दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के समन पर गुरुवार को कहा, ”बीजेपी खुलेआम सीबीआई और ईडी का इस्तेमाल करके दूसरी पार्टियों के नेताओं को तोड़कर बीजेपी में शामिल करने का काम कर रही है.”
केजरीवाल ने ख़ुद को गिरफ़्तार किए जाने की आशंका जताई और ईडी के समन को ग़ैर-क़ानूनी बताया.
ईडी ने तीन जनवरी को केजरीवाल से पेश होने के लिए कहा था. दो नवंबर, 21 दिसंबर के बाद ये तीसरी बार था, जब केजरीवाल ईडी के समन पर पेश नहीं हुए.
ईडी कथित शराब घोटाले मामले में केजरीवाल से पूछताछ करना चाहती है. इसी मामले में पार्टी के कई नेता पहले ही गिरफ़्तार किए जा चुके हैं.
ईडी के समन पर केजरीवाल ने कहा, ”कितने उदाहरण हैं, जहाँ किसी पार्टी के नेता के ख़िलाफ़ ईडी, सीबीआई के मामले चल रहे थे, जैसे ही वो नेता बीजेपी में शामिल हुए, उनके सारे पुराने मामले बंद कर दिए गए या ठंडे बस्ते में डाल दिए गए. जो इनकी पार्टी में शामिल हो जाता है, उनके सारे मामले रफा दफ़ा हो जाते हैं. जो इनकी पार्टी में नहीं जाता, वो जेल जाता है.”
‘आप’ सांसद राघव चड्ढा ने भी कुछ महीने पहले कहा था, ”जिन राज्यों में बीजेपी सरकारें हैं, वहाँ जांच एजेंसियां चुप हैं. जहाँ बीजेपी की सरकारें नहीं हैं, वहाँ जांच एजेंसियां आक्रामक हैं.”
क्या सच में ऐसा है?
इस कहानी में यही समझने की कोशिश करते हैं, पर पहले आँकड़ों पर नज़र.
आँकड़े किस ओर इशारा करते हैं?
संसद में जुलाई 2023 में सरकार ने बताया कि प्रीवेंशन ऑफ़ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के तहत ईडी ने 3,110 केस बीते तीन सालों में दर्ज किए गए.
- 2022-23: 949 केस
- 2021-22: 1180 केस
- 2020-21: 981 केस
वहीं फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट यानी फेमा के तहत बीते तीन सालों में 12 हज़ार 233 से ज़्यादा केस दर्ज किए गए.
- 2022-23: 4,173 केस
- 2021-22: 5,313 केस
- 2020-21: 2,747 केस
इस रिपोर्ट के मुताबिक़, 18 सालों के रिकॉर्ड को देखा जाए तो ईडी ने जिन 147 नेताओं से पूछताछ की या गिरफ्तारी की, उनमें 85 फ़ीसदी नेता विपक्ष के थे.
वहीं सीबीआई के रडार पर रहे 200 नेताओं में से 80 फ़ीसदी विपक्षी नेता थे. इन 18 सालों में केंद्र में बीजेपी और कांग्रेस दोनों की सरकारें रही हैं.
पीएमएलए में 2005, 2009 और 2012 में किए गए. तब कांग्रेस सत्ता में थी.
2019 में मोदी राज में पीएमएलए में बदलाव कर ईडी को ये शक्ति दी गई कि वो लोगों के आवास पर छापेमारी, सर्च और गिरफ़्तारी कर सकती है.
इससे पहले किसी अन्य एजेंसी की ओर से दर्ज की गई एफ़आईआर और चार्ज़शीट में पीएमएलए की धाराएँ लगने पर ही ईडी जांच करती थी, लेकिन अब ईडी ख़ुद ही एफ़आईआर दर्ज करके गिरफ़्तारी कर सकती है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़, 2014 से 2022 तक ईडी के निशाने पर रहे क़रीब 95 फ़ीसदी यानी 115 नेता विपक्ष से थे.
2004-14 में 26 नेताओं से ईडी ने पूछताछ की थी. इनमें क़रीब 54 फ़ीसदी यानी 14 नेता विपक्ष से थे.
हालांकि ये आंकड़े 2022 तक के ही हैं. इसके बाद 2023 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे और इस दौरान विपक्षी दलों ने अलग-अलग राज्यों पर हुई ईडी, सीबीआई की छापेमारी को राजनीति से प्रेरित बताया था.
दिल्ली: केजरीवाल की ‘आप’ सरकार
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार 2013 से है और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री हैं.
सीबीआई ने फ़रवरी 2023 में दिल्ली के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को गिरफ़्तार किया. ये गिरफ़्तारी दिल्ली की शराब नीति में कथित घोटाले के आरोपों के चलते हुई थी.
इसके बाद आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को भी ईडी ने इसी मामले में गिरफ़्तार किया था.
मामला दिल्ली की 2021 की एक्साइज पॉलिसी से जुड़ा है, जिसकी जांच के आदेश जुलाई 2022 में उप-राज्यपाल वीके सक्सेना ने दिए थे.
नई शराब नीति को नवंबर 2021 में लागू किया गया था. इसके तहत दिल्ली को 32 ज़ोन में बाँटा गया और हर ज़ोन में 27 दुकानें खुलनी थीं. इसके तहत सिर्फ़ निजी दुकानों पर ही शराब बेची जा सकती थी.
दिल्ली सरकार का दावा था कि इसका मक़सद शराब माफ़िया, काला बाज़ारी को ख़त्म करना और समान वितरण सुनिश्चित करना है.
इस मामले में जांच हुई और बाद में सीबीआई ने एफ़आईआर दर्ज की.
सीबीआई की एफ़आईआर में कहा गया कि नई शराब नीति के तहत कोरोना में शराब व्यापार को हुए घाटे का हवाला देकर लाइसेंस फ़ीस ख़त्म कर दी गई. इससे दिल्ली सरकार को क़रीब 140 करोड़ रुपये का घाटा हुआ.
ये भी आरोप लगा कि लाइसेंस देने के लिए रिश्वत ली गई और ‘आप’ ने इस पैसे का इस्तेमाल पंजाब चुनाव में किया.
इस केस में सीबीआई और ईडी दोनों ने जांच की.
अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से पूछा था- आपके हिसाब से शराब नीति से ‘आप’ को फ़ायदा हुआ तो फिर इस केस में उसे क्यों नहीं मुख्य अभियुक्त बनाया गया?
नवंबर में केजरीवाल को पूछताछ के लिए ईडी ने पहला समन जारी किया था.
‘आप’ का कहना है कि चार्ज़शीट में केजरीवाल का नाम नहीं है, न वो अभियुक्त हैं, न वो गवाह हैं तो उन्हें किस हैसियत से बुलाया जा रहा है?
केजरीवाल ने भी चार जनवरी को कहा, ”मेरी ईमानदारी पर चोट करना चाहते हैं. ये जो समन मुझे भेजे हैं, ये ग़ैर क़ानूनी है. बीजेपी का मक़सद जांच करना नहीं है. ये मुझे लोकसभा चुनाव प्रचार से रोकना चाहते हैं. सीबीआई ने मुझे आठ महीने पहले बुलाया था, मैं गया भी था. दो साल से चल रही जांच में अब क्यों बुला रहे हैं.”
बीजेपी नेताओं का कहना है कि दाल में कुछ काला है, इस वजह से केजरीवाल ईडी की पूछताछ में नहीं जा रहे हैं.
झारखंड: हेमंत सोरेन की सरकार
झारखंड में 2019 से झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री हैं.
हेमंत सोरेन बीजेपी पर लगाए आरोपों में कहते हैं, ”2019 से झारखंड की झामुमो सरकार को गिराने की कोशिशें बीजेपी करती रही है और जब कहीं से सफलता हाथ नहीं लगी तो ईडी के अफसरों को काम पर लगा दिया गया.”
सोरेन ने जो बात कही, उसके पीछे पांच साल की कई घटनाएं हैं, जिनमें सोरेन या उनके क़रीबी निशाने पर रहे हैं.
ईडी हेमंत सोरेन को सात बार समन जारी कर पेश होने के लिए कह चुकी है. मगर सोरेन सातवीं बार भी ईडी के सामने पेश नहीं हुए. ईडी ने इसे अपना अंतिम समन बताया था. सोरेन को पहला समन 14 अगस्त 2023 को जारी हुआ था.
हेमंत सोरेन ने ईडी को लिखी चिट्ठी में कहा- एक बार पूछताछ में शामिल होकर संपत्ति की जानकारी दे चुका हूं, यह वैध तरीक़े से अर्जित की गई है. अब कुछ भी जानना हो तो चिट्ठी के ज़रिए पूछा जा सकता है.
सोरेन ने झारखंड हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी ईडी की कार्रवाई को लेकर याचिका दायर की थी. मगर सोरेन को राहत नहीं मिली.
ईडी कथित ज़मीन घोटाले से जुड़े मामले में सोरेन से पूछताछ करना चाहती है.
तीन जनवरी को अवैध ख़नन और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में सोरेन के प्रेस सलाहकार अभिषेक प्रसाद पिंटू की संपत्तियों पर ईडी की छापेमारी की ख़बरें आईं.
अभिषेक प्रसाद ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा था, ”हाँ मेरे पास माइन्स हैं लेकिन इनको चलाने की अनुमति मुझे पूर्व सीएम रघुबर दास के कार्यकाल के दौरान मिली थी.”
नवंबर 2022 में भी सोरेन से ईडी ने कथित अवैध ख़नन से जुड़े मामले में पूछताछ की थी. इसी मामले में जुलाई 2022 में सोरेन के क़रीबी पंकज मिश्रा को ईडी ने गिरफ़्तार किया था.
2021 में एक महिला पुलिस अधिकारी रूपा टिर्की ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी. इस केस में पंकज मिश्रा का नाम भी आया था और बीजेपी के समर्थन, परिवार की कोशिशों के बाद सीबीआई ने मामले में जांच भी शुरू की थी.
रूपा मामले में सीबीआई ने इन सबको क्लीन चिट दी थी. इस मामले में उनके सब इंस्पेक्टर मित्र गिरफ़्तार भी हुए. न्यायिक आयोग ने भी जाँच के बाद कहा कि रूपा की हत्या नहीं की गई थी.
बिहार: तेजस्वी यादव पर शिकंजा
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर भी ईडी के रडार पर हैं.
पांच जनवरी को भी तेजस्वी को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया है. ये मामला कथित तौर पर ‘नौकरी के बदले ज़मीन’ से जुड़ा हुआ है.
22 और 27 दिसंबर 2023 को भी तेजस्वी और लालू यादव से ईडी ने पेश होने के लिए कहा था. मगर दोनों पेश नहीं हुए.
फ़रवरी 2023 में भी दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी, बेटियों और कई अन्य लोगों को समन जारी किया था. इसी मामले में मार्च में बिहार में ईडी ने कई जगह छापेमारी की थी.
ये कथित घोटाला उस समय का है, जब लालू यादव रेल मंत्री थे. ऐसा दावा है कि रेल मंत्रालय में लोगों को नौकरी देने के बदले उनसे ज़मीन ली गई थी.
कर्नाटक: डीके शिवकुमार
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार भी सालों से ईडी के निशाने पर हैं.
जब शिवकुमार सरकार में नहीं थे, तब सितंबर 2019 में भी डीके शिवकुमार को ई़डी ने गिरफ़्तार किया था.
कर्नाटक में पहले की कांग्रेस-जेडीएस और उससे पहले की कांग्रेस सरकार में डीके शिवकुमार कैबिनेट में थे.
जनवरी 2024 में सीबीआई ने केरल के जयहिंद चैनल को नोटिस जारी कर डीके शिवकुमार के चैनल में निवेश की जानकारी मांगी. चैनल के एमडी को 11 जनवरी 2024 को पेश होने के लिए भी कहा गया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, सीबीआई ने 2020 में शिवकुमार के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था.
ये केस 2013-2018 के दौरान 74 करोड़ की आय को लेकर दर्ज किया गया.
मई 2022 में भी ईडी ने पीएमएलए के तहत शिवकुमार के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की थी.
बीबीसी के स्थानीय पत्रकार इमरान क़ुरैशी के मुताबिक़, डीके शिवकुमार के राजनीतिक करियर में गुजरात की एक राज्यसभा सीट के लिए हुआ चुनाव बेहद अहम है. मुक़ाबला था अमित शाह और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे अहमद पटेल के बीच. इस दौरान गुजरात के कांग्रेस विधायकों को बेंगलुरु के एक रिज़ॉर्ट में रखा गया था और इसमें अहम भूमिका डीके शिवकुमार की थी.
इस घटना के बाद उनके ख़िलाफ़ आयकर विभाग के छापे पड़े थे.
तमिलनाडु: डीएमके की स्टालिन सरकार
तमिलनाडु में डीएमके की सरकार है और एमके स्टालिन मुख्यमंत्री हैं.
बीते साल 2023 में ईडी ने डीएमके सरकार में मंत्रियों के दफ़्तर पर छापेमारी की थी.
तमिलनाडु पुलिस ने ईडी के एक अधिकारी को रिश्वत लेने के आरोप में भी गिरफ्तार किया था.
डीएमके के एक मंत्री सेंथिल बालाजी को भी ईडी ने बीते साल गिरफ़्तार किया था.
चार जनवरी 2023 को शेंथिल की रिमांड 11 जनवरी तक के लिए बढ़ा दी गई है.
सीएम स्टालिन कई बार बीजेपी सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते रहे हैं.
विपक्ष के नेताओं पर केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा
राजस्थान
राजस्थान, छत्तीसगढ़ में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब ईडी की छापेमारी सत्ता से जुड़े लोगों के यहां हो रही थी.
राजस्थान में नवंबर में तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया था.
ईडी ने तीन जनवरी 2024 को वैभव के ठिकानों पर छापेमारी की.
अक्टूबर 2023 में भी ईडी ने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, कांग्रेस नेता ओम प्रकाश हुडला, सरकार के कई अधिकारियों और जल जीवन मिशन से जुड़े लोगों के यहां भी छापेमारी की थी.
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में बूपेश बघेल की सरकार जब थी, दिसंबर 2022 में उनकी उप सचिव सौम्या चौरसिया को ईडी ने कथित अवैध वसूली से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया था.
फ़रवरी 2023 में जब रायपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था, उस दौरान ईडी की सक्रियता पर भी काफी सवाल उठे थे.
छत्तीसगढ़ चुनावों में महादेव ऐप का मुद्दा भी काफ़ी उठा था. इस मामले में भी ईडी काफी सक्रिय रही. ईडी ने महादेव ऑनलाइन सट्टा मामले में अब नया आरोप पत्र दाखिल किया है.
छत्तीसगढ़ में फरवरी 2020 में पहली बार आयकर विभाग ने बघेल के क़रीबी अफ़सरों और नेताओं के घर छापा मारा था.
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ईडी के निशाने पर रहे हैं.
अभिषेक बनर्जी को कई बार ईडी दफ़्तर में पूछताछ के लिए बुलाया गया. ये मामला कोयले के कथित ग़ैर-क़ानूनी ख़नन से जुड़ा है.
इस मामले में सीबीआई और ईडी दोनों जांच कर रही हैं.
हालांकि 2022 में सीबीआई ने जो चार्ज़शीट दाखिल की, उसमें अभिषेक का नाम नहीं था.
अक्टूबर 2023 में ममता बनर्जी सरकार में मंत्री ज्योतिप्रिया मलिक के घर पर भी ईडी ने छापेमारी की थी.
तब ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर मंत्रियों के यहां छापेमारी की जाएगी तो सरकार कैसे चलेगी.
बीजेपी में शामिल हुए नेताओं के मामले ठंडे बस्ते में?
‘आप’ ने भी तीन जनवरी 2023 को उन नेताओं का पोस्टर जारी किया, जो पहले बीजेपी में नहीं थे और केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में थे. अब ये नेता बीजेपी या उसके साथ सरकार में हैं.
विपक्ष के नेता आरोप लगाते रहे हैं कि जो नेता बीजेपी में शामिल हो जाते हैं, उन पर केंद्रीय एजेंसियों की ओर से दर्ज मामले ठंडे बस्ते में चले जाते हैं.
हिमंत बिस्वा सरमा
कभी असम की कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे हिंमत बिस्वा आज बीजेपी की सरकार में असम के मुख्यमंत्री हैं.
हिंमत बिस्वा का नाम शारदा चिट फंड घोटाले में भी आया था.
अगस्त 2014 में हिमंत बिस्वा सरमा के गुवाहाटी स्थित आवास और उनके चैनल न्यूज़ लाइव के दफ़्तर पर सीबीआई की छापेमारी हुई. इस चैनल की मालिक उनकी पत्नी रिंकी भुयन शर्मा हैं. नवंबर 2014 को हिमंत से सीबीआई ने घंटों तक पूछताछ की.
जनवरी 2015 को गुवाहाटी हाईकोर्ट नेाेरस चिट फंड केस की जाँच साबीआई को सौंपी.
अगस्त 2015 में हिमंत बीजेपी में शामिल हो गए.
सीएम बनने के बाद सीबीआई ने हिमंत को पूछताछ के लिए नहीं बुलाया.
शुभेंदु अधिकारी
कभी ममता सरकार में ताकतवर नेता रहे शुभेंदु अधिकारी अब बीजेपी में हैं.
2014 में एक स्टिंग ऑपरेशन में शुभेंदु अधिकारी समेत कई नेता कैमरे पर रिश्वत लेने की बात स्वीकार करते दिखे थे. इसे नारदा स्टिंग कहा गया.
जब 2021 में ममता की सरकार चुनावों में उतरी तो शुभेंदु अधिकारी बीजेपी में चले गए.
ममता की जीत के बाद सीबीआई ने चार टीएमसी नेताओं को गिरफ्तार किया. ईडी ने चार्जशीट दाखिल की. मगर शुभेंदु अधिकारी का नाम इसमें नहीं था.
मुकुल रॉय का नाम भी चार्ज़शीट में नहीं था, जो पहले बीजेपी में चले गए थे मगर बाद में टीएमसी में लौट आए.
अजित पवार और कई नाम…
अजित पवार अब महाराष्ट्र की सरकार में हैं और डिप्टी सीएम हैं.
जब वो बीजेपी के साथ नहीं थे, तब देवेंद्र फडणवीस समेत कई नेता उन पर भ्रष्टाचारी होने का आरोप लगा चुके थे. फडणवीस का ‘अजित दादा चक्की पीसिंग’ बयान काफी चर्चा में रहा था.
यही हाल एनसीपी (अजित पवार गुट) के नेता छगन भुजबल के मामले में भी हुआ.
मार्च 2022 में आयकर विभाग ने अजित के रिश्तेदारों के यहां छापेमारी की थी. चीनी मिलों में भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में भी ईडी का शिकंजा उन पर कसने लगा.
मई 2020 में ईडी ने विदर्भ सिंचाई घोटाला मामले की नए सिरे से जांच शुरू की थी.
अप्रैल 2023 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सहकारी बैंक घोटाले के सिलसिले में ईडी ने अजित पवार और सुनेत्रा पवार से जुड़ी एक कंपनी के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दायर किया. लेकिन इसमें अजित पवार और सुनेत्रा पवार का नाम शामिल नहीं था.
छगन भुजबल पर 2014 के बाद से ही जांच एजेंसियों का शिकंजा कस रहा था. मगर वो अब भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में बरी हैं.
इस लिस्ट में ये नेता अकेले नहीं हैं. नारायण राणे, प्रफुल्ल पटेल, भावना गिली, यामिनी जाधव, प्रताप सरनाईक, अदिति तटकरे, धनंजय मुंडे जैसे कई नाम हैं जो कभी केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर रहे थे.
मगर इन नामों में अब दो बातें कॉमन हैं- अब ये लोग बीजेपी के साथ हैं और केंद्रीय एजेंसियों की इन पर कार्रवाई ठंडे बस्ते में जाती दिखती है.