चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत की अवमानना का नियम किसी जज को आलोचना से बचाने के लिए नहीं है। बल्कि इसका मकसद कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया में किसी शख्स की दखल को रोकना है। न्यायपालिका देश के नागरिकों के लिए है और हमेशा रहेगी।
अदालतों का काम यह सुनिश्चित करना है कि राजनीति अपनी सीमाओं में ही रहे। 9 नवंबर को CJI चंद्रचूड़ के कार्यकाल का एक साल पूरा हो गया, इस मौके पर उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान ये बातें कहीं।
जज पर अपनी राय व्यक्त करना अवमानना नहीं: CJI
CJI ने कहा कि अगर कोई शख्स कोर्ट के फैसले का अपमान करता है या उस पर कोई गलत बयान देता है तो यह अवमानना है। कोई कोर्ट की कार्यवाही बाधित करता है या उसके आदेश का पालन करने में आनाकानी करता है, इसे भी अवमानना माना जाएगा। लेकिन किसी जज को लेकर अपनी राय व्यक्त करने पर कोर्ट की अवमानना का केस नहीं बनता।
उन्होंने कहा कि मैं यह मानता हूं कि कोर्ट की अवमानना के नियम का इस्तेमाल किसी जज को आलोचना से बचाने के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट और जजों को अपने काम और फैसलों से अपनी प्रतिष्ठा बनानी चाहिए, यह कोर्ट की अवमानना के नियम से नहीं बनाई जा सकती।
इसके साथ ही अदालतों को मीडिया और नागरिकों से संवाद बनाए रखना चाहिए। कई बार सोशल मीडिया पर जजों के नाम के साथ ऐसी पोस्ट शेयर की जाती हैं, जो उन जजों ने कही भी नहीं होती। अगर हम लोगों से संवाद रखेंगे तो गलत जानकारी फैलाने वाले प्लेटफॉर्म्स खुद ही खत्म हो जाएंगे।
CJI ने कहा कि अब हमने एक प्रयोग शुरू करने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक न्यूज लेटर जारी किया जाएगा, इसमें अदालत में हुए फैसलों की जानकारी सीधे जनता को मिलेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं जस्टिस चंद्रचूड़
जस्टिस चंद्रचूड़ ने 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट के जज का पदभार संभाला था। सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। वहीं बॉम्बे हाईकोर्ट में भी वह बतौर जज काम कर चुके हैं। बतौर जज नियुक्त होने से पहले वह देश के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं। सबरीमाला, भीमा कोरेगांव, समलैंगिकता, आधार और अयोध्या केस में जज रह चुके हैं।
जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता 16वें CJI थे
जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ देश के 16वें CJI थे। उनका कार्यकाल 22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक यानी करीब 7 साल तक रहा। पिता के रिटायर होने के 37 साल बाद उसी पद पर बैठेंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ पिता के 2 बड़े फैसलों को SC में पलट भी चुके हैं। वह बेबाक फैसलों के लिए चर्चित हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल 9 नवंबर, 2022 से 10 नवंबर, 2024 तक यानी 2 साल का है।
कानून मंत्री किरन रिजिजू ने 7 अक्टूबर को CJI ललित को चिट्ठी लिखकर उनसे उनके उत्तराधिकारी का नाम बताने की अपील की थी। परंपरा है कि मौजूदा CJI अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश तभी करते हैं, जब उन्हें कानून मंत्रालय से ऐसा करने का आग्रह किया जाता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पिता के 2 फैसले पलटे
जस्टिस चंद्रचूड़ ने 2017-18 में पिता के दिए दो फैसले एडल्टरी लॉ और शिवकांत शुक्ला वर्सेज एडीएम जबलपुर के फैसले को पलटा था।
1. साल 1985 में तत्कालीन चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की बेंच ने सौमित्र विष्णु मामले में IPC की धारा 497 को बरकरार रखा था। उस वक्त बेंच ने अपने फैसले में लिखा था- सामान्य तौर पर यह स्वीकार किया गया है कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला आदमी ही है न कि महिला।
2018 में इस फैसले को पलटते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा- एडल्टरी लॉ पितृसत्ता का संहिताबद्ध नियम है। उन्होंने कहा कि यौन स्वायत्तता को महत्व दिया जाना चाहिए।
2. साल 1976 में शिवकांत शुक्ला बनाम एडीएम जबलपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना था। उस बेंच में पूर्व CJI वाईवी चंद्रचूड़ भी थे।
2017 में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार माना। इस बेंच में चंद्रचूड़ भी शामिल थे। चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में लिखा- एडीएम जबलपुर मामले में बहुमत के फैसले में गंभीर खामियां थीं। संविधान को स्वीकार करके भारत के लोगों ने अपना जीवन और निजी आजादी सरकार के समक्ष आत्मसमर्पित नहीं कर दी है।