशात ने इस मीटिंग पर टिप्पणी करते हुए कहा- “ हमारा डेलिगेशन मीटिंग के लिए रियाद जाएगा। शांति हमारा पहला विकल्प था और अब भी है। इसे हासिल करने के लिए सभी को काम करना चाहिए।
हाल ही में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान G20 समिट के लिए भारत आए थे। यहां से लौटते समय वो ओमान के सुल्तान हैथम बिन तारिक से मिले। इस मुलाकात के बाद हूती लीडर्स ओमान के प्लेन द्वारा सऊदी पहुंचे। ओमान लंबे समय से यमन में संघर्ष को खत्म कराने की कोशिश कर रहा है।
साल 2014 में यमन में गृह युद्ध की शुरुआत हुई। इसकी जड़ शिया और सुन्नी विवाद में है। दरअसल यमन की कुल आबादी में 35% की हिस्सेदारी शिया समुदाय की है जबकि 65% सुन्नी समुदाय के लोग रहते हैं। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद रहा था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत हुई तो गृह युद्ध में बदल गया। 2014 आते-आते शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। देश बदलाव के दौर से गुजर रहा था और हादी स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का। देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।
यमन में 9 सालों से चल रही जंग को जारी रखने में सऊदी अरब और ईरान दो महत्वपूर्ण ताकतें हैं। यमन की सरकार को जहां सऊदी का समर्थन है वहीं हूती विद्रोहियों को ईरान का। ऐसे में अगर ईरान और सऊदी के बीच बातचीत होती है और उनके रिश्ते सुधरते हैं तो यकीनन इसका असर यमन की जंग पर पड़ना तय माना जा रहा था।
11 मार्च को चीन की राजधानी बीजिंग में ईरान और सऊदी अरब के बीच अहम समझौता हुआ। जो चीन ने करवाया। 2016 के बाद दोनों ने एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी एम्बेसी फिर खोलने के लिए राजी हो गए थे। इससे दोनों देशों के बीच सात साल से जारी टकराव कम हुआ। दरअसल, सात साल पहले सऊदी अरब ने ईरान के लिए जासूसी के आरोप में 32 शिया मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया था। इसमें 30 सऊदी अरब के ही नागरिक थे। ईरान ने बदला लेने की धमकी दी थी। ये सभी जेल में हैं।
इसके बाद, सऊदी अरब ने ड्रग स्मगलिंग के आरोप में ईरान के तीन नागरिकों को सजा-ए-मौत दे दी। दोनों देश जंग की कगार पर पहुंच गए। इस दौरान अमेरिका सऊदी की मदद के लिए आया।
इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो साल में यमन के गृह युद्द को बंद करवाने का वादा किया था। जिसे चीन ने पूरा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियार सप्लाई करने की पॉलिसी पर चलने के कारण अमेरिका की मिडल ईस्ट में ऐसी छवि नहीं रह गई थी कि उसे शांति स्थापित करवाने के लायक समझा जा सके। जिसका चीन ने फायदा उठाया है। सऊदी और ईरान के बीच समझौता करवा कर चीन ने यमन में जंग खत्म करने के लिए रास्ता खोल दिया।