छत्तीसगढ़ भाजपा ने मुख्ममंत्री चेहरे के बिना विधानसभा चुनाव लड़ा। एक तरफ कांग्रेस के पास स्पष्ट रुप से मुख्यमंत्री का चेहरा था तो दूसरी ओर भाजपा मोदी और पार्टी के विजन पर यह चुनाव लड़ रही थी। जिस तरह केंद्र में बीजेपी कांग्रेस से पूछती है कि उनका पीएम का चेहरा कौन होगा उसी तर्ज पर यह सवाल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बीजेपी से करती आ रही है। अंततः चुनाव का ऊंट किस करवट बैठता है यह नहीं कहा जा सकता।
लेकिन जिस तरह के प्रारंभिक संकेत आ रहे हैं उससे तो बीजेपी को राज्य में सत्ता मिलती दिख रही है। अब इस हालत में वह किसे मुख्यमंत्री बनाएगी? लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके और पूरे राज्य से परिचित रमन सिंह एक बार फिर से बीजेपी की पसंद होंगे या भाजपा किसी आदिवासी पर अपना दांव लगाएगी। वह किसी सांसद को मौका देगी या ब्यूरोक्रेसी को छोड़कर राजनीति में आए एक ब्यूरोक्रेट को।
राज्य में कयास यह भी हैं कि बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा मॉडल की तरह कोई ऐसा नाम सामने लेकर आ सकती है जिसकी दूर-दूर तक कहीं कोई चर्चा ना रही हो। टिकट बंटवारे के ज्यातादर फैसले हाईकमान से ही हुए हैं। ऐसी हालत में विधायकों की किसी एक नेता के साथ गोलबंदी दिखे ऐसा होता भी नहीं दिख रहा है। आइए इस बात का एनालिसिस करते हैं कि भाजपा यदि सत्ता में आती है तो उसके पास पांच वो कौन से नाम हैं जिन्हें वह मुख्मंत्री बना सकती है।
विजय बघेल की उम्मीदवारी मजबूत है। उसकी दो वजहें हैं। विजय बघेल सीएम भूपेश बघेल की ही जाति ओबीसी की कुर्मी समाज से आते हैं। वह मुख्यमंत्री के खिलाफ पाटन से ताल ठोंक रहे हैं। सासंद हैं। साफ-सुथरी छवि है। राज्य के स्थानीय नेताओं का विरोध नहीं है। हाईकमान के विश्वस्त माने जाते हैं। राजनीति जानकार बताते हैं कि उनके खिलाफ एक ही चीज जाती है कि उनकी अपील पूरे छत्तीसगढ़ में नहीं है। वह एक क्षेत्र के ही नेता हैं।
तीन बार के मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को भले ही पार्टी ने मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया लेकिन उनकी प्रत्याशिता को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। राजनीतिक टीकाकार रवि भोई कहते हैं कि शुरुआती समय में रमन सिंह जरुर बीजेपी में उपेक्षित थे लेकिन जब चुनाव बेहद करीब आया तो हाईकमान ने टिकट देने में रमन सिंह की भी सुनी। केंद्रीय नेतृत्व यह बात जानता है कि रमन सिंह तीन कार्यकाल सरकार चला चुके हैं और उन्हें राज्य चलाने की बेहतर समझ है। वह राज्य में लोकप्रिय रहे हैं। भले ही 2018 का चुनाव हारने के बाद उनकी सक्रियता कुछ कम रही हो लेकिन मुख्यमंत्री चुनते समय उनके अनुभव को दरकिनार कर देना कठिन होगा।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव सीएम पद के लिए भी दावेदार बन सकते हैं। अरुण साव ओबीसी समाज से आते हैं। सीधे-सरल हैं। पार्टी के अंदर की गुटबाजी में विश्वास नहीं करते। इन चुनावों के 6 महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी को एक साफ सुथरी छवि वाला ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए जो हाईकमान के निर्देश को पूरी तरह से अमल में लेकर आए। इसके लिए साव बेहतर व्यक्ति हो सकते हैं। ओबीसी की जिस जाति से वह आते हैं उसकी संख्या छत्तीसगढ़ में ठीक-ठाक है। जातीय समीकरणों का लाभ भी उनके पक्ष में जा सकता है।
ब्यूरोक्रेट ओपी चौधरी तब चर्चाओं में आए थे जब उन्होंने 2018 के चुनावों के पहले नौकरी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी। चौधरी युवाओं में लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया में बहुत बड़ी फैन फालोइंग है। जिस तरह से महाराष्ट्र में अपेक्षाकृत युवा चेहरे देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया था ऐसी सूरत में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी ओपी चौधरी को ही यह जिम्मेदारी सौंप दे। ओपी चौधरी ओबीसी समाज से आते हैं। राजनीति में एक विजन लेकर आए हैं। उनके हिस्से की कमजोरी यह है कि वह पारंपरिक राजनेता नहीं हैं। संगठन को चलाने का अनुभव नहीं है। उम्र भी अपेक्षाकृत राज्य के नेताओं की तुलना में कम है।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी किसी आदिवासी नेता पर भी दांव लगा सकती है। राम विचार नेताम का नाम ऐसी हालत में सबसे ऊपर आ सकता है। इसके अलावा बीजेपी किसी नए आदिवासी चेहरे पर भी दांव लगा सकती है। किसी अन्य चेहरे पर दांव लगाने की बात पर वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध कहते हैं कि भाजपा यदि चुनाव जीतती है तो वह मुख्यमंत्री चुनने के मामले में चौंका भी सकती है। मुख्यमंत्री चुनते समय केंद्रीय नेतृत्व इस बात का ख्याल रखना चाहेगा कि 6 महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी पिछली बार की तरह इस बार भी चुनावों में प्रदर्शन करना चाहेगी। जिसमें मुख्यमंत्री की कार्यशैली के साथ उसकी जाति भी अहम होगी।