सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी में कहा- पुलिस में भर्ती के लिए उच्च और कड़े मानक लागू होने चाहिए

 

 

दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुलिस बल में भर्ती के उम्मीदवारों के लिए अन्य संगठन की तुलना में उच्च और कड़े मानक लागू किए जाने चाहिए। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि आपराधिक मामले में किसी आवेदक को बरी करने से उम्मीदवार स्वत: भर्ती का हकदार नहीं हो जाता।

 

 

पीठ ने कहा, कानून प्रवर्तन एजेंसी में नियुक्ति से जुड़े मामलों में लागू किए जाने वाले मानदंड नियमित रिक्ति पर लागू होने वाले मानदंडों की तुलना में कहीं अधिक कठोर होने चाहिए। इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए कि एक बार ऐसे पद पर नियुक्त होने के बाद उस पर समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने, कानून लागू करने, हथियारों और गोला-बारूद से निपटने, संदिग्ध अपराधियों को पकड़ने और बड़े पैमाने पर जनता के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने की जिम्मेदारी डाली जाएगी।

 

 

 

इसलिए कानून प्रवर्तन एजेंसी में नियुक्ति चाहने वाले किसी भी व्यक्ति पर लागू होने वाले सत्यता के मानक हमेशा उच्च और अधिक कठोर होने चाहिए। क्योंकि उस पद पर नियुक्ति के लिए उच्च नैतिक आचरण का होना बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है। इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को रद्द कर दिया और भूपेन्द्र यादव (प्रतिवादी) द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज करने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखा।

 

 

 

पीठ ने कहा, किसी उम्मीदवार की उपयुक्तता का आकलन करने का मानक नियोक्ता की ओर से पद की प्रकृति, कर्तव्यों की प्रकृति सहित विभिन्न कारकों के आधार पर मापा जाता है। हालांकि कोई तय नियम नहीं बनाया जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा है कि नियोक्ता के पास उम्मीदवार की ओर से किए गए खुलासे से सामने आई किसी चूक पर निलंबित करने या माफ करने का विवेकाधिकार है। ऐसा करते समय नियोक्ता को विवेक से काम लेना चाहिए। पद जितना ऊंचा होगा, लागू होने वाले मानक उतने ही कड़े होने चाहिए।

 

 

 

पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट है कि आरोपपत्र दायर होने के बाद भूपिंदर यादव ने शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लिया था। प्रतिवादी को ट्रायल कोर्ट ने इस तथ्य के कारण बरी कर दिया था कि शिकायतकर्ता ने मामले का समर्थन नहीं किया था और गवाह मुकर गए थे। पीठ ने कहा, ऐसी परिस्थितियों में प्रतिवादी की यह दलील कि उसे आपराधिक मामले में निर्दोष ठहराया गया है, इसमें कोई मेरिट नहीं है।

 

 

पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने प्रतिवादी के संबंधित सभी प्रासंगिक कारकों पर ध्यान देने के बाद विवेकपूर्ण ढंग से अपने विवेक का प्रयोग किया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि प्रतिवादी के संबंध में राज्य सरकार की ओर से लिए गए निर्णय में किसी दुर्भावना या मनमानी का आरोप नहीं है कि हाईकोर्ट को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए था। राज्य सरकार हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दी थी। खंडपीठ ने आवेदक को भर्ती के लिए अयोग्य घोषित करने के एकलपीठ के फैसले को दरकिनार कर दिया था।

 

 

मध्य प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के तौर पर भर्ती किए गए आवेदक भूपेन्द्र को अयोग्य पाया गया, जबकि उसे नाबालिग लड़की की गरिमा को ठेस पहुंचाने से संबंधित आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों और पॉक्सो से संबंधित मामले में बरी कर दिया गया था। आपराधिक मामले में पीड़िता और अभियोजन पक्ष के अन्य गवाह मुकर गए और दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी को बरी कर दिया गया था।

 

 

 

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