भारत-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर को काउंटर करने की तैयारी में तुर्किये; इराक, कतर और UAE के साथ बनाएगा दूसरा ट्रेड रूट
भारत-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर में शामिल नहीं किए जाने से नाराज तुर्किये इस अंतरराष्ट्रीय ट्रेड रूट का विकल्प खोज रहा है। कॉरिडोर को काउंटर करने के लिए तुर्किये एक नए ट्रेड रूट की घोषणा कर सकता है। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इसे लेकर तुर्किये ने इराक, कतर और UAE से बात की है।
तुर्किये के कॉरिडोर को इराक डेवलेपमेंट रोड इनिशिएटिव नाम दिया जाएगा। इस कॉरिडोर के जरिए इराक के ग्रैंड फॉ पोर्ट से तुर्किये में आसानी से सामान लाया और ले जाया जा सकेगा। इस पर 14 लाख करोड़ रुपए खर्च होने की संभावना है। ये 1200 किलोमीटर लंबा ट्रेड रूट होगा। इसके पहले फेज को 2028 तक पूरा करने का टारगेट रखा गया है।
एक तरफ जहां तुर्किये इस प्रोजेक्ट को तैयार करने की प्लानिंग कर रहा है, वहीं एक्सपर्ट इसे लेकर चेतावनी दे रहे हैं। यूरेशिया ग्रुप थिंक-टैंक के निदेशक एमरे पेकर कहते हैं कि तुर्किये के पास परियोजना को साकार करने के लिए पैसे की कमी है।
ऐसा लगता है कि वो बुनियादी ढांचे के के लिए UAE और कतर के सहारे है। खाड़ी देशों से पैसे लेने के लिए तुर्किये को उन्हें भरोसा दिलाना होगा कि इस रूट में निवेश करने से उन्हें अच्छा रिटर्न मिलेगा।
पेकर के मुताबिक सुरक्षा और स्थिरता से जुड़े मुद्दे भी हैं, जो तुर्किये की परियोजना को खतरे में डालते सकते हैं। इराक बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, खस्ताहाल बुनियादी ढांचे, कमजोर सरकार और नियमित राजनीतिक अस्थिरता से परेशान है। यह भी साफ नहीं है इराक इस परियोजना को कैसे पैसा लगाएगा।
इराक मध्य पूर्व का वो हिस्सा है जो हिंसा और अस्थिरता से घिरा रहता है। जिस बसरा में इस प्रोजेक्ट का सपना देखा जा रहा है वह कभी ISIS का गढ़ था। यहां के युवाओं पर अभी तक ISIS का प्रभाव देखा जा सकता है। ऐसे में एर्दोगन जिस प्रोजेक्ट के बारे में सोच रहे हैं, उसका भविष्य भी खतरनाक हो सकता है।
भारत-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर पर तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने आपत्ति जाहिर करते हुए कहा था कि उनके बिना कोई कॉरिडोर नहीं बन सकता है। उन्होंने कहा था कि पूर्व से पश्चिम की ओर जाने वाले किसी भी ट्रैफिक को तुर्किये से होकर गुजरना ही होगा।
दरअसल, G20 समिट में जिस प्रोजेक्ट की घोषणा हुई वो भारत, UAE, सऊदी अरब, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय यूनियन सहित कुल 8 देशों से होते हुए गुजरेगा। इस प्रोजेक्ट का फायदा इजराइल और जॉर्डन को भी मिलेगा। हालांकि, तुर्किये और मिस्र को इस प्रोजेक्ट में शामिल नहीं किया गया है।
मुंबई से शुरू होने वाला यह नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विकल्प होगा। यह कॉरिडोर 6 हजार किमी लंबा होगा। इसमें 3500 किमी समुद्र मार्ग शामिल है।
कॉरिडोर के बनने के बाद भारत से यूरोप तक सामान पहुंचाने में करीब 40% समय की बचत होगी। अभी भारत से किसी भी कार्गो को शिपिंग से जर्मनी पहुंचने में 36 दिन लगते हैं, इस रूट से 14 दिन की बचत होगी। यूरोप तक सीधी पहुंच से भारत के लिए आयात-निर्यात आसान और सस्ता होगा।
सबसे पहले भारत और अमेरिका इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, लेकिन पहली बार दोनों मिडिल ईस्ट में साझेदार बने हैं।
भारत की मध्य एशिया से जमीनी कनेक्टिविटी की सबसे बड़ी बाधा पाकिस्तान का तोड़ मिल गया है। वह 1991 से इस प्रयास को रोकने की कोशिश कर रहा था।
भारत के ईरान के साथ संबंध सुधरे हैं, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण ईरान से यूरेशिया तक के रूस-ईरान कॉरिडोर की योजना प्रभावित होती जा रही है।
अरब देशों के साथ की भागीदारी बढ़ी है, UAE और सऊदी सरकार भी भारत के साथ स्थायी कनेक्टिविटी बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
अमेरिका को उम्मीद है कि इस मेगा कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट से अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक स्थिरता आएगी और संबंध सामान्य हो सकेंगे।
यूरोपीय यूनियन ने 2021-27 के दौरान बुनियादी ढांचे के खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो निर्धारित किए थे। भारत भी इसका भागीदार बना।
नया कॉरिडोर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प है। कई देशों के चीन के कर्ज जाल से मुक्ति मिलेगी। जी-20 में अफ्रीकी यूनियन के भागीदार बनने से चीन और रूस के अफ्रीकी देशों में बढ़ती दादागीरी को रोकने में सहायता मिलेगी।