विदेश के शहर फलस्तीन में इजराइल-हमास जंग के बीच हूती विद्रोहियों ने रविवार देर शाम लाल सागर से एक कार्गो शिप गैलेक्सी लीडर को हाइजैक कर लिया था। इसके एक दिन बाद यानी सोमवार देर शाम हूती ने शिप हाइजैक करने का 2 मिनट का वीडियो शेयर किया है। इस वीडियो में हूती लड़ाके एक हेलिकॉप्टर से जहाज पर कूदते दिखाई दे रहे हैं। उनके हाथों में बंदूकें नजर आ रही हैं।
ये जहाज तुर्किये से भारत आ रहा था। हूती विद्रोहियों ने इसे इजराइली जहाज समझ कर हाइजैक किया था। हालांकि, बाद में इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हूती विद्रोहियों के दावे का खंडन किया कि हाइजैक किया गया जहाज उनका है।
हूती विद्रोही जिस हेलिकॉप्टर से जहाज पर कूदते हैं उस पर फिलिस्तीन का झंडा बना हुआ है। लड़ाकों को जहाज पर उतारने के बाद हेलिकॉप्टर वहां से तुरंत निकल जाता है।
जिस वक्त हूती लड़ाके जहाज पर उतरते हैं उस वक्त वहां कोई गार्ड या जहाज का कोई क्रू मेंबर मौजूद नहीं था
हूती लड़ाके कार्गो शिप पर उतरने के बाद अपनी पॉजिशन लेते हैं और हवा में फायरिंग करते हैं। इस वक्त भी कोई जहाज से नहीं निकलता है।
इसके बाद हूती शिप के ऑपरेटिंग एरिया का दरवाजा खुलवाते हैं और वहां मौजूद क्रू को बंदूकों को डर दिखाकर एक तरफ जाने को कहते हैं।
इजराइल डिफेंस फोर्सेज (IDF) के अनुसार बहामास के झंडे तले जा रहा जहाज ब्रिटिश कंपनी के नाम पर रजिस्टर्ड है। इजराइली कारोबारी अब्राहम उंगर इसके आंशिक हिस्सेदार हैं। फिलहाल यह एक जापानी कंपनी को लीज पर दिया गया था।
यही वजह है कि जापान ने जहाज और क्रू मेंबर्स को छुड़वाने के लिए सीधे हूती विद्रोहियों से संपर्क किया है। इजराइली विदेश मंत्रालय के अनुसार, जहाज पर यूक्रेन, बुल्गारिया, फिलीपींस और मेक्सिको के 25 नागरिक सवार हैं।
जहाज हाइजैक होने की जानकारी मिलते ही नेतन्याहू ने इसका आरोप ईरान पर लगाया था। इजराइली PM बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे ईरान की ओर से अंतरराष्ट्रीय जहाज पर हमला बताया है। उन्होंने कहा यह ईरान की तरफ से की गई आतंकी हरकत है। ये दुनिया पर हमले की कोशिश है। इससे दुनिया की शिपिंग लाइन भी प्रभावित होगी।
वहीं, हूती मिलिट्री के प्रवक्ता याह्या सारी ने कहा है कि वो जहाज पर मौजूद सभी बंधकों को इस्लामिक उसूलों और तौर-तरीके के साथ संभाल रहे हैं। उन्होंने लाल सागर में इजराइली जहाजों को निशाना बनाने की फिर से धमकी दी है।
साल 2014 में यमन में गृह युद्ध शुरू हुआ। इसकी जड़ शिया-सुन्नी विवाद है। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत से गृह युद्ध में बदल गया। 2014 में शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। हादी देश में बदलाव के बीच स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का।
देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।
यमन में 9 सालों से चल रही जंग को जारी रखने में सऊदी अरब और ईरान दो महत्वपूर्ण ताकतें हैं। यमन की सरकार को जहां सऊदी का समर्थन है वहीं हूती विद्रोहियों को ईरान का। ऐसे में अगर ईरान और सऊदी के बीच बातचीत होती है और उनके रिश्ते सुधरते हैं तो यकीनन इसका असर यमन की जंग पर पड़ना तय माना जा रहा था।
11 मार्च को चीन की राजधानी बीजिंग में ईरान और सऊदी अरब के बीच अहम समझौता हुआ। जो चीन ने करवाया। 2016 के बाद दोनों ने एक-दूसरे के मुल्क में अपनी-अपनी एम्बेसी फिर खोलने के लिए राजी हो गए थे। इससे दोनों देशों के बीच सात साल से जारी टकराव कम हुआ। दरअसल, सात साल पहले सऊदी अरब ने ईरान के लिए जासूसी के आरोप में 32 शिया मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया था। इसमें 30 सऊदी अरब के ही नागरिक थे। ईरान ने बदला लेने की धमकी दी थी। ये सभी जेल में हैं।
इसके बाद, सऊदी अरब ने ड्रग स्मगलिंग के आरोप में ईरान के तीन नागरिकों को सजा-ए-मौत दे दी। दोनों देश जंग की कगार पर पहुंच गए। इस दौरान अमेरिका सऊदी की मदद के लिए आया।
इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सत्ता में आने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दो साल में यमन के गृह युद्द को बंद करवाने का वादा किया था। जिसे चीन ने पूरा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियार सप्लाई करने की पॉलिसी पर चलने के कारण अमेरिका की मिडल ईस्ट में ऐसी छवि नहीं रह गई थी कि उसे शांति स्थापित करवाने के लायक समझा जा सके। जिसका चीन ने फायदा उठाया है। सऊदी और ईरान के बीच समझौता करवा कर चीन ने यमन में जंग खत्म करने के लिए रास्ता खोल दिया।