अमेरिका के रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और डिप्टी नेशनल सिक्योरिटी ए़डवाइजर के बाद अब अमेरिकी सिक्योरिटी एजेंसी FBI के डायरेक्टर क्रिस्टोफर ए रे भारत आ रहे हैं। 12 साल बाद ऐसा होगा जब FBI के डायरेक्टर भारत में होंगे। इसके पहले अप्रैल 2011 में तत्कालीन FBI डायरेक्टर रॉबर्ट मुलर भारत आए थे।
क्रिस्टोफर ए रे का ये दौरा उस वक्त हो रहा है जब अमेरिका ने भारत पर उनके एक नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने के आरोप लगाए हैं। वहीं, एक अमेरिकी संसदीय कमेटी ने भारत को चीन, रूस और ईरान के साथ उन देशों में शामिल किया है जो विदेश में अपने विरोधियों को हत्या कराते हैं। अमेरिका पन्नू के मुद्दे को लेकर इतना सख्त क्यों है, FBI के डायरेक्टर क्यों आ रहे हैं, वो क्या करेंगे और भारत उनके सामने कौन से मुद्दा उठा सकता है।
सवाल 1: क्या FBI डायरेक्टर पन्नू मामले की पूछताछ के लिए भारत आ रहे हैं?
जवाब: प्रियंका सिंह के मुताबिक इस विजिट को 2 तरह से देख सकते हैं। एक बात तो ये है कि ये एक रूटीन विजिट है। पिछले 6 महीनों में अमेरिका से काफी हाई लेवल विजिट हुई हैं। क्रिस्टोफर रे का एजेंडा भी देखें तो वो इंडियन इंटेलिजेंस एजेंसियों के सारे चीफ से मुलाकात करेंगे।
दूसरी बात ये भी है कि फिलहाल दोनों देशों के बीच पन्नू को लेकर विवाद है, जिस पर दोनों देशों में काफी बातचीत हो रही है। ऐसे में ये लाजमी है कि है कि FBI डायरेक्टर से मुलाकात के वक्त ये बात भी ऑन टेबल हो सकती है। इस मुद्दे पर दोनों देशों में बातचीत होनी जरूरी भी है।
सवाल 2: क्या पन्नू मामले में अमेरिका ने अपनी जांच पूरी कर ली हैं?
जवाब: अमेरिका अपने हिस्से की जांच पूरी कर चुका है, उन्होंने आरोपों को सार्वजनिक भी कर दिया है। एक शख्स (निखिल गुप्ता) की गिरफ्तारी भी हो चुकी है। अब जांच का अगला हिस्सा जिसके लिए दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है वो भारत ही कर सकता है।
जांच अभी जिस मोड़ पर खड़ी है, इसमें आगे का एक्शन सिर्फ भारत ही तय करेगा। अगर गौर करें तो अमेरिका ने अभी तक सिर्फ एक पॉइंट नोट किया है कि साजिश में भारत के कुछ लोगों में शामिल थे। हालांकि, इसे लेकर कोई साफ इनपुट्स नहीं दिए गए हैं।
सवाल 3: अमेरिका और कनाडा के भारत पर लगाए गए आरोप अलग कैसे हैं?
जवाब: अगर जस्टिन ट्रूडो की बात करें तो उन्होंने कहा था कि हमारे पास भारत पर आरोप लगाने के लिए पुख्ता इनपुट्स हैं जो उन्होंने आज तक नहीं दिए हैं। इस बात की भी काफी संभावना है कि कनाडा जिन इनपुट की बात कर रहा था वो अमेरिका में पन्नू के मामले को लेकर की जा रही जांच ही हो।
कनाडा के पास अपना कोई इनपुट नहीं था। वहां अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है। जांच अटकी हुई है। हालांकि, अमेरिका ने जांच कर भारत के साथ जानकारी साझा कर दी है।
सवाल 4: क्या पन्नू मामले की जांच FBI कर रही है?
जवाब: अब तक पन्नू मामले की सारी जांच FBI और अमेरिका के ड्रग एनफोर्समेंट विभाग ने की है। मामले में FBI की भागीदारी इसलिए भी है क्योंकि अमेरिका पन्नू को अपना नागरिक मानता है। उसका मानना है कि उनकी जमीन पर किसी ने उनके नागरिक को मारने की कोशिश की है। अमेरिका में ऐसे मामलों की जांच में FBI शामिल होती है।
सवाल 5: क्या FBI भारत के अधिकारियों पर नजर रख रही थी?
जवाब: हर देश अपनी सुरक्षा और जरूरत के मुताबिक लोगों पर नजर रखता है। हालांकि, ये नहीं कहा जा सकता है कि FBI ने भारत के अधिकारियों की निगरानी की। हालांकि, अगर पन्नू मामले की जद में जाकर देखा जाए तो कुछ बातें काफी संदिग्ध लगती हैं।
जैसे अमेरिकी चार्जशीट में बताया है कि निखिल गुप्ता ने पन्नू की हत्या के लिए जिसे हायर किया वो अमेरिकी एजेंट निकला। अमेरिकी एजेंट निखिल गुप्ता तक कैसे पहुंचा। ये बात कुछ हैरान करती है। इस बारे में सवाल किए जाने चाहिए।
सवाल 6: FBI डायरेक्टर के सामने क्या मुद्दे रखेगा भारत?
जवाब: पन्नू के मामले की जांच काफी महीनों से चल रही थी। पन्नू को भी इसके बारे में जानकारी थी, इसके बावजूद उसने वीडियो जारी कर धमकी दी और कहा की एयर इंडिया में ट्रैवल नहीं करें। इस बात को अमेरिका को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। जब FBI डायरेक्टर से बात होगी तो भारत इस मुद्दे को जरूर उठा सकता है।
वहीं, भारत बार-बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे गैंग वॉर और ऑर्गेनाइज्ड क्राइम का मुद्दा उठा रहा है। कनाडा में बैठे अपराधी भारत और दूसरे देशों में हत्याएं करवा रहे है। खालिस्तानी कनाडा, अमेरिका से लेकर कई यूरोपियन देशों में ऑपरेट करते हैं। इनमें आपस में कॉम्पिटिशन है। भारत इस मुद्दे को भी FBI डायरेक्टर के सामने उठा सकता है।
सवाल 7: खालिस्तान पर भारत की चिंता को क्यों नजरअंदाज करते हैं पश्चिमी देश?
जवाब: माइकल कुगलमैन के मुताबिक चीन से पहले आतंकवाद वो मुद्दा था जिस पर भारत और अमेरिका के बीच सबसे ज्यादा सहयोग दिखता था। चाहे वो लश्कर ए तैयबा हो या अल कायदा या जैश ए मोहम्मद भारत और अमेरिका ने कंधे से कंधा मिलाकर इनकी खिलाफत की।
हालांकि, जब भी खालिस्तानी आतंक की बात आई तो अमेरिका और पश्चिमी देशों के रुख में बदलाव दिखा। इसकी एक सबसे अहम वजह तो ये है कि खालिस्तानी आतंक से अमेरिका या पश्चिमी देशों के लिए बड़ा खतरा नहीं हैं। 1980-90 के दशक से तुलना करें तो खालिस्तानी मूवमेंट काफी धीमा पड़ा है। दूसरी वजह डेमोक्रेसी है। सभी पश्चिमी देश खुद को लोकतंत्र का झंडा बरदार कहते हैं। उन्हें लगता है कि खालिस्तानियों का शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करना उनका जायज अधिकार है। इसलिए भारत की चिंताओं के बावजूद वो खालिस्तानियों पर एक्शन नहीं लेते हैं।