राम की वनवास लीला देखकर दर्शकों के आंखों में झलकें आसूं

फतेहपुर। ऐतिहासिक हसवा कस्बे में श्री स्वामी चंद दास महाराज परिसर में तीन दशक वर्षों से रामलीला का आयोजन किया जा रहा है। चैथे दिन भगवान राम वनवास लीला का मंचन सुप्रसिद्ध कलाकारों द्वारा बड़े ही सुंदर ढंग से दिखाया गया। सैकड़ो लोगो के आंखों में आसूं वनवास जाने पर झलक पडे। भगवान श्रीराम की आरती के बाद लीला की शुरुआत किया गया। सीता स्वयंवर के बाद वापस अयोध्या पहुंचे जहाँ गुरु विश्वामित्र, राजा दशरथ, भगवान राम ,सीता , भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न तथा पूरी भारत का भव्य स्वागत अयोध्या नगरी में किया गया। इधर महाराज दशरथ को यह आभास होता है कि उनका चैथापन आ गया है। और वह अब कुछ ही राजा दिनों का कार्य देख सकते हैं। इसके बाद उन्हें अपने स्थान पर किसी अन्य को अयोध्या का राजा बनना पड़ेगा तभी महाराज दशरथ विचार करते हैं। और कहते हैं कि इस गाड़ी पर राम के अलावा और कोई बैठने के योग्य नहीं है। और वह मंत्री को बुलाकर आदेश देते हैं कि पूरे नगर में घोषणा कर दी जाए की जल्द ही राम को अयोध्या का राजा बनाया जाएगा घोषणा होते ही पूरे अयोध्या नगरी में खुशी की लहर दौड़ जाती है और चारों ओर उत्सव ही उत्सव मनाया जाता है। सभी लोग राम के राज्याभिषेक की तैयारी शुरू कर देते हैं । चारों ओर मंगल गीत गाए जाते हैं। इधर राम की राज्याभिषेक की बात जब कैकेई की सबसे प्रिय दासी मंथरा को पता चलती है। तो वह व्याकुल हो जाती है। और वह महारानी कैकी से कहती है यही सही समय है राजा दशरथ से अपने दोनों वचन मांग लो और पहले वचन में राम की जगह भरत का राज्याभिषेक तथा दूसरे वचन में राम को 14 वर्षों का वनवास पहले तो रानी केकई थोड़ा संकोच करती हैं । फिर वह बात मान लेती है और जाकर कोभवन में लेट जाती हैं। यह बात जब महाराज को पता चलती है। तो वह मिलने जाते हैं। और राम की सौगंध खाने के बाद कैकई उनसे दोनों वचन मांगती है। वचन सुनते ही महाराज दशरथ मूर्छित होकर गिर जाते हैं और अंत में दोनों वचन दे देते हैं। पिता की आज्ञा पाकर राम वन के लिए तैयार हो जाते हैं। उनके साथ सीता और लक्ष्मण भी वन जाने के लिए तैयार होते हैं। यह बात जब अयोध्या वालों को पता चलती है । तो पूरी अयोध्या में शोक की लहर दौड़ जाती है । सभी व्याकुल हो जाते हैं सभी भगवान राम के साथ-साथ चल देते हैं। गंगा किनारे पहुंचने के बाद भगवान राम विश्राम करते हैं। इधर राजा दशरथ मंत्री सुमंत को राम को वापस लाने के लिए भेजते हैं। सुमंत राम के पास पहुंचते हैं और आग्रह करते हैं कि वन में अपने चरण रख दिए हैं। अब वापस राजमहल चलिए लेकिन राम कहते हैं कि पिता की आज्ञा है और वह 14 वर्षों के बाद ही राजमहल वापस आएंगे 14 वर्षों तक किसी भी नगर में अपने कदम नहीं रखेंगे। क्योंकि रघुकुल की रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाए। सुमंत अपनी सैनिकों के साथ वापस राजा दशरथ के पास राजमहल आते हैं और पूरी बात बताते हैं। यह सुनकर राजा दशरथ व्याकुल हो जाते हैं और बार-बार पुत्र राम राम कहकर मूर्छित हो जाते हैं। पूरी अयोध्या में शोक की लहर रहती है । यह दृश्यों को देख कर दर्शकों में आंखों में गमों के आसूं झलक पडते है। रामलीला मैदान में शहर सहित अन्य गावों से से सैकड़ों लोगों की भीड़ मैहजूद रही।कमेटी अध्यक्ष पुषपेंद सिंह, उदयभान सिंह,अशू सिंह, प्रिंशू सिंह, योगेन्द्र सिंह,पप्पू, राजू सिंह, रामकुमार सिंह, कच्छू सिंह, उदयभान सिंह सेगर, बब्लू सिंह,शिवकरन पासवान, करन सिंह, संजय गौड़, भानू सिंह, गुडडू पाडेय, सुमित सिंह, समेत सभी पदाधिकारी सभी सदस्य रामलीला मैदान में देखरेख में मैहजूद रहे। वही थाना थारियावं थाना प्रभारी प्रवीण कुमार सिंह एवं हसवा चैकी इंचार्ज विकास सिंह भारी पुलिस फोर्स के साथ रामलीला मैदान में मुस्तैद रहे।

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