राजद्रोह में पकड़े गए लोगों पर चलेगा देशद्रोह का केस:तीन नए कानून शीत सत्र में पारित होने की संभावना; विपक्षी सदस्य नाराज, असहमति पत्र देंगे
केंद्रीय गृह मंत्रालय की स्थायी समिति ने न्याय विधान नागरिक, सुरक्षा विधान और साक्ष्य अधिनियम बिल पर रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है। तीनों क्रांतिकारी कानून बनने के दिन से ही लागू होंगे।हालांकि, राजद्रोह के मामलों में समिति ने अलग सिफारिश की है। नए न्याय विधान में राजद्रोह कानून को खत्म करने की व्यवस्था की गई है। लेकिन जो लोग इसके तहत पहले गिरफ्तार किए जा चुके हैं और मुकदमों का सामना कर रहे हैं, उन पर देशद्रोह की धारा के तहत केस चलेगा। दोषी पाए जाने पर देशद्रोह के अपराधों के लिए तय दंड मिलेगा।
सूत्रों का कहना है कि समिति की सिफारिश के मुताबिक, राजद्रोह के पुराने मुकदमों को न्याय विधान की धारा 150 में ले जाया जाएगा, जो देशद्रोह के मामलों से निपटने के बारे में है। नए तीनों संशोधित विधेयकों को कैबिनेट बैठक में ले जाया जाएगा। इसके बाद इन्हें 4 दिसंबर से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र में पेश किया जा सकता है।
विपक्षी सदस्य असहमति पत्र देंगे
हालांकि रिपोर्ट को अंतिम रूप दिए जाने के बावजूद इस पर असहमति-पत्र देने के लिए अभी व्यवस्था है। विपक्ष का आरोप रहा है कि सरकार हड़बड़ी में यह कानून पास कराना चाहती है। यही वजह है कि अधिकांश विपक्षी सदस्यों ने असहमति के पत्र देने का फैसला किया। दक्षिण भारत की पार्टियों के सदस्यों ने विधेयकों का नाम हिंदी में रखने पर भी आपत्ति की है और इसे संविधान की भावना के प्रतिकूल बताया है। समिति ने इन आपत्तियों को खारिज कर दिया है।
कानून अतीत से नहीं, बल्कि भविष्य से लागू होंगे। सिर्फ राजद्रोह के मामले में ही अपवाद रखा गया है, जिसे पूरी तरह समाप्त किया गया है।
गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने बिल को मंजूर दी
तीन विधेयकों पर आई रिपोर्ट को 6 नवंबर को गृह मंत्रालय की संसदीय कमेटी में एक्सेप्ट कर लिए हैं। इसके साथ ही विपक्षी सदस्यों ने भी अपनी असहमति वाले नोट भी सबमिट कर दिए हैं। 27 अक्टूबर को हुई बैठक में कमेटी ने ड्राफ्ट रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया था। कुछ विपक्षी सदस्यों ने ड्राफ्ट पढ़ने के लिए और समय मांगा था। कमेटी ने उनकी मांग मान ली थी। न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक ये बिल सोमवार (6 नवंबर) की बैठक में मंजूर कर लिए।
विपक्ष ने मांगा था बिल पढ़ने का समय
इससे पहले कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम समेत विपक्षी सदस्यों ने कमेटी के अध्यक्ष बृज लाल से ड्राफ्ट पर फैसला लेने के लिए दिए गए समय को तीन महीने बढ़ाने का आग्रह किया था। सदस्यों ने कहा था कि चुनावी लाभ के लिए इन विधेयकों को उछालना सही नहीं है।
ये विधेयक 11 अगस्त को संसद में पेश किए गए थे। अगस्त में ही इससे जुड़ा ड्राफ्ट गृह मामलों की स्थायी समिति को भेजा गया था। कमेटी को ड्राफ्ट स्वीकार करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है।
अमित शाह ने तीन कानूनों में बदलाव के बिल पेश किए
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में 163 साल पुराने 3 मूलभूत कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा में पेश किए थे। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर है, जिसे नए स्वरूप में लाया जाएगा। ये बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC) और एविडेंस एक्ट हैं।
3 विधेयकों से क्या बदलाव होगा?
कई धाराएं और प्रावधान अब बदल जाएंगे। IPC में 511 धाराएं हैं, अब 356 बचेंगी। 175 धाराएं बदलेंगी। 8 नई जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं खत्म होंगी।
इसी तरह CrPC में 533 धाराएं बचेंगी। 160 धाराएं बदलेंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 खत्म होंगी। पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान होगा, जो पहले नहीं था।
सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा।
देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं।
तीनों बिल जांच के लिए संसदीय कमेटी के पास भेजे गए हैं। इसके बाद ये लोकसभा और राज्यसभा में पास किए जाएंगे।
समझिए 3 बड़े बदलाव…
- राजद्रोह नहीं, अब देशद्रोह: ब्रिटिश काल के शब्द राजद्रोह को हटाकर देशद्रोह शब्द आएगा। प्रावधान और कड़े किए। अब धारा 150 के तहत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य, चाहे बोला हो या लिखा हो, या संकेत या तस्वीर या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया हो तो 7 साल से उम्रकैद तक सजा संभव होगी। देश की एकता एवं संप्रभुता को खतरा पहुंचाना अपराध होगा। आतंकवाद शब्द भी परिभाषित। अभी IPC की धारा 124ए में राजद्रोह में 3 साल से उम्रकैद तक होती है।
- सामुदायिक सजा: पहली बार छोटे-मोटे अपराधों (नशे में हंगामा, 5 हजार से कम की चोरी) के लिए 24 घंटे की सजा या एक हजार रु. जुर्माना या सामुदायिक सेवा करने की सजा हो सकती है। अभी ऐसे अपराधों पर जेल भेजा जाता है। अमेरिका-UK में ऐसा कानून है।
- मॉब लिन्चिंग: मौत की सजा का प्रावधान। 5 या ज्यादा लोग जाति, नस्ल या भाषा आधार पर हत्या करते हैं तो न्यूनतम 7 साल या फांसी की सजा होगी। अभी स्पष्ट कानून नहीं है। धारा 302, 147-148 में कार्रवाई होती है।
राज्यों के लिए नए कानून कैसे हैं
सरकारी दावों के अनुसार बिल पेश करने से पहले व्यापक रायशुमारी की गई है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार कानून-व्यवस्था और पुलिस राज्यों का विषय है। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के माध्यम से राष्ट्रीय बहस हो रही है, इसलिए आपराधिक कानूनों में बदलाव से पहले राज्यों से परामर्श के साथ देश में सार्थक बहस जरूरी है।
सरकार की तैयारी: 4 साल की चर्चा के बाद हुए हैं ये बदलाव
सरकार की ओर से कहा गया कि 18 राज्यों, 6 केंद्र शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 22 हाई कोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसदों और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं। चार साल की चर्चा और इस दौरान 158 बैठकों के बाद सरकार ने बिल को पेश किया है। इन बदलावों के लिए पहली बैठक सितंबर 2019 में पार्लियामेंट लाइब्रेरी के रूम नंबर जी-74 में हुई थी। कोरोना के दौरान एक साल तक इसमें कोई प्रगति नहीं हुई थी।