गुरुग्राम में रहकर एनिमल का संगीत बनाने वाले ‘रहमान’ से मिलिए: कश्मीर रचने वाले नॉर्थ के रहमान

 

बॉलीवुड की फिल्म ‘एनिमल’ को लेकर दर्शकों का जबरदस्त रिस्पॉन्स देखने को मिल रहा है। इस फिल्म के गाने भी खूब पसंद किए जा रहे हैं। इसी फिल्म का एक गाना ‘कश्मीर’ भी धीरे- धीरे खूब लोकप्रिय हो रहा है। इस गाने की खासियत यह है कि बिना म्यूजिक का यह गाना बना है। हिंदी सिनेमा के इतिहास शायद यह पहला मौका है, जब कोई गाना बिना संगीत के तैयार हुआ और लोग खूब पसंद कर रहे हैं। यह गाना कैसे बना, आइए जानते हैं इस गाने के संगीतकार और गायक मनन भारद्वाज को।

मैं चार साल पहले कश्मीर गया था। मुझे कश्मीर बहुत अच्छा लगा। कश्मीर में घूमा, कश्मीर को समझा। वहां की खूबसूरत और  शांत वादियों में मेरे एक धुन गूंज रही थी। उस पर मैंने एक गाना बनाया और टी सीरीज के सीएमडी भूषण कुमार को सुनाया। भूषण कुमार को वह गाना बहुत अच्छा लगा और उन्होंने अपने पास रख लिया।

 

 

 

जब फिल्म ‘एनिमल’ बन रही थी, उन्हीं दिनों मेरी फिल्म के निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा से मेरी मुलाकात हुई। नरेशन के समय एक सिचुएशन आई वहां पर मैंने वह गाना गाकर सुनाया। संदीप सर ने मेरा गाना गाते हुए रिकॉर्ड कर लिया। मुझे बाद में पता लगा कि उन्होंने वायस नोट पर वह गाना शूट भी कर लिया। जब वायस नोट पर गाना शूट हो गया तो उन्होंने उस गाने को कई बार सुना। संदीप सर ने फैसला किया कि इस गाने में और कुछ नहीं रखना है।

मैंने संदीप सर से रिक्वेस्ट की, इसमें पियानो या फिर वायलन रख लेते हैं। लेकिन वह इसमें कोई भी म्यूजिक पीस नहीं रखना चाह रहे थे। एक दिन मैं  टी सीरीज के ऑफिस में बैठा था। एक बार फिर जब इस गाने की चर्चा चली तो  संदीप सर खिड़की खोलकर बोले कि खिड़की के बाहर जो आवाज आ रही है। इसमें  मुझे बस यही म्यूजिक चाहिए।

 

 

 

 

आज कल तो बिना म्यूजिक के गाने नहीं आते हैं। अब धीरे -धीरे ‘कश्मीर’ गाना बहुत लोकप्रिय हो रहा है और यह गाना अब लोगों के समझ में आ रहा है। जैसे अगर आप ‘लग जा गले’ गाने को गाए तो बिना म्यूजिक के भी आप उस गाने को गा सकते हैं। वैसे ही मैंने उस गाने को बनाने का प्रयास किया और यह बहुत बड़ा प्रयोग था। जो अब मुझे कामयाब होता दिख रहा है। अभी फिल्म में आप जो गीत सुन रहे हैं ,वह मैंने श्रेया घोषाल के साथ बिना म्यूजिक के जो दोबारा रिकॉर्ड किया था वह सुन रहे हैं।

संदीप सर ने मुझे नरेट किया था कि एक फाइट सीक्वेंस हैं, जहां पर बंदूक छोड़कर एक लड़का कुल्हाड़ी से लोगों को मारता है। पीछे उसके भाई खड़े होकर गाना गाते हैं और अकेला एक लड़का लड़ाई लड़ रहा है। अर्जन वैली का मतलब होता है जो जुल्म के खिलाफ अकेला सौ लोगों से भिड़ जाता है। उसे अर्जन वैली कहते हैं। अर्जन वैली पंजाबी फोक किरदार है। हम उस किरदार को वहां से लेकर आए और इस गाने में प्रयोग किया। मैने संदीप सर और गाने के गीतकार भूपिंदर बब्बल जी ने मिलकर इस गाने पर 20 घंटे काम किया तब जाकर यह गाना बनाया था।

 

 

 

 

पहली बार मुंबई 2006 में आया था। 2006 में मेरे पिता संकल्प भारद्वाज का निधन हो गया। तब मैं 17 साल का था, उसी साल मेरी बहन की शादी थी। बहन की शादी करके अगले दिन मुंबई आ गया। मेरी मम्मी दीप्ति भारद्वाज गुरुग्राम में ही रहीं। मैंने एजुकेशन लोन लेकर साउंड इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। जीवन बहुत अभाव में गुजारा। कभी कभी वड़ा पाव तक के खाने के पैसे नहीं रहते थे। छोटा छोटा काम करना शुरू किया। कुछ लोगों को असिस्ट भी किया, लेकिन मुझे मजा नहीं आया। पैसे कमाने के लिए कभी भी छोटा काम नहीं किया। इंडस्ट्री के नामचीन लोगों से मिल लिया था, सिर्फ भूषण कुमार से नहीं मिल पाया था। मैं वापस 2008 में गुरुग्राम वापस आ गया और अपना छोटा सा स्टूडियो खोलकर काम करने लगा।

मुंबई छोड़ते वक्त अपने आप से यही बोला था कि अब मुंबई तब आऊंगा जब भूषण कुमार का मेरे पास फोन आएगा। भूषण कुमार जी का फोन 2014 में आया, मुझे लगा कि यह तो सपने जैसा है। भूषण कुमार से मिला और उन्होंने मुझे फिल्म ‘शिद्दत’ में काम करने का मौका दिया। वहां से मेरी फिर जर्नी शुरू हुई।

 

 

 

 

जब गुरुग्राम  2008 में वापस आया तो अपना छोटा सा स्टूडियो खोला था। अभी तो गुरुग्राम में मेरे दो- तीन बड़े स्टूडियो हैं। गुरुग्राम से ही काम करता हूं। मुझे यहां बहुत सुकून मिलता है, सब कुछ खुला खुला है। महीने में एक बार मुंबई आता हूं। ‘शिद्दत’ से टी सीरीज के साथ मेरी जर्नी शुरू हुई तो टी सीरीज के लिए ही काम करता हूं। अब तक ‘सत्यप्रेम की कथा’, ‘तारा वर्सेस बिलाल’, ‘राधे श्याम’ और ‘यारियां 2’  जैसी फिल्में रिलीज हो चुकी है।

मैं आठवीं कक्षा में एक बार स्कूल से भागकर नोएडा स्थित टी सीरीज के आफिस पहुंच गया था। मैंने गुरुग्राम के एसडी आदर्श स्कूल से पढ़ाई की। बचपन से गुरुग्राम में ही हूं। मुझे कविताएं लिखने का बहुत शौक रहा है। चार साल की उम्र में पहली बार कविता लिखी। जब मैं आठवीं में पहुंचा तो सोच लिया कि म्यूजिक में ही करियर बनाना है। बचपन में ही संगीत के प्रति मेरे जुनून को देखते हुए डैडी को लगा कि यह म्यूजिक के ही क्षेत्र में जाएगा। मैंने बचपन से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया। तीन अलग-अलग गुरुओं से मैने क्लासिकल म्यूजिक सीखा। उसके बाद लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज से वेस्टर्न म्यूजिक सीखा। मुंबई के एसएआई इंस्टीट्यूट से ऑडियो में इंजीनियरिंग की।

 

 

 

जब मुझे मुंबई में काम नहीं मिला तो वापस गुरुग्राम आ गया। मैंने सोच लिया कि मुंबई में काम नहीं मिला तो क्या हुआ। गुरुग्राम में अपना प्रोडक्शन हाउस खोलकर यूट्यूब के लिए म्यूजिक वीडियो बनाऊंगा। आज यूट्यूब ऐसा माध्यम हैं कि दुनिया के किसी भी कोने में रहकर आप अपनी प्रतिभा को दिखा सकते हैं, अगर आप के अंदर काबिलियत है तो लोग आपसे संपर्क करेंगे। मैं गाने लिख भी लेता हूं, म्यूजिक भी तैयार करता हू और गाता भी हूं। मैंने अब तक करीब 500 म्यूजिक वीडियो डायरेक्ट किए हैं। लेकिन मुझे गीत लिखना और म्यूजिक तैयार करना ही अच्छा लगता है। गायकी मेरी पहली प्राथमिकता नहीं है।

 

 

 

 

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