विदेश: मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने पद संभालते ही देश से भारतीय सैनिकों को निकालने के लिए तैयार है। हालांकि, मुइज्जू ने कहा कि वो बदले में चीनी सेना को तैनात नहीं होने देंगे। 17 नवंबर को होने वाले शपथ ग्रहण समारोह से पहले दिए इंटरव्यू में मुइज्जू ने कहा- मालदीव जियोपॉलिटिकल प्रतिस्पर्धा में घुसने के लिहाज से बहुत छोटा देश है।
मुइज्जू ने आगे कहा- मैं मालदीव की विदेश नीति को इसमें नहीं फंसाना चाहता। सितंबर में चुनाव से पहले मुइज्जू ने मालदीव पर भारत के प्रभाव के खिलाफ ही अपनी नीतियों का प्रचार किया था। बुधवार को उन्होंने कहा- हम चीन को मालदीव में भारत की जगह नहीं लेने देंगे। भारत सरकार के साथ हम 75 सैनिकों को निकालने के लिए चर्चाएं कर रहे हैं।
मुइज्जू ने कहा- मालदीव की जनता ने मुझे इसलिए नहीं जिताया कि मैं दूसरे देशों की सेनाओं को यहां तैनात होने दूं। इसी वजह से मैं भारत के संपर्क में हूं। हमें उम्मीद है कि ये मुद्दा शांति और लोकतांत्रिक तरह से सुलझ जाएगा। हम भारतीय सैनिकों को इसलिए नहीं हटा रहे कि उनकी जगह कोई और देश ले ले। हमारे लिए मालदीव का हित सबसे आगे है। हम सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते रखना चाहते हैं।
इससे पहले ब्लूमबर्ग के मुताबिक, मुइज्जू ने कहा था कि मालदीव पूरी तरह से आजाद होना चाहता है। उन्होंने कहा था कि हम भारत के साथ ऐसे संबंध रखना चाहते हैं, जिनमें दोनों का फायदा हो।
भारत ने मालदीव को 2010 और 2013 में दो हेलीकॉप्टर और 2020 में एक छोटा विमान तोहफे के तौर पर दिया था। इस पर मालदीव में काफी हंगामा हुआ। मुइज्जू के नेतृत्व में विपक्ष ने तत्कालीन राष्ट्रपति सोलिह पर ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति का अपनाने का आरोप लगाया था।
भारत का कहना है कि उपहार में दिए गए विमान का इस्तेमाल खोज-बचाव अभियानों और मरीजों को लाने के लिए किया जाना था। मालदीव की सेना ने 2021 में बताया था कि इस विमान के संचालन और उसकी मरम्मत के लिए भारतीय सेना के 70 से ज्यादा जवान देश में मौजूद हैं।
इसके बाद मालदीव के विपक्षी दलों ने ‘इंडिया आउट’ अभियान शुरू कर दिया। उनकी मांग थी कि भारतीय सुरक्षा बल के जवान मालदीव छोड़ें।
साल 2008 से पहले मालदीव में मौमून अब्दुल गयूम का शासन था। इस दौरान मालदीव संतुलनवादी नीति अपनाता था। यानी किसी भी देश का खुलकर समर्थन नहीं करता था, लेकिन 2008 में मोहम्मद नशीद मालदीव के राष्ट्रपति बने। इसके बाद से मालदीव ने भारत की ओर अपने झुकाव को सार्वजनिक किया। इस दौरान नशीद ने खुलकर चीन की आलोचना की।
वहीं 2013 में अब्दुल्ला यामीन सत्ता में आए। उन्होंने भी मुखर विदेश नीति की परंपरा अपनाई। हालांकि, उनका झुकाव चीन की ओर था। इस दौरान यामीन ने माले को हुलहुमाले द्वीप से जोड़ने वाले 2.1 किमी लंबे चार लेन वाले ब्रिज का उद्घाटन किया था।
यह एकमात्र ब्रिज है जो द्वीपसमूह में द्वीपों को जोड़ता है जहां लोग अलग-अलग एटोल के बीच नावों पर यात्रा करते हैं। बीजिंग ने इस प्रोजेक्ट के लिए 200 मिलियन डॉलर दिए। सालों तक चीन को इस छोटे देश में कोई दिलचस्पी नहीं थी। यहां तक कि 2012 तक मालदीव में चीन का एक भी दूतावास नहीं था।
हालांकि, यामीन की सरकार के एक फैसले से सब कुछ बदल गया। यह फैसला फ्री ट्रेड एग्रीमेंट यानी FTA पर समझौते का था। इससे मालदीव से होने वाले मछली के निर्यात पर से शुल्क लगना बंद हो गया और द्वीपसमूह को चीनी वस्तुओं और सेवाओं के लिए खोल दिया गया।
चीन ने मालदीव में अन्य प्रोजेक्ट के अलावा ब्रिज और एक एयरपोर्ट बनाने के लिए एक अरब डॉलर से अधिक का कर्ज दिया। साल 2018 में फिर मालदीव की विदेश नीति भारत की ओर मुड़ गई। राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के सत्ता में आते ही भारत और मालदीव फिर पास आ गए।
सोलिह की सरकार ने यामीन पर देश को चीनी कर्ज के जाल में फंसाने का आरोप लगाया। 6.1 अरब GDP वाले मालदीव पर GDP का 113% कर्ज है। मालदीव सभी क्षेत्रों में भारत पर बहुत अधिक निर्भर है, चाहे वह बुनियादी ढांचे के विकास की बात हो या स्वास्थ्य और शिक्षा की, मालदीव भारत की मदद इन क्षेत्रों में लेता है।
वहीं एक्सपर्ट कहते हैं कि भारत का करीबी होने के साथ ही इब्राहिम मोहम्मद सोलिह सरकार किसी देश की विरोधी नहीं रही है। इब्राहिम मोहम्मद सोलिह ने कॉमनवेल्थ के साथ मालदीव के रिश्तों की फिर शुरुआत की। चीन के साथ बेहतर संबंध रखे और कई देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए।